अनूपगढ़ दुर्ग राजस्थान के सूरतगढ़ जिले में स्थित है तथा अत्यंत प्राचीन काल के जोहियों के समय से अस्तित्व में है जिसका सत्रहवीं सदी में नए सिरे से निर्माण किया गया। राजस्थान में जोहियों के बनाए हुए दो ही दुर्गों के अवशेष प्राप्त होते हैं- अनूपगढ़ दुर्ग तथा सूरतगढ़ दुर्ग।
ईसा की सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में बीकानेर राज्य में चूडेर नामक स्थान हुआ करता था। यहाँ एक पुराना किला था जिस पर जोहियों का अधिकार था किंतु बाद में यह दुर्ग भाटियों के अधिकार में चला गया।
बीकानेर नरेश अनूपसिंह ने मुहता मुकंदराय को चूडेर पर आक्रमण करने भेजा। भाटी अपनी सेना एवं रसद सहित चूडेर के दुर्ग में बंद हो गये। मुकंदराय ने दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया जिससे किसी व्यक्ति का दुर्ग में पहुंचना कठिन हो गया।
दो माह की घेराबंदी के बाद दुर्ग में रसद की कमी हो गई, तब भाटियों के सरदार जगरूपसिंह तथा बिहारीदास ने लखबेरा के जोहियों से रसद तथा अन्य सामग्री भिजवाने को कहा। जब जोहिये रसद लेकर चूडेर आये तो भाटी, रसद लेने दुर्ग से बाहर निकले।
ठीक उसी समय राठौड़ों ने उन पर आक्रमण कर दिया। बहुत से जोहिये और भाटी मारे गये। राठौड़ों ने रसद सामग्री अपने अधिकार में कर ली। भाटियों को विवश होकर, राठौड़ों से संधि करनी पड़ी।
मुकुंदराय ने भाटियों से एक लाख रुपये मांगे। भाटियों ने पचास हजार रुपये उसी समय दे दिये तथा शेष राशि बाद में देने की बात कही। इस पर मुंकदराय ने भाटियों से कहा कि बाकी का आधा रुपया वह राजा से कहकर माफ करवा देगा।
यह आश्वासन पाकर भाटियों ने दुर्ग में स्थित बहुत से भाटी एवं जोहिया सैनिकों को दुर्ग से बाहर भेज दिया ताकि दुर्ग का खर्चा कम किया जा सके। जब दुर्ग में सैनिक शक्ति घट गई तो मुकंदराय ने दुबारा दुर्ग पर आक्रमण किया तथा दुर्ग के भीतर स्थित समस्त भाटी एवं जोहिया राजपूतों को मारकर दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
ई.1678 में इस पुराने दुर्ग के स्थान पर एक नया दुर्ग बनवाया गया जिसका नाम बीकानेर नरेश अनूपसिंह के नाम पर अनूपगढ़ दुर्ग रखा गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता