Thursday, November 21, 2024
spot_img

चेतावणी के चूंगटिये

चेतावणी के चूंगटिये नाम से सृजित दोहों में न केवल मेवाड़ के गौरवशाली अतीत की अपितु भारत की स्वातंत्र्य आकांक्षा के दर्शन भी होते हैं। केसरीसिंह के व्यक्तित्व की विराटता भी इन दोहों में परिलक्षित है। ये दाहे इस प्रकार से हैं-                                                                                                                  

पग पग भम्या पहाड़, धरा छोड़ राख्यो धरम।

महारांणा  ‘मेवाड़’,  हिरदे बसिया  हिंद रै।

अर्थात् मेवाड़ के महाराणा सच्चाई की खातिर हमेशा सिर पर विपदाओं के पहाड़ ढोते रहे, मानवोचित धर्म की खातिर हमेशा नंगे पांव पहाड़ों पर भटकते रहे। कंटीले , ऊबड़-खाबड़ पहाड़ों पर। जन्मभूमि के मोह को त्याग कर भी उन्होंने सच्चाई और धर्म के मार्ग का परित्याग नहीं किया। इसी कारण हिन्दुस्तान के लिये मेवाड़ शब्द प्यारा है, महाराणा शब्द प्यारा है। ये दोनों शब्द अपने सम्पूर्ण गौरव के साथ हिन्दुस्तान के हृदय में वास कर रहे हैं।

घण घलिया घमसांण, राणा सदा रहिया निडर।

पेखंतां  फुरमाण, हल चल किम  फतमल हुवै।

अर्थात् इस मेवाड़ की भूमि पर हमेशा भयंकर युद्ध होते रहे, पर मेवाड़ के महाराणा हमेशा ही निडर रहे। मेवाड़ के महाराणाओं को युद्ध का भय कैसा? आज भी यह वही मेवाड़ है, और तुम उसी के महाराणा हो, फिर अंग्रेजों के इस नगण्य फरमान को देखते ही तुम्हारे हृदय में यह हलचल कैसे उत्पन्न हो गई ? कैसे संभव हो गया यह?

गिरद गजां घमसांण, नहचै धर माई नहीं ।

मावै किम महारांण, गज सौ रै  घेरे गिरद।

अर्थात् युद्ध भूमि में मेवाड़ के महाराणाओं के हाथी-घोड़ों से जो रंजी आसमान में उड़ती थी, वह तो सारी पृथ्वी में भी नहीं समा पाती थी। आज उसी मेवाड़ का महाराणा अंग्रेजों के हुक्म का कायल हो गया। विदेशी सत्ता का सम्मान करने के लिये वह दिल्ली जायेगा? सौ गज के घेरे में अपने को समेटने की चेष्टा करेगा?

ओरां  ने  आसांण,  हाकां हरवल हालणे।

किम हालै कुलरांण, हरवल साहां हांकिया।

अर्थात् दूसरे राजाओं के लिये यह बात सहज हो सकती है कि वे शाही फौज की हरावल करते हुए आगे-आगे चलें पर मेवाड़ के लिये भी आज यह बात कैसे वैसी ही आसान हो गई, जिसके पूर्वजों ने अपनी फौज के आगे शाही फौज को हमेशा ही हांका! उस मेवाड़ का महाराणा आज अंग्रेजों के फरमान का गुलाम कैसे हो गया?

नरियंद सह नजरांण, झुक करसी सरसी जिकां।

पसरेलो  किम पांण,  पांण  थका  थारो  फता।

अर्थात् देश के सभी अन्य राजा झुक-झुक कर सलाम करते हुए अंग्रेज बहादुर और दिल्ली की विदेशी सल्तनत को हाथ आगे बढ़ाकर नजराना पेश करेंगे, उनके लिये यह सब कुछ भी मुश्किल नहीं है। लेकिन मेवाड़ के महाराणा फतेहसिंह! तुम्हारा हाथ नजराने के लिये कैसे आगे बढ़ेगा? क्या मेवाड़ के महाराणा का पानी उतर गया है?

सकल चढ़ावै सीस, दान धरम जिण रो दिया।

सो खिताब बगसीस, लवण किम  ललचावसी।

अर्थात् मेवाड़ सारे हिन्दुस्तान की प्रतिष्ठा है। सभी ने आदर के साथ इसे अपना सिर झुकाया है। उसके दिये हुए दान-धर्म को उपनी पलकों पर धारण किया है! उसी मेवाड़ का महाराणा आज फिरंगियों के अकिंचन खिताब की याचना के लिये दिल्ली जायेगा? कैसे संभव होगा यह सब?

