आज चारों ओर यह धारणा बनी है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के केवल 65 वर्ष बाद भारत राष्ट्र की जैसी दुर्दशा हुई है, वैसी तो अंग्रेजों के समय में भी नहीं थी। नित्य नये हादसे हो रहे हैं, चारों तरफ महंगाई और पैसों का नंगा नाच हो रहा है। लाखों करोड़ रुपयों के घोटालों के खुलासे हो रहे हैं। लोग कोयला चुरा रहे हैं, नहरें चुरा रहे हैं, सड़कें चुरा रहे हैं, पत्थर चुरा रहे हैं, बजरी चुरा रहे हैं, जंगल चुरा रहे हैं। बांध और पहाड़ चुरा रहे हैं। और तो और, देश की सीमाएँ चुरा रहे हैं। आश्चर्य होता है इन लोगों के काले कारनामों को देखकर। आखिर ये लोग क्या चाहते हैं ? क्या वे धरती को चुराकर अपने लॉकरों और विदेशी बैंकों में छिपा देना चाहते हैं ? क्या वे हिरणाकश्यप और हिरण्याक्ष हो गये हैं ? महान शोक का विषय!
आश्चर्य है कि विपुल भारतीय धर्म ग्रंथों के उपलब्ध होते हुए भी अधिकांश लोग अनैतिक आचरण कर रहे हैं। वे ये भी भूल चुके हैं कि सोने की नगरी वाले रावण को, सोने के महल में रहने वाले हिरणाकश्यप को, सोने की आंख वाले हिरण्याक्ष को और सोने की चमड़ी धारण करने मारीच को भगवान मार डालता है। उनका पीछा करता है, उनका शिकार करता है और खम्भे फाड़कर मार डालता है। कोई एक नाम हो तो गिनायें, देश में चारों तरफ चोरों की बारातें धौंसा बजा रही हैं। महान शोक का विषय!
हमें सोचना होगा कि देश में नैतिकता का जो संकट खड़ा हुआ है क्या उसमें धर्म निरपेक्षता के नाम पर थोपी गई धर्महीनता का योगदान है ? पूरी दुनिया में भारत अकेला ऐसा देश है जिसने अपने आप को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया और पूरी दुनिया में भारत अकेला ऐसा देश है जो भ्रष्टाचार से सबसे अधिक त्रस्त है। स्कूली पाठ्क्रमों से धार्मिक शिक्षा लुप्त हो गई। नीति के प्रसंग गायब हो गये। पैसा कमाने का ऐसा चस्का लगा है कि लोग धर्मग्रंथों का अध्ययन छोड़कर निर्मल बाबाओं के चरणों में जा बैठे हैं। महान् विभूतियों के जीवन चरित्रों को भी पढ़ना छोड़कर ऐसी बौद्धिक उठापटक मचाई है कि आईक्यू के आधार पर स्वामी विवेकानंद को तस्करों के समक्ष बुद्धि वाला बताया जा रहा है। महान् शोक का विषय!
जो लोग प्रेम और भाईचारे का संदेश दे रहे हैं, वे एक-दूसरे को फूटी आँखों से नहीं देख सकते। सहिष्णुता केवल अपने और अपनों के लिये। वाणी की मर्यादा समाप्त, आचरण की मर्यादा समाप्त। अश्लील सीडियों की अफवाहों का बाजार गर्म। लोग ऐसे-ऐसे लोगों की सीडियां होने का दावा करते हैं कि हैरानी होती है ! क्या चाहते हैं ये लोग ? ऋषि-पत्नी के साथ छल करने वाले इन्द्र को भगवान ने हजार आंखें दे दी थीं जिससे उसे अपना पाप दिखाई दे सके। आज हजार आँखों वाले कैमरे हर स्थान पर उपस्थित हैं, कमरे में किये गये पाप चौराहों पर आ रहे हैं किंतु फिर भी कोई डरने को तैयार नहीं। महान शोक का विषय!
जिन लोगों ने स्वतंत्र भारत का स्वप्न देखा था वे आज धरती पर नहीं हैं, यदि होते तो उनके मानसिक संताप की थाह पाना असंभव होता। विषाद भरे इस वातावरण में, मैं ठाकुर केसरीसिंह बाहरठ का जीवन वृत्त लिखकर फिर से भारत के युवाओं के हाथों में पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूँ। संभवतः भारत के कोटि-कोटि पुत्रों को फिर से भारत माता के प्रति प्रेम जाग उठे। जीवन में हर क्षण पैसा कमाने का चस्का छूट सके। बेईमानी का भाव कम हो। लड़खड़ाती हुई भारत माता को फिर से संभालने की जिम्मेदारी का ज्ञान हो।
केसरीसिंह एक जागीरदार के घर में पैदा हुए। रेशमी गद्दे उनके लिये सहज सुलभ थे। वे जीवन भर सोने की थाली में चांदी की चम्मच से खीर खा सकते थे किंतु उन्होंने भारत माता के कष्टों को अनुभव किया। बम बनाये। सशस्त्र क्रांति का स्वप्न देखा। जेल गये। अपने परिवार को भी इसी मार्ग पर ला खड़ा किया। उनका पुत्र और भाई राष्ट्र की आराधना करते हुए शहीद हो गये। पुत्र वियोग से केसरीसिंह की पत्नी माणिक कंवर भी अधिक समय तक जीवित नहीं रहीं। फिर भी राष्ट्र की सेवा का भाव नहीं छूटा। राजाओं और जागीदारों को फटकारा, स्कूल खोले, अखबार निकाला, गांधीवाद अपनाया और छोड़ा, साहित्य लिखा, महाराणाओं को चेतावणी के चूंगटिये भरे, हर वह उपाय करके देखा जिससे भारत माता के कष्ट दूर हों। जीवन की आखिरी सांस तक यही करते रहे। पत्नी वियोग में भी भारत माता के कष्टों की चर्चा करते रहे।
ऐसे पुण्यात्मा केसरीसिंह का जीवन वृत्त दीपावली के दियों के प्रकाश की तरह फिर से भारतीय युवाओं के हाथों में रखते हुए मेरी एक ही इच्छा है कि ठाकुर केसरीसिंह बाहरठ का जीवन चरित्र इस देश के युवाओं को सुमार्ग पर लाकर उनमें राष्ट्रीय चेतना का भाव उत्पन्न करे। इसी उद्देश्य से इस पुस्तिका की रचना की गई है। पुस्तक के अंत में जोरावरसिंह तथा प्रतापसिंह के बारे में भी संक्षिप्त जानकारी दी गई है जिसका अध्ययन उतना ही रोमांचकारी है जितना ठाकुर केसरीसिंह के जीवन का।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता, 63, सरदार क्लब योजना, वायुसेना क्षेत्र, जोधपुर
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