राव जोधा के पूर्वज राव सीहा पहले व्यक्ति थे जो मारवाड़ में आए। सीहा ने मरुस्थल में अपने राज्य की स्थापना का कार्य आरम्भ किया।
अनसुलझी गुत्थी
राव जोधा के पूर्वज राव सीहा थे और कहाँ से आए थे, इस सम्बन्ध में इतिहासकारों में प्रबल मतभेद हैं। मारवाड़ के राठौड़़ मानते आये हैं कि वे कन्नौज के राजा जयचंद के वंशज सीहा की संतान हैं। चंद बरदाई ने अपने ग्रंथ पृथ्वीराज रासो में कन्नौज के राजा विजयचंद्र तथा जयचंद्र को गाहड़वाल वंश का बताया है और उन्हें कमधज्ज तथा राठौड़़ लिखा है।
कर्नल टॉड ने पृथ्वीराज रासो के उक्त वर्णन को आधार बनाकर मारवाड़ के राठौड़़ों को जयचंद का वंशज तथा गाहड़वाल क्षत्रिय मान लिया है। भाटों ने भी इसी मत को स्वीकार कर लिया है।
जबकि आधुनिक शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है कि राव जोधा के पूर्वज गाहड़वाल, राठौड़़ नहीं थे, राठौड़़ों की एक सुदीर्घ परम्परा कन्नौज के गाहड़वालों से भी कई शताब्दी पहले से चली आ रही थी। कन्नौज के गाहड़वालों और निकटवर्ती क्षेत्रों के राठौड़़ों में वैवाहिक सम्बन्ध होते थे। इसलिये ये दोनों एक ही कुल के नहीं हो सकते।
हॉर्नली पहले विद्वान थे जिन्होंने यह कहा कि राठौड़़, गहड़वालों से भिन्न हैं। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि जोधपुर के राठौड़ मालखेड़ (मूल नाम मान्यखेड़ था। यह दक्षिण भारत में स्थित था।) के राठौड़ों से निकले हैं।
कर्नल टॉड की गड़बड़
बांकीदास ने राठौड़़ों की शाखाओं और उपशाखाओं के जो नाम दिये है उनमें गाहड़वालों का नाम नहीं है। अतः अनुमान लगाया जाता है कि बांकीदास के समय तक राठौड़़ों को गाहहड़वाल नहीं माना जाता था। यह बाद में तब हुआ जब कर्नल टॉड ने पृथ्वीराज रासो को आधार बनाकर भ्रमवश राठौड़़ों को गाहड़वाल मान लिया।
भारत के प्राचीन क्षत्रिय राजवंश अपना सम्बन्ध सूर्यवंश, चन्द्रवंश एवं यदुवंश में से किसी एक के साथ मानते थे। गाहड़वाल सूर्यवंशी थे जबकि मारवाड़ के राठौड़़ों को चंद्रवंशी माना जाता है। मारवाड़ के राठौड़़ों के अतिरिक्त भी विभिन्न शाखाओं के राठौड़़ों ने अपने शिलालेखों एवं ताम्रलेखों में स्वयं को चंद्रवंशी बताया है। इस आधार पर भी गाहड़वाल और राठौड़़ एक नहीं हो सकते।
गौरीशंकर ओझा द्वारा व्यक्त संभावना
मारवाड़ के राठौड़़ों के मूल पुरुष राव सीहा के मृत्यु स्मारक में उसे राठौड़़ लिखा गया है तथा बीकानेर के महाराजा रायसिंह की बीकानेर दुर्ग की वि.सं. 1650 की वृहत् प्रशस्ति में भी उसके लिये गाहड़वाल वंश का प्रयोग न होकर राठौड़़ वंशीय लिखा गया है।
विभिन्न विद्वानों के मतों तथा अब तक प्राप्त ठोस तथ्यों के आधार पर गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने यह संभावना व्यक्त की है कि राजपूताना के वर्तमान राठौड़़, बदायूं के राठौड़़ों के वंशधर हो सकते हैं। हम भी इसी मत पर विश्वास करते हैं, जब तक कि कोई और ऐतिहासिक प्रमाण सामने नहीं आ जाता।
पर्याप्त संभव है कि मुहम्मद गौरी ने 1194 ई. में जब राजा जयचंद पर आक्रमण किया तब बदायूं के राठौड़़, जयचंद की सहायता के लिये युद्ध में उपस्थित हुए हों तथा जयचंद की पराजय के बाद विभिन्न स्थलों पर भटकते हुए मरुस्थल में आने को विवश हुए हों और बाद में लिखी गई ख्यातों में, राठौड़़ों को कन्नौज से आया हुआ होने के कारण जयचंद का वंशज घोषित कर दिया गया हो।
मरुस्थल ही क्यों ?
प्राचीन काल में बहुत से राजा अपने राज्य के नष्ट हो जाने पर मरुस्थल में भाग आया करते थे। प्रतिहार नागभट्ट, शत्रुओं से परास्त होकर मरुस्थल में भाग आया था ताकि स्वप्न में भी उसे युद्ध के दर्शन न हों। भाटी, भटनेर का राज्य हाथ से निकल जाने पर मरुस्थल में चले आये थे। कर्नल टॉड ने लिखा है- ‘सीहा, कन्नौज राज्य से भयभीत होकर भाग गया……राजा जयचंद के वंश के कितने ही लोग मरुदेश में जा बसे थे।’