महाराणा सज्जनसिंह (ई.1874-84) ने उदयपुर में सज्जनगढ़ नामक लघु-दुर्ग एवं राजप्रासाद का निर्माण करवाया।
18 अगस्त 1883 को सज्जनगढ़ में प्रवेश का उत्सव किया गया। इस उत्सव में महाराणा तथा उसके सामंतों ने भाग लिया। यह गढ़ उदयपुर से तीन किलोमीटर पश्चिम में पिछोला झील से अम्बामाता होकर पई जाने वाले मार्ग पर बांसदरा पहाड़ी पर बनाया गया है।
सज्जनगढ़ पहाड़ी समुद्र तल से 3100 फुट की ऊँचाई पर तथा अपने आसपास की धरती से 1100 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। प्राकृतिक वनावली के बीच स्थित होने से इस दुर्ग में रोगनाशक वायु का प्रवाह होता है। इस कारण दुर्ग के बारे में एक कहावत कही जाती है- ‘सज्जनगढ़ की हवा, सौ रोगों की दवा।’
वर्तमान में यह दुर्ग पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। इसमें पूर्व की ओर देबारी घाटे से, पश्चिमी की ओर सीसारमा घाटी से, उत्तर की ओर चीरवा घाटे से तथा दक्षिण की ओर केवड़ा की नाल से पहुंचा जा सकता है। पूरा दुर्ग दो मंजिला बना हुआ है।
महाराणा सज्जनसिंह के बाद महाराणा फतहसिंह ने भी इस दुर्ग के परिसर में अनेक भवनों का निर्माण करवाया। नीचे की मंजिल में कई स्तम्भों से युक्त विशाल सभा मण्डप बना हुआ है। स्तम्भों पर फूल, पत्तियां, घटगुल्म तथा लड़ियां बनी हुई हैं।
दूसरी मंजिल पर परेवा पत्थर के दो कलात्मक झरोखे बने हुए हैं। इसके आगे आमरवास है जहाँ महाराणा अपने सरदारों के साथ बैठक करते थे। नीचे तहखाना है जो रानियों तथा अन्य महिलाओं के आवागमन के लिये था। सज्जनगढ़ दुर्ग परिसर में एक सुंदर उद्यान बना हुआ है जिसमें कलात्मक फव्वारे लगे हुए हैं। इन फव्वारों में जल की आपूर्ति के लिये ऊपर की ओर पानी का हौज बना हुआ है।
महाराणा भगवतसिंह ने ई.1955 में सज्जनगढ़ दुर्ग को राज्य सरकार को समर्पित कर दिया। वर्तमान में इस दुर्ग में पुलिस का वायरलैस केन्द्र चलता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता