किशनगढ़ के महाराजा रूपसिंह राठौड़ ने सत्रहवीं शताब्दी ईस्वी में रूपनगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया। यह एक मरुस्थलीय दुर्ग है तथा चारों ओर मजबूत परकोटे से घिरा हुआ है। यह स्थल दुर्ग की श्रेणी में आता है। जिस समय इस दुर्ग का निर्माण किया गया, उस समय यह दुर्ग जंगल के बीच में स्थित था, इस कारण इसे ऐरण दुर्ग की श्रेणी में भी रखा जा सकता है।
ई.1654 में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने किशनगढ़ के महाराजा रूपसिंह को वजीर सादुल्ला खाँ के साथ चित्तौड़ पर आक्रमण करने भेजा। रूपसिंह द्वारा मचाई गई भयंकर मारकाट के कारण ही बादशाह चित्तौड़ पर पुनः अधिकार करने में समर्थ हो सका। इसके फलस्वरूप बादशाह ने उसे चार हजारी जात और चार हजार सवारों का मनसब दिया। बाद में महाराजा रूपसिंह को पांच हजारी जात और पांच हजार सवारों का मनसब भी दिया गया।
चित्तौड़ में की गई सेवा के बदले में महाराजा रूपसिंह, किशनगढ़ के पास खोड़ा नामक स्थान पर बड़ा किला बनाना चाहता था। शाहजहाँ को यह अच्छा नहीं लगा कि मुसलमानों की दूसरी राजधानी कहे जाने वाले अजमेर के निकट राजपूतों का कोई किला बने। इसलिये शाहजहाँ ने रूपसिंह से कहा कि वह खोड़ा में किला न बनवाये।
शाहजहां, रूपसिंह को नाराज भी नहीं करना चाहता था, इसलिये उसने रूपसिंह को मेवाड़ का मांडलगढ़ दुर्ग दे दिया। मांडलगढ़, गुहिलों का पुराना दुर्ग था, इसलिये उस पर कब गुहिल आकर बैठ जायें, इसका कोई भरोसा नहीं था, इसलिये रूपसिंह ने कहीं अन्यत्र दुर्ग बनाने का निश्चय किया तथा रूपन नदी के तट पर नया दुर्ग बनवाया।
बाद में यही महाराजा रूपसिंह, शामूगढ़ की लड़ाई में औरंगजेब के हाथी की अम्बारी काटकर वीरगति को प्राप्त हुआ। रूपसिंह के वंशज महाराजा बहादुरसिंह ने रूपनगढ़ दुर्ग की मरम्मत करवाई तथा किले का सुदृढ़ीकरण किया।
यह दुर्ग जोधपुर और जयपुर रियासतों की सीमाओं पर बहने वाली रूपन नदी के तट पर स्थित है तथा किशनगढ़ से 25 किलोमीटर उत्तर में खड़ा है। दुर्ग का विस्तार एक किलोमीटर क्षेत्र में है। यह दुर्ग गहरे सलेटी रंग में बना हुआ है तथा वर्गाकार आकृति में निर्मित है। इसकी प्राचीर में ऐसा कोई छिद्र या बुर्ज नहीं है जिससे दुर्ग के भीतर झांका जा सके। इस प्रकार दुर्ग के बाहर से भीतर का कोई निर्माण या पेड़ दिखाई नहीं देता। इस दुर्ग के बाहर एक शरणगृह तथा दुर्ग के चारों ओर एक परिघा बनी हुई थी जो अब नष्ट हो गई है।
रूपनगढ़ दुर्ग की प्राचीर में नौ बुर्ज बनी हुई हैं। दुर्ग के भीतर राजसी महल, शस्त्रागार, बारूदखाना भूमिगत गलियारे, जेल तथा अन्य निर्माण देखे जा सकते हैं। दुर्ग के महलों में किशनगढ़ शैली के चित्र बने हुए हैं। इस दुर्ग का निर्माता रूपसिंह स्वयं भी अच्छा चित्रकार था। ई.1997 में रूपसिंह के वंशजों ने इस रूपनगढ़ दुर्ग को हेरिटेज होटल में बदल दिया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता