मेड़ता-डेगाना मार्ग पर मेड़ता तहसील में स्थित मोररा गांव के निवासी मानते हैं कि लगभग डेढ़ हजार वर्ष पहले राजा मोरध्वज ने मोररा गांव बसाया और यहीं अपनी राजधानी स्थापित की। मारवाड़ में राजा मोरध्वज के सम्बन्ध में अनेक कहानियां कही जाती हैं, कहा नहीं जा सकता कि इन कहानियों का नायक राजा मोरध्वज कौन था और किस काल में हुआ था!
मान्यता है कि राजा मोरध्वज के समय में यह गांव मेड़ता शहर से भी बड़ा था किंतु किसी कारण गांव उजड़ता चला गया और वर्तमान स्वरूप में आ गया।
किसी समय यहाँ धोबियों तथा ठठेरों की अच्छी बस्ती थी। भाटों की बहियों से भी इस गांव के किसी समय समृद्ध होने की पुष्ट होती है। कई बार आस-पास की खुदाई करने एवं हल चलाने पर पुरानी बस्ती के अवशेष, बर्तन, ठीकरियां आदि निकलती है।
पहले यह गांव धांधड़ राजपूतों की जागीर में था किन्तु बाद में जोधा राजपूतों के पास आ गया। जोधा राजपूत मारवाड़ के राजा जोधा के वंशज थे। जोधा ने अपने राज्य से पुराने राठौड़ वंशी जागीरदारों को हटाकर अपने भाइयों एवं पुत्रों को जागीरें प्रदान कीं। मोररा गांव भी उनमें से एक था। इस गांव में रघुनाथजी का एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में किसी समय रघुदास महाराज महंत थे।
एक बार नागौर के मुस्लिम शासक ने राज्य के सारे साधु-सन्तों को पकड़कर जेल में डाल दिया तथा चक्कियां पीसने को कहा। जब रघुदासजी चक्की घुमाने लगे तो जेल की सारी चक्कियां घूमने लगीं। यह चमत्कार देख कर मुस्लिम शासक ने साधुओं को जेल से रिहा कर दिया।
रघुनाथजी के मंदिर के अतिरिक्त एक प्राचीन शिवालय, कुछ प्राचीन शिलालेख तथा मोररा के जागीरदार रायसिंह की देवली दर्शनीय है। रायसिंह 1857 के गदर में निमाज के पास अंग्रेजों से लड़ते हुए मारा गया था। वर्तमान समय में निमाज राजस्थान के पाली जिले में स्थित है।
-इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



