झालावाड़ जिले में स्थित मनोहरथाना दुर्ग मूलतः भीलों द्वारा बनवाया गया था। यह दुर्ग एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। भीलों का राजा चक्रसेन मनोहरथाना का प्रसिद्ध राजा हुआ। भीलों के हाथों से यह दुर्ग पहले कोटा रियासत के, उसके बाद मुगलिया सल्तनत के और अंत में झालावाड़ रियासत के अधीन हुआ।
मनोहरथाना नामकरण से पूर्व इसे खाताखेड़ी कहा जाता था। मुगल काल में खाताखेड़ी का दुर्ग मनोहर खाँ उर्फ मुनव्व्र खाँ के अधीन हुआ। उसने अपने नाम पर इसका नाम मनोहरथाना कर दिया। झालावाड़ रियासत के अधीन मनोहरथाना एक छोटा सा परगना था जिसके अंतर्गत 131 गांव थे।
मालवा और राजपूताने की सीमा पर स्थित होने से यह एक महत्वपूर्ण दुर्ग था। स्थापत्य की दृष्ट से भी यह महत्वपूर्ण दुर्ग है। यह दुर्ग तीन ओर परवन नदी तथा कालीखाड़ नदी से घिरा हुआ है। पूरा दुर्ग एक मोटी प्राचीर से सुरक्षित है। प्राचीर के बाहर एक गहरी खाई बनी हुई है। दुर्ग में प्रवेश करने के लिये खाई पर एक पुलिया बनी हुई है।
मनोहरथाना दुर्ग की मुख्य प्राचीर में तीन प्रवेश द्वार बने हुए हैं। दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार के बायीं