लक्ष्मणगढ़ दुर्ग सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ कस्बे में स्थित है। इसे सीकर के राजा लक्ष्मणसिंह ने ई.1862 में बेड़ पहाड़ी की लगभग 300 फुट ऊंची चोटी पर बनवाया था।
यह दुर्ग सीकर से 30 किलोमीटर दूर स्थित है। लक्ष्मणगढ़ कस्बे की स्थापना भी सीकर के राजा लक्ष्मणसिंह ने की थी।
लक्ष्मणगढ़ कस्बे की सबसे शानदार इमारत इसका छोटा किला (झुनझुनवाला परिवार के स्वामित्व वाला) है जो इसके पश्चिम की ओर अच्छी तरह से बसी हुई बस्ती पर बना हुआ है।
सीकर के राजा लक्ष्मण सिंह ने 19वीं सदी की शुरुआत में कान सिंह सलेधी द्वारा समृद्ध शहर की घेराबंदी के बाद किले का निर्माण करवाया था। लक्ष्मणगढ़ दुर्ग पूरी दुनिया में वास्तुकला का एक अनूठा नमूना है क्योंकि यह संरचना विशाल चट्टानों के बिखरे हुए टुकड़ों पर बनी है। इस दुर्ग के निकट ही हमीरपुरा नामक ठिकाना है जिसका नामकरण लक्ष्मणसिंह के पुत्र युवराज हमीर सिंह के नाम पर रखा गया था।
पहाड़ी का आधार लगभग 500 गज तथा शीर्ष भाग लगभग 300 गज की परिधि में है। इस दुर्ग के चारों ओर सघन रेगिस्तान हुआ करता था। लक्ष्मणगढ़ दुर्ग 20 फुट मोटे प्राकार से घिरा हुआ है। इस प्राकार में केवल ऊंची-ऊंची बुर्जें बनी हुई हैं, दीवार नहीं है।
दूसरे शब्दों में यह कहना गलत नहीं होगा कि यह पूरा दुर्ग एक बुर्ज के भीतर बना हुआ है। एक बुर्ज दूसरे से मिलकर एक शृंखला की कड़ियों की तरह गोलाकार घूमकर दुर्ग को घेरे हुए हैं। एक ही बुर्ज आधार से खड़ी होकर शीर्ष भाग तक जाने के कारण इनकी ऊंचाई बहुत अधिक हो गई है। आधार पर इनका घेरा औसतन 40 फुट तथा मोटाई 20 फुट है।
बुर्जों के शीर्षों पर तोपों के रखने की जगह बनी हुई है तथा कुछ नीचे की ओर तीरों एवं गोलियों की मोरियां बनी हुई हैं। प्राचीर की मोटाई इतनी अधिक होने से यह तोप के गोलों से सुरक्षित था। बुर्ज सीधी खड़ी हुई है तथा शीर्ष भाग पर अंदर की ओर झुक गई है।
इस प्रकार का यह अकेला दुर्ग राजस्थान में उपलब्ध है। बुर्ज पर सीढ़ियों से चढ़ना भी कठिन है। पहाड़ी भी एक दीवार की तरह काम करती है। दुर्ग से एक गुफा भैरव मंदिर तक जाती है।
अब लक्ष्मणगढ़ नगर के मध्य आ गया है तथा बालुका स्तूप विलुप्त हो गये हैं। दुर्ग का मुख्य द्वार काफी विशाल, ऊंचा एवं सुदृढ़ है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एक धनी सेठ ने इस दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता