जब राजे-रजवाड़े समाप्त हो गये तब भारत की पूर्व रियासतों के राजाओं, रानियों, नवाबों और बेगमों, सामंतों, जागीरदारों एवं उनसे सम्बद्ध मुसाहिब आदि राजसी व्यक्तियों के समक्ष यह प्रश्न था कि वे अपने आपको नये परिवेश एवं नवीन भूमिका में कैसे ढालें ! नवीन भूमिका को पहचानना तथा उसके साथ तालमेल बैठाना सरल कार्य नहीं था। यही कारण था कि आजादी के बाद अधिकांश राजा-महाराजा लड़खड़ा गये और लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में संतुलन नहीं साध सके। युद्धों और संधियों का युद्ध बीत चुका था।
ब्रिटिश शासन की छत्रछाया में रहकर पेंशनभोगी की तरह आराम करने का युग भी बीत चुका था। अब जो कुछ भी करना था, अपने विवेक एवं अपने बलबूते पर करना था। अब राजा का जन्म रानी के पेट से न होकर मतपेटी के पेट से होना था। इसलिये बहुत से राजा-रानी एवं जागीरदार चुनावी राजनीति में हाथ आजमाने लगे। उनमें से कुछ तो वहाँ भी नहीं जम सके और शीघ्र ही राजनीति से बाहर हो गये। बहुत कम राजपरिवार ही ऐसे हैं जो आज तक सफलतापूर्वक वहीं डटे हुए हैं।
भारत के जिन राजपरिवारों ने आजादी के बाद की नवीन एवं बदली हुई परिस्थितियों से तालमेल बैठाने में अद्भुत सफलता प्राप्त की, उनमें से मेवाड़ का गुहिल राजवंश भी एक है किंतु मेवाड़ राजवंश ने चुनावी राजनीति को चुनने की बजाय रचनात्मक भूमिका का चयन किया तथा भारत के नवनिर्माण का काम हाथ में लिया। यही कारण है कि स्वतंत्र भारत में मेवाड़ राजपरिवार ने भारत के राष्ट्रीय परिदृश्य पर अपनी अलग पहचान बनाई है।
4 जुलाई 1955 को महाराणा भूपालसिंह के निधन के साथ ही उन्हें मिला राजस्थान के महाराजप्रमुख का आजीवन पद समाप्त हो गया। उनके उत्तराधिकारी महाराणा भगवतसिंह ने मेवाड़ में कला, संस्कृति एवं इतिहास के संरक्षण तथा सांस्कृतिक एवं समाजिक संस्थाओं के पुनरुत्थान का काम नये सिरे से आरम्भ किया तथा ई.1984 तक वे इस कार्य में संलग्न रहे। 20 अक्टूबर 1969 को उन्होंने महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन की स्थापना की जिसका लक्ष्य परमात्मा की सृष्टि में उत्पन्न प्रत्येक रचना को संरक्षण देना एवं प्राणी मात्र के उन्नयन हेतु काम करना रखा गया। पूरे विश्व में इतने बड़े उद्देश्य को लेकर स्थापित की गई यह पहली और अब तक की एकमात्र संस्था है।
अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह संस्था दिन रात काम में जुटी हुई है। ई.1980 से इस संस्था द्वारा साहित्य, कला, संगीत, हस्तशिल्प, विज्ञान, समाज सेवा, चिकित्सा एवं शिक्षा आदि क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले व्यक्तियों को प्रति वर्ष पुरस्कृत किया जाता है तथा कलाकारों एवं विद्यार्थियों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाती है। इस संस्था की प्रसिद्धि, भारत की सीमाओं से बाहर, सात समंदर पार तक भी है। अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण महाराणा भगवतसिंह को राष्ट्रीय स्तर पर मि. मेवाड़ के नाम से प्रसिद्धि मिली। महाराणा भगवतसिंह के बड़े पुत्र महेन्द्रसिंह मेवाड़, राजनीति में सक्रिय हो गये तथा चित्तौड़गढ़ लोकसभा सीट से 9वीं लोकसभा के सदस्य चुने गये।
मेवाड़ के महाराणाओं की ऐतिहासिक विरासत के 76वें उत्तराधिकारी के रूप में वर्तमान समय में महाराणा भगवतसिंह के दूसरे नम्बर के पुत्र अरविंदसिंह मेवाड़ ने पर्यटन विकास, ऊर्जा संरक्षण, विश्व-मैत्री संवर्द्धन आदि क्षेत्रों में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट पहचान बनाई है। मेवाड़ की परम्परा के अनुसार उन्हें ‘‘श्रीजी’’ सम्बोधित किया जाता है। उन्होंने शिक्षा, कला, ऐतिहासिक विरासत के संरक्षण एवं होटल उद्योग के विकास के लिये भी अनेक अभिनव कार्य किये हैं। अरविंद सिंह मेवाड़ ने उदयपुर में गार्डन होटल, शिकारवाड़ी होटल, शिवनिवास होटल, फतह प्रकाश होटल, दरबार हॉल, अरसी विलास, क्रिस्टल गैलेरी, सिटी पैलेस म्यूजियम, जगमंदिर, द प्रोमेनेड, जनाना महल आदि अनेक स्थानों को सुंदर एवं दर्शनीय बनाया है। शिकारवाड़ी में एयरपोर्ट का निर्माण किया ताकि वहाँ से एयरचार्टर सर्विस आरम्भ की जा सके। इसके कार्यालय उदयपुर, बीकानेर एवं जैसलमेर में आरम्भ किये गये हैं। उनके प्रयासों से उदयपुर नगर एवं सम्पूर्ण प्रदेश की पर्यटन आय में वृद्धि हुई है तथा हजारों लोगों को रोजगार मिल सका है।
उन्होंने ‘महाराणा मेवाड़ स्पेशल लाइब्रेरी’ तथा ‘महाराणा मेवाड़ शोध संस्थान’ के माध्यम से पर्यटकों के लिये साहित्य एवं शोध हेतु आदर्श स्थल का निर्माण किया है। स्पेशल लाइब्रेरी पूर्णतः कम्प्यूटरीकृत है तथा आधुनिक साधन-सुविधाओं से सम्पन्न है। ‘महाराणा मेवाड़ हिस्टोरिकल पब्लिकेशन ट्रस्ट’ के माध्यम से उच्च कोटि के ग्रंथों का प्रकाशन किया जा रहा है। उन्होंने ‘महाराणा कुम्भा संगीत कला ट्रस्ट’ जैसी संस्था भी स्थापित की है।
अश्वारोहण के क्षेत्र में ‘उदयपुर एक्वाइन संस्थान’ एवं ‘चेतक ट्रस्ट’ की स्थापना की है। इसी प्रकार क्रिकेट संस्थान एवं पोलो फेडरेशन भी बनाये गए हैं। श्री एकलिंग मंदिर कैलासपुरी, श्री हस्तीमाताजी, श्री महासत्याजी, श्री अम्बामाताजी, श्री देवराजेश्वर जी उदयपुर, श्री राजराजेश्वरजी देबारी, श्री हरचन्द्रेश्वरीजी-भुवाणा, श्री आसावरा माताजी- आसावरा, आदि देवालयों का जीर्णोद्धार एवं सौन्दर्यकरण किया गया है। प्रोमेनेड सिटी पैलेस में स्थित श्री रामेश्वर जी महादेव के जीर्ण मंदिर तथा सिटी पैलेस की हनुमान पोल में स्थित हनुमानजी के मंदिर का भी पुनर्निर्माण करवाया है।
अरविंदसिंह के प्रयासों से मेवाड़ में अनेक फाउंडेशन एवं धर्मार्थ संस्थाएं संचालित की जा रही हैं जिनसे मंदिरों, पुस्तकालयों एवं विद्यालयों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। मेधावी छात्रों, लेखकों, खिलाड़ियों एवं विद्वानों को अध्ययन-अध्यापन एवं शोध कार्यों के लिए छात्रवृत्तियां, पुरस्कार एवं आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल फाउण्डेशन, श्री परमार्थ फण्ड, श्री सदाव्रत फण्ड, श्री हेम का गोला फण्ड, मांजी साहब चावड़ीजी का फण्ड, राजमाता गुलाब कंवर ट्रस्ट, महाराणा मेवाड़ मानव धर्म ट्रस्ट श्री गोवर्द्धन ट्रस्ट, महाराणा मेवाड़ डिस्पेंसरी आदि संस्थाओं के माध्यम से परमार्थ के अनेक कार्य करवाए जा रहे हैं। अरविंदसिंह के प्रयासों से देश में पहली बार पीछोला झील में सौर ऊर्जा चालित सोलर बोट की भी शुरुआत की गई।
अरविंदसिंह के पुत्र लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ भी सांस्कृतिक जागरण के काम में अपने पिता का हाथ बंटा रहे हैं। मेवाड़ राजवंश की यह रचनात्मक भूमिका अनूठी होने के साथ-साथ प्राचीन वंश गौरव को आगे बढ़ाने वाली है तथा राष्ट्रीय परिदृश्य पर रचनात्मक पकड़ बनाये रखने वाली है।