सहर दुर्ग करौली जिले के नादौती कस्बे के पास एक पहाड़ी पर स्थित है। सेहरा माता के नाम पर यह कस्बा, सहर अथवा शहर के नाम से जाना जाता है। पहले यहाँ मीणाओं का शासन था किन्तु बाद में आम्बेर रियासत के अधीन पच्याणोत कछवाहों का ताजीमी ठिकाना बन गया।
सहर के जागीरदार आम्बेर के कछवाहा राजा पृथ्वीराज के पुत्र पच्याण के वंशज थे। पच्याण के पौत्र तथा बिट्ठलदास के कनिष्ठ पुत्र हरिदास से सहर के शासकों का वंशक्रम चला। सहर के पच्याणोत कछवाहे एक से बढ़कर एक वीर और प्रतापी हुए। चंद कवि विरचित ‘कूर्मविलास’ में भारमल द्वारा प्रदर्शित वीरता और पराक्रम की इस प्रकार प्रशंसा की गई है-
सहर भूप भारमलहि गहर वीरता खानि।
कर कोप झेल सको दरजन दूर न भान।।
सहर दुर्ग के निर्माता
सहर दुर्ग का निर्माण पच्याणोत कछवाहों द्वारा किया गया।
सहर दुर्ग की श्रेणी
यह गिरि दुर्ग, पारिघ दुर्ग तथा ऐरण श्रेणी का दुर्ग है।
सहर दुर्ग की सुरक्षा व्यवस्था
सहर दुर्ग एक ऊंची पहाड़ी पर निर्मित विशाल दुर्ग है तथा ऊंची बुर्जों से घिरा हुआ है। ऊपर तक पहुंचने के लिए विशाल घुमावदार खुर्रा बना हुआ है। यह दुर्ग, सुरक्षा की दृष्टि से सभी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम था। शत्रु के संभावित आक्रमण के समय आपातकाल में दुर्ग से बाहर निकलने के लिये पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशाओं में तीन गुप्त सुरंगे बनी हुई थीं। इनमें से एक सुरंग किले के पीछे की तरफ एक अंधे कुंए तक जाती थी तो दूसरी का निकास महंतजी के मंदिर में था।
एक अन्य सुरंग बाहर सुरक्षित स्थान पर निकलती थी। सहर की सारी बसावट परकोटे के भीतर थी। यह परकोटा पक्की काली मिट्टी एवं मोरीन्डे का बना था जिसके चारों और गहरी खाई थी। उसके ध्वंसावशेष आज भी विद्यमान हैं। कुछ वर्ष पूर्व बारूद के विस्फोट से इसकी एक बुर्ज एवं प्राचीन दीवार क्षतिग्रस्त हो गई।
दुर्ग में प्रवेश
प्राचीर का मुख्य दरवाजा उत्तर दिशा में था। सोप दरवाजा, कैमा दरवाजा तथा खूड़ दरवाजा प्रमुख प्रवेश द्वार थे। इनका नामकरण निकटवर्ती गांवों के नाम पर हुआ था, जहाँ से इन गांवों के लिए मार्ग जाते थे।
दुर्ग का स्थापत्य
दुर्ग का स्थापत्य देखने योग्य है। दुर्ग परिसर में जनाने और मरदाने महल, सिलहखाना (शस्त्रागार), अन्न भंडार तथा जल संचित करने के दो विशाल टांके हैं। इनमें से एक जीर्ण अवस्था में है।
दुर्ग में स्थित मंदिर
किले के भीतर एक लघु चट्टान पर देवी सेहरा माता का प्राचीन मंदिर स्थित है। प्रतिवर्ष चौत्रीय नवरात्रियों में विशाल मेला भरता है। देवी मंदिर के पास ही सीतारामजी का मंदिर विद्यमान है।
दुर्ग के भित्तिचित्र
सहर दुर्ग में स्थित राजप्रसादों, मंदिरों, हवेलियों तथा शासकों की छतरियों में रियासती कालीन भित्तिचित्र बने हुए हैं। अवतारों, राग-रागनियों, पंचतंत्र की कथाओं, ढोला-मारवणी, अहिल्या उद्धार, तुलसीदास-तारा और धीवर तथा युद्ध अभियान के दृश्य दर्शनीय हैं। सामोद, दूदू, ईसरदा, पचेवर तथा अन्य ठिकानों के महलों में बने चित्रों की तरह सहर के चित्रकारों ने भी अपनी तूलिका का जो कमाल दिखाया है, देखते ही बनता है।
सहर दुर्ग का इतिहास
पचयाणोत कछवाहों के वंश में दुरजनसिंह और उदयसिंह अतुल वीर हुए। उदयसिंह का पुत्र जगन्नाथ, मिर्जाराजा जयसिंह (प्रथम) के सेनानायकों में से था। सहर के राजा उम्मेदसिंह पच्याणोत ने जयपुर राज्य की ओर से अनेक युद्ध अभियानों में भाग लिया तथा जयपुर और भरतपुर रियासत के बीच दिसम्बर ई.1767 में हुए मांवडा मंढोली के युद्ध में वीरगति प्राप्त की।
ठाकुर रघुनाथसिंह के शासनकाल में होल्कर की सेना ने सहर पर आक्रमण किया तथा किले को घेर लिया परन्तु पच्याणोतों के प्रबल प्रतिरोध के कारण किले का पतन नहीं हो सका एवं पच्याणोतों ने मरहठा सैनिकों के शस्त्र आदि छीन लिए। कूर्मविलास में सहर के ठाकुर अमरसिंह द्वारा अशरफ खाँ के साथ युद्ध करने का उल्लेख हुआ है। सहर का जागीरदार जसवन्तसिंह एक प्रजावत्सल शासक था। उसके पुत्र कर्नल वीरेन्द्र सिंह ने ई.1971 के भारत-पाक युद्ध में वीरता का प्रदर्शन कर अपने यशस्वी पूर्वजों की वीरोचित परम्परा का निर्वाह किया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता