वर्तमान समय में सूरतगढ़ दुर्ग के नाम से जिस दुर्ग के अवशेष राजस्थान के गंगानगर जिले के सूरतगढ़ कस्बे में स्थित हैं, वह अठारहवीं शताब्दी में राठौड़ों द्वारा बनवाया गया था किंतु इसी स्थान पर एक दुर्ग अत्यंत प्राचीन काल में भी स्थित था जिसे महाभारत कालीन यौधेय जाति ने बनवाया था।
पाणिनी ने भी अपने ग्रंथ में यौधेय जाति का उल्लेख किया है। इनका मूल स्थान पंजाब था। जब सिकंदर ने पंजाब पर आक्रमण किया तो यौधेय राजस्थान आ गये। बयाना के विजयचंद्र गढ़ से छठी शताब्दी ईस्वी में प्रयुक्त होने वाली लिपि में एक टूटा हुआ शिलालेख मिला है जिसमें लिखा है- यौधेयगणपुरस्कृतस्य महाराजमहासनापतेः पु…। ये यौधेय ही जोहिये कहलाते थे।
राजस्थान में जोहियों के के दुर्ग भटनेर दुर्ग के आसपास थे। जब राजस्थान पर मुसलमानों के आक्रमण हुए तो उन्होंने अधिकांश जोहियों को मुसलमान बना लिया। इससे जोहियों को अन्य हिन्दू राजाओं का समर्थन प्राप्त होना बंद हो गया और उनके दुर्ग भाटियों एवं बीकानेर के राठौड़ों द्वारा छीन लिये गये। अब मूलतः जोहियों का बनाया हुआ कोई दुर्ग उपलब्ध नहीं है तथापित अनूपगढ़ दुर्ग तथा सूरतगढ़ दुर्ग जोहियों द्वारा बनवाये गये थे जिन्हें बाद में राठौड़ों द्वारा नये सिरे से बनवाया गया।
सूरतगढ़ दुर्ग
श्रीगंगानगर से 78 किलोमीटर दक्षिण में सूरतगढ़ नामक एक प्राचीन कस्बा स्थित है जिसका मूल नाम सोढल था। यहाँ जोहियों का एक प्राचीन दुर्ग था जो सोढल के नाम से प्रसिद्ध था। बीकानेर नरेश सूरतसिंह ने ई.1799 में यहाँ एक नया किला बनवाया जो सूरतगढ़ दुर्ग कहलाया।
नया किला पूरी तरह ईंटों से बनवाया गया था, बहुत सी ईंटें निकटवर्ती बौद्ध स्थलों से लाकर लगाई गई थीं। इनमें से कुछ ईंटें तो सादी थीं तथा कुछ पर कुछ अंकन किए हुए थे। अधिकतर ईंटें रंगमहल से लाई गई थीं। रंगमहल भी यौधेयों का प्राचीन एवं महत्वपूर्ण स्थल था। संभवतः रंगमहल में भी कोई दुर्ग रहा होगा जिसे गुप्तों का राज्य बिखर जाने के बाद, हूणों ने नष्ट कर दिया होगा।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सूरतगढ़ दुर्ग में तहसील कार्यायल तथा पुलिस थाना खोला गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता