सैंपउ महादेव मंदिर धौलपुर राज्य के इतिहास का एक भूला-बिसरा पन्ना है। आज भी यह मंदिर गांव के बाहर खेतों की शांति के बीच खड़ा है। इसका शिखर दूर से ही दिखाई देता है।
लोक किंवदंति है कि संवत् 1305 में वाराणसी की तीर्थ यात्रा पर गये एक भाई एवं उसकी बहिन को स्वप्न में सैंपऊ ग्राम के निकट एक शिवलिंग होने की जानकारी प्राप्त हुई। वे स्वप्न में निर्दिष्ट स्थान पर आये और उन्होंने शिवलिंग को प्राप्त करने के लिये इस स्थान की खुदाई करनी आरम्भ की।
कहा जाता है कि दिन में शिवलिंग की खुदाई की जाती किंतु रात को शिवलिंग पर इतनी मिट्टी चढ़ जाती कि शिवलिंग फिर से मिट्टी में दब जाता। इस कारण कई दिन तक खुदाई की गई और इस स्थान पर रेत का एक ऊँचा टीला बन गया। यह शिवलिंग बरसों तक इस टीले पर बने एक चबूतरे पर स्थित रहा।
सैंपउ महादेव मंदिर के वर्तमान महंत रामभरोसी पुरी बाते हैं कि धौलपुर के महाराजराणा कीरतसिंह (1856-35) के पुत्र महाराजराणा भगवतसिंह (1836-73) के समय में उनके साले राजधर ने उस शिवलिंग के निमित्त आज से लगभग 200 साल पहले, राजकोष से सैंपऊ के महादेव मंदिर का निर्माण करवाया। तब से यह मंदिर जन-आस्था का केन्द्र बना हुआ है।
दूर-दूर से महादेव मंदिर के दर्शनों के लिये यात्री आते हैं। आजादी के बाद भी धौलपुर के पूर्व राजघराने के सदस्यों का इस मंदिर से जुड़ाव बना रहा है। इस मंदिर के महंत रामभरोसे पुरी इस मंदिर के पुजारियों की अठारहवीं पीढ़ी में हैं। मंदिर का स्थापत्य साधारण कोटि का है कंतु उसका उच्च शिखर काफी दूर से ध्यान आकर्षित कर लेता है।
मूल गर्भ के चारों बड़ा चौक है जिसमें अत्यंत प्राचीन मूर्तियों के अवशेष रखे हुए हैं। इस मंदिर पर गंगाजी से कावड़ों में गंगाजल लाकर चढ़ाया जाता है। प्रतिवर्ष फाल्गुन एवं श्रावण मास की चौदस को इस मंदिर में मेले लगते हैं जिनमें दूर-दूर से ग्रामीण जनता श्रद्धा के साथ भाग लेने आती है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता