राजस्थान के दुर्ग कब से बनने आरम्भ हुए, इस सम्बन्ध में कोई निश्चित तिथि या काल का निर्धारण नहीं किया जा सकता। ऋग्वेद के कुछ मंत्रों की रचना राजस्थान में बहने वाली सरस्वती नदी के तट पर रहने वाले ऋषियों द्वारा की गई थी। अतः अनुमान है कि उस काल में इस क्षेत्र में मानव निवास रहा होगा। सरस्वती के प्रवाह क्षेत्र में हनुमानगढ़ जिले में जो रेतीले थेड़ मिलते हैं, उनके नीचे उस काल की सभ्यता दबी हुई है। अनुमान होता है कि उस काल के कुछ दुर्ग भी इन थेड़ों की खुदाई से प्राप्त हो सकते हैं।
सिंधुघाटी सभ्यता के काल में राजस्थान में कुछ दुर्ग बने थे। यह सभ्यता आज से लगभग आठ हजार साल पहले विकसित होनी आरम्भ हुई थी। सिंधु सभ्यता की प्रांतीय राजधानी कहे जा सकने वाले कालीबंगा की खुदाई से प्राप्त दुर्ग के अवशेष राजस्थान में अब तक प्राप्त प्राचीनतम दुर्ग के अवशेष हैं। यह तृतीय कांस्य कालीन सभ्यता थी।
निर्माण काल की दृष्टि से राजस्थान के दुर्गों का वर्गीकरण-
राजस्थान के दुर्ग अध्ययन की दृष्टि से निम्नानुसार वर्गीकृत किये जा सकते हैं-
1. पाषाण कालीन युग से लेकर ताम्र-पाषाण कालीन सभ्यताओं में बने दुर्ग- इस श्रेणी में कालीबंगा का दुर्ग, आहड़ का दुर्ग तथा बालाथल सभ्यता के दुर्ग रखे जा सकते हैं जिनके अब केवल ध्वंसावशेष ही खुदाई में प्राप्त हो सके हैं।
2. महाभारत कालीन दुर्ग यद्यपि अब नष्ट हो चुके हैं किंतु चित्तौड़ दुर्ग तथा बायाना दुर्ग के स्थानों को महाभारतकालीन दुर्गों के स्थल के रूप में चिह्नित किया जा सकता है।
3. प्राचीन क्षत्रियों यथा मौर्यों, नागों, गुप्तों, यदुवंशियों के दुर्ग- इस श्रेणी में मण्डोर का दुर्ग, नागौर का दुर्ग, आदि रखे जा सकते हैं।
4. राजपूत राजाओं द्वारा बनाये गए दुर्ग- इस श्रेणी में चौहानों, प्रतिहारों, परमारों, भाटियों, राठौड़ों, कच्छवाहों आदि राजपूत राजाओं द्वारा बनवाये गए दुर्ग रखे जा सकते हैं।
4. अन्य शासकों यथा मीणों, जाटों एवं मराठों द्वारा बनवाये गए दुर्ग, ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा बनवाये गए दुर्ग आदि आदि रखे जा सकते हैं।
ईस्ट इण्डिया कम्पनी का राजस्थान के दुर्ग निर्माण पर प्रभाव
राजस्थान के दुर्ग मध्यपाषाण काल से लेकर तब तकबनते रहे जब तक कि राजपूत रियासतें ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ अधीनस्थ समझौतों और सुरक्षा की संधियों से नहीं बंध गईं। इन संधियों में यह प्रावधान था कि कोई भी देशी राज्य, ईस्ट इण्डिया कम्पनी की अनुमति के बिना, किसी दूसरे राज्य पर आक्रमण नहीं करेगा।
यह प्रावधान भी किया गया कि किसी भी देशी राज्य पर किए गए बाह्य आक्रमण अथवा आंतरिक विद्रोह से निबटने का कार्य ईस्ट इण्डिया कम्पनी करेगी। इन संधियों का परिणाम यह हुआ कि राजाओं ने परस्पर युद्ध करना लगभग बंद कर दिया। इस कारण दुर्गों के निर्माण की आवश्यकता भी समाप्त हो गई।
हवाई जहाजों का दुर्ग निर्माण पर प्रभाव
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रभुत्व काल में भी राजपूताना के अधिकांश दुर्ग प्रचलन में बने रहे। अधिकांश राजाओं के परिवार इन्हीं दुर्गों में बने महलों में निवास करते रहे जो उनकी प्रभुसत्ता, प्रभाव एवं सुरक्षा की गारण्टी थे। इन दुर्गों का उपयोग राजपरिवारों के आवासीय सुरक्षाकवच के रूप में, शक्ति और वैभव के प्रतीक के रूप में तथा अंग्रेज अधिकारियों और उनकी मेमों के स्वागत के लिये विस्मयकारी विलास स्थलों के रूप में होता रहा किंतु जब उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में हवाई जहाजों और युद्धक विमानों का प्रचलन हो गया तब दुर्गों की प्रासंगिकता लगभग समाप्त हो गई।
इस कारण राजाओं ने दुर्गों का निर्माण एवं उनका रख-रखाव बंद करके उनके स्थान पर अपने एवं अपने परिवार के लिये दुर्ग परिसर से बाहर किसी रमणीय स्थान पर विलासितापूर्ण राजमहलों, बंगलों एवं कोठियों का निर्माण करवाना आरम्भ कर दिया। इस कारण बहुत से दुर्ग या तो सरकारी कार्यालयों के रूप में काम आने लगे या फिर खण्डहर हो गये। इनमें से बहुत से दुर्ग निर्जन हो जाने के कारण तस्करों, चोरों, डाकुओं और स्थानीय जनता द्वारा लूटकर नष्ट-प्रायः कर दिये गये।
राजस्थान में दुर्गों की संख्या
मान्यता है कि राजस्थान में लगभग प्रत्येक 10 मील पर एक दुर्ग स्थित था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एक अनुमान के अनुसार देश में सर्वाधिक दुर्ग महाराष्ट्र में थे जिनकी संख्या 656 थी। इसके बाद मध्यप्रदेश का नम्बर आता था जहाँ 330 दुर्ग थे। राजस्थान तीसरे नम्बर पर था जहाँ लगभग 250 दुर्ग अस्तित्व में थे।
विश्व धरोहर सूचि में राजस्थान के दुर्ग
विश्व धरोहर समिति द्वारा घोषित विश्व धरोहर सूचि में राजस्थान के छः दुर्ग- आम्बेर, चित्तौड़गढ़, गागरोन, जैसलमेर, कुंभलगढ़ तथा रणथंभौर को सम्मिलित किया गया है।