सिर झुकिया सहसाह, सींहासण जिण सांमने।

रळणो  पंगत राह,  फाबै  किम  तोनै  फता।

अर्थात् यह मेवाड़ का सिंहासन था जिसके सामने बड़े-बड़े बादशाहों का दर्प खंडित हो गया था। जिन्होंने मेवाड़ के सिंहासन को अपना सिर झुकाया था, आज उसी मेवाड़ का महाराणा फिरंगियों के सिंहासन को मस्तक नवाने दिल्ली जायेगा? दस्तक देने वालों की पांत में खड़ा बाट निहारेगा? मेवाड़ के महाराणा फतेहसिंह यह तुम्हें कैसे फबेगा?

देखै लो हिंदवाण, जिन सूरज दिस नेह सूं।

पण तारा परमांण, निरख निसासां  नांखसी।

अर्थात् सारे हिन्दुस्तान ने मेवाड़ को अपना सूर्य माना है। पर मेवाड़ का वही सूर्य जब अंग्रेजों के खिताब द्वारा केवल तारे के रूप ही में शेष रह जायेगा तब देश की आशा पर तुषारापात हो जायेगा। हिन्दुस्तान के वासी अपनी आशा के सूर्य को तारे में परिणित होते देख सर्द निसासें भरेंगे। महाराणा तुम्हारी बुद्धि सठिया तो नहीं गई है ? अपनी नहीं तो मेवाड़ की तो लाज रखो!

देखै अंजस दीह, मुळकलो मन ही मनां।

दंभी गढ दिल्लीह, सीस नमंतां सीसवद।

अर्थात् मेवाड़ का महाराणा जब सिर झुका कर दिल्ली की फिरंगी बादशाह की बंदगी करेगा, विदेशी सल्तनत को माथा टेककर उसकी अधीनता स्वीकार करेगा, तब दिल्ली का अभिमानी किला कितना गौरवान्वित होगा? वह दिन भी उसके लिये कितने गर्व का होगा जब अपने सामने महाराणा को सिर नवाते पायेगा। तब किले का एक-एक पत्थर, मन ही मन मुस्करा उठेगा, बेबस महाराणा की लाचारी पर! मेवाड़ के परंपरागत गौरव पर! वह व्यंग्य भरी मुस्कुराहट तुम्हें कैसे सहन होगी?

अन्तबेर आखीह, पातळ  जो  बातां पहलं

रांणा सह राखीह, जिण री साखी सिरजटा।

अर्थात् राणा प्रतापसिंह ने मरते समय अंतिम बार जो अभिलाषाएं प्रगट की थीं उनको सभी ने आज तक निभाया है और तुम्हारे सिर की यह जटा भी उन बातों की साक्षी दे रही है! फिर तुम कैसे भरमा गये? अपनी जटा को देखो और मेवाड़ के सम्मान को पहिचानो।

कठण जमाणो कोल, बांधै नर हीमत बिनां।

बीरां  हन्दो  बोल, पातळ  सांगै  पखियौ।

अर्थात् वचनों को निभाना बहुत ही कठिन है। फिर भी कुछ मनुष्य हिम्मत न होने पर भी अपने वचनों को गंाठ बांध कर उनका पालन करने की चेष्टा करते हैं। फिर प्रताप और संागा तो अतुलनीय वीर थे और उन्होंने अपने वचनों को निभाया था। उनके वंशज होकर, आज तुम्हें यह बात याद दिलाने की आवश्यकता कैसे पैदा हो गई?

अब लग सारां आस, रांण रीत कुळ राखसी।

रहो  साहि  सुखरास, अकलिंग प्रभु आपरै।

अर्थात् हब सब को तो अब यही आशा है कि आप मेवाड़ के महाराणा हैं, इसलिये मेवाड़ का वंश गौरव तो निश्चय ही अखंडित बना रहेगा। मेवाड़ के इष्टदेव एकलिंग तुम्हारे सहाय हैं। अनंत सुख-राशि का यह देव तुम्हें हमेशा सुख और सम्मान प्रदान करता रहेगा।

मांन मोद सीसोद, राजनीत बळ राखणो।

गवरमिंट री गोद, फळ मीठा दीठा फता।

अर्थात् हे सिसोदिया वंश के राणा फतेहसिंह, अपने देश की मर्यादा और उसके अभिमान को अपने बलबूते पर कायम रखो! असहाय की तरह, फिरंगी की गोदी में रखे हुए मीठे फलों को ताकने से कुछ भी परिणाम नहीं होगा। यह केवल भ्रम मात्र है! अंग्रेजी साम्राज्य की गोद में धरे हुए मीठे फलों की तरफ ताकना छोड़ो और अपने कर्त्तव्य को पहिचानो! यह मेवाड़ है, और तुम उसी के महाराणा हो।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source