बीकानेर संभाग का जिलेवार सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अध्ययन ग्रंथ में राजस्थान के बीकानेर संभाग में स्थित जिलों का राजनीतिक इतिहास, कला एवं संस्कृति, आर्थिक गतिविधियां, प्रशासनिक संरचनाएं तथा महत्वपूर्ण गांवों एवं कस्बों सहित विविध सूचनाएं संजोई गई हैं जो रुचिवान पाठक से लेकर विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रतिभागियों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
राजस्थान देश का सबसे बड़ा प्रांत है। आजादी से पहले यह कभी भी एक राजनीतिक इकाई के रूप में नहीं रहा। भौगोलिक क्षेत्रफल के मामले में यह विश्व के अनेक देशों से बड़ा है। इटली, बेल्जियम, स्विट्जरलैण्ड, ईरान तथा ईराक जैसे प्रसिद्ध देश भी इससे छोटे हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व राजस्थान मुख्यतः 19 देशी रियासतों, 4 बड़े ठिकानों तथा एक ब्रिटिश शासित प्रदेश में बंटा हुआ था। देशी रियासतों व ठिकानों में यद्यपि अंग्रेजों के बनाये हुए कानून चलते थे किंतु ये कानून इन रियासतों के राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार की संधि के माध्यम से लागू होते थे। अंग्रेज इस सम्पूर्ण क्षेत्र को राजपूताना कहते थे।
राजपूताना की 19 रियासतों में से 18 रियासतें- जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, जयपुर, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, बूंदी, कोटा, झालावाड़, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, सिरोही, किशनगढ़ तथा शाहपुरा हिन्दू रियासतें थीं। इनके शासक महाराजा, महारावत, महारावल अथवा महाराणा कहलाते थे।
राजपूताना की एकमात्र मुस्लिम रियासत टौंक थी जहाँ का शासक नवाब कहलाता था। इस रियासत का निर्माण अंग्रेजों ने पिण्डारी समस्या से निबटने के लिए किया था। रियासतों के साथ-साथ राजपूताने के चारों बड़े ठिकानों- दांता, कुशलगढ़, नीमराणा तथा लावा में भी हिन्दू ठिकानेदार थे। अजमेर एकमात्र ब्रिटिश शासित क्षेत्र था जहाँ भारत सरकार के गवर्नर जनरल एवं वायसराय का एजेण्ट बैठता था जिसे एजेण्ट टू दी गवर्नर जनरल (एजीजी) कहते थे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राजपूताना के राज्यों का गठन राजस्थान प्रांत के रूप में हुआ। गठन की यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी हुई। राजस्थान ने अपना वर्तमान स्वरूप 1 नवम्बर 1956 को प्राप्त किया जब केन्द्र शासित प्रदेश अजमेर, आबू तहसील तथा सुनेल-टप्पा क्षेत्र का विलय राजस्थान में हुआ। आज राजस्थान भारत का सबसे बड़ा प्रांत है।
इतने बड़े प्रांत की संस्कृति एवं इतिहास का सूक्ष्म अध्ययन किसी युक्तिसंगत एवं वर्तमान में प्रचलित इकाई के माध्यम से ही अधिक सुगमता से किया जा सकता है। राजस्थान के रूप में पुनर्गठित होने के बाद देशी रजवाड़ों को जिलों में संगठित किया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी इन जिलों ने अपनी मूल सांसकृतिक पहचान को बनाये रखा है। इसलिए जिलों को आधार बनाकर यह पुस्तक लिखी गयी है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राजस्थान में 5 संभाग तथा 25 जिले बनाये गये थे। उस समय पांच संभाग- जोधपुर, जयपुर, उदयपुर, बीकानेर एवं कोटा बनाये गये थे। वर्ष 1956 में जब अजमेर राजस्थान में मिल गया तब अजमेर नाम से 26वां जिला बनाया गया तथा जयपुर संभाग का नाम बदल कर अजमेर सभांग कर दिया गया किंतु उसका मुख्यालय जयपुर में रखा गया।
ई.1962 में मोहनलाल सुखाड़िया सरकार ने संभागों को समाप्त कर दिया। 15 अप्रेल 1982 को धौलपुर को 27वां जिला बनाया गया। ई.1987 में हरिदेव जोशी सरकार ने संभागीय व्यवस्था को पुनर्जीवत कर दिया तथा छः संभागों- जोधपुर, जयपुर, उदयपुर, बीकानेर, अजमेर एवं कोटा का निर्माण किया गया।
10 अप्रेल 1991 को दौसा, राजसमंद और बारां नामक जिले बनाये गये। 12 जुलाई 1994 को हनुमानगढ़ को राज्य का 31वां जिला बनाया गया। 19 जुलाई 1997 को करौली को राज्य का 32वां जिला बनाया गया। वर्ष 2005 में डांग क्षेत्र के विकास के लिए भरतपुर संभाग के नाम से राज्य के सातवें संभाग का गठन किया गया।
इस संभाग में जयपुर संभाग के भरतपुर एवं धौलपुर तथा कोटा संभाग के सवाईमाधोपुर एवं करौली जिले सम्मिलित किये गये। इस प्रकार कोटा संभाग में बूंदी, कोटा, बारां तथा झालावाड़ जिले रह गये। 27 जनवरी 2008 को प्रतापगढ़ को राज्य का 33वां जिला बनाया गया। इसके अस्तित्व में आाने से राज्य में जिलों की संख्या 33 हो गयी जो सात संभागों में विभक्त हैं।
राजस्थान का जिलेवार सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अध्ययन नामक ग्रंथ वर्ष 2004 में प्रकाशित हुआ था। उस समय इसके दो संस्करण निकाले गये थे। पहला संस्करण दो खण्डों में था तथा दूसरा संस्करण छः खण्डों में प्रकाशित हुआ था। यह पुस्तक इतनी लोकप्रिय हुई कि ये दोनों संस्करण दो वर्ष की अवधि में ही बिक गये।
पुस्तक का दूसरा संस्करण प्रकाशित करते समय बीकानेर संभाग के संस्करण में काफी परिवर्तन हो गया जिसमें बीकानेर रियासत के महान इतिहास को पर्याप्त स्थान दिया गया है। तीसरे संस्करण में भी कुछ परिवर्द्धन हुआ था और अब यह चौथा नवीन संस्करण आपके हाथों में है।
आशा है यह नवीन एवं संशोधित संस्करण पाठकों को पसंद आयेगा और जिज्ञासु पाठकों, शोधकर्ताओं, पर्यटकों, इतिहास तथा पर्यटन के विद्यार्थियों, पत्रकारों एवं अध्यापकों के साथ-साथ विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले छात्रों के लिए पहले से भी कहीं अधिक उपयोगी सिद्ध होगा।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता