राजस्थान के पूर्वी मैदान प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित हैं। पूर्वी मैदान सम्पूर्ण राज्य का 23.3 प्रतिशत भू-भाग घेरे हुए है।
राजस्थान के पूर्वी मैदान की दक्षिण-पूर्वी सीमा विन्ध्यन पठार द्वारा बनाई जाती है और पश्चिमी सीमा अरावली के पूर्वी किनारों द्वारा उदयपुर के उत्तर तक और इससे आगे उत्तर में 50 सेंटीमीटर की समवर्षा रेखा द्वारा निर्धारित होती है।
राजस्थान के पूर्वी मैदान के अन्तर्गत चंबल बेसिन की निम्न भूमियाँ जैसे बनास का मैदान और मध्य माही अथवा छप्पन का मैदान आदि सम्मिलित हैं।
भरतपुर, मुरैना, ग्वालियर आदि मैदान ऊपरी गंगा मैदान के बढ़े हुए विस्तृत भाग हैं किन्तु बनास का मैदान यद्यपि एक कांपीय भू-भाग है, फिर भी एक समप्राय मैदान है।
मध्य माही मैदान बंजर भूमियों की घाटियों का क्षेत्र है जिसे छप्पन कहते हैं। यह डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ तथा उदयपुर के कुछ भागों पर विस्तृत है और इसका प्रवाह अरब सागर की ओर है। यह मैदान तीन उप-इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है-
(अ) चंबल बेसिन
राज्य में चंबल घाटी की स्थलाकृति पहाड़ियों और पठारों से निर्मित है। इसकी संपूर्ण घाटी में नवीन कांपीय जमाव पाये जाते हैं। इसमें बाढ़ के मैदान, नदी कगार, बीहड़ एवं अन्तःसरिता आदि स्थलाकृतियां पाई जाती हैं जो इस प्रदेश में काफी अच्छी तरह से विकसित हुई हैं।
कोटा, बूंदी, टोंक, सवाईमाधोपुर और धौलपुर आदि जिलों में बीहड़ों से कुल प्रभावित क्षेत्र लगभग 4500 वर्ग किलोमीटर है। इसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण चंबल बीहड़ पट्टी है जो 480 किलोमीटर लम्बाई में कोटा से बारां तक विस्तृत है।
इसमें कोटा से धौलपुर तक एक ऊपरी विंध्ययन कगार, भूमियों की अनियमित और ऊँची दीवार बाणगंगा तथा यमुना के बीच जल विभाजक द्वारा अंकित है। दक्षिणी सीमा सहायक नदियों जैसे कालीसिंध और पार्वती आदि के साथ बदलती रहती है।
इससे आगे यह कुंवारी बीहड़ों के द्वारा चम्बल के दक्षिण-पश्चिम मार्ग के साथ निरन्तर बारां तक अच्छी तरह से सीमांकित है। बीहड़ों तथा यमुना घाटी के बीच तथा चम्बल और कुंवारी के बीच के मैदानी क्षेत्र कृषि के अंतर्गत हैं।
(ब) बनास बेसिन
बनास बेसिन पश्चिम में 50 सेमीटर वर्षा रेखा द्वारा दक्षिण में महान् भारतीय जल विभाजक द्वारा उत्तर में अलवर पहाड़ी प्रदेश द्वारा तथा पूर्व में विन्ध्यन कागार द्वारा सीमांकित हैं।
बनास तथा इसकी सहायक नदियों द्वारा सिंचित यह मैदान दक्षिण में मेवाड़ का मैदान तथा उत्तर में मालपुरा, करौली का मैदान कहलाता है। मेवाड़ मैदान, बनास नदी तथा इसकी सहायक नदियां जैसे खारी, सोडरा, मोसी और मोरेल जो बायें किनारे पर बहती हैं और बेड़च, बाजायिन और गोलवा जो दाहिने किनारे पर मिलती हैं, से सिंचित है।
यह उदयपुर के पूर्वी भागों, पश्चिमी चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक, जयपुर, पश्चिमी सवाईमाधोपुर और अलवर के दक्षिणी भागों में विस्तृत है। इस मैदान का ढाल धीरे-धीरे उत्तर व उत्तर-पूर्व की ओर कम होता जाता है। इसकी औसत ऊँचाई 280 मीटर से 500 मीटर के बीच है।
इनके उच्च भू-भाग टीलेनुमा हैं जिनके कारण इसे पीडमॉन्ट मैदान भी कहा जा सकता है। इस क्षेत्र की स्थलाकृतियां अपरदित आकृतियों के रूप में हैं जिनका प्रादुर्भाव ग्रेनाइट और नीस की चट्टानों में अपरदन के कारण हुआ है।
मालपुरा-करौली मैदान
यह साधारणतः शिष्ट और नीस से निर्मित है। किशनगढ़ और मालपुरा के अधिकतर भागों में कांपीय जमाव की परतों की मोटाई अधिक है जहाँ वे अपने नीचे अधिकांश नीस चट्टानों को छुपाये हुये हैं। इस मैदान की औसत ऊँचाई 280-400 मीटर है।
(स) मध्य माही बेसिन
इसे छप्पन का मैदान अथवा वागड़ क्षेत्र भी कहते हैं। यह मैदान उदयपुर के दक्षिणी-पूर्वी, बाँसवाड़ा और चित्तौड़गढ़ जिले के दक्षिण भागों में विस्तृत है। यह क्षेत्र माही नदी की सहायक नदियों से सिंचित है। इसकी औसत ऊँचाई 200 मीटर से 400 मीटर के बीच है। मध्य माही बेसिन में मेवाड़ के उत्तरी मैदान की अपेक्षा भू-आकृतियां अधिक विषम हैं।
दक्षिण में स्थित क्षेत्र काफी गहरा तथा कटा-फटा है। यह क्षेत्र अधिक गहराई तक विच्छेदित होने के कारण इस विच्छेदित मैदान को तथा पहाड़ी भू-भाग को स्थानीय भाषा में वागड़ अर्थात बिगड़ा हुआ कहा जाता है। वागड़ में बांसवाड़ा व डूंगरपुर के पहाड़ी भू-भाग तथा विच्छेदित मैदान को सम्मिलित किया जाता है।
प्रतापगढ़ और बांसवाड़ा के बीच के भाग में छप्पन ग्राम समूह स्थित था, इसलिये यह भू-भाग छप्पन के मैदान कहा जाता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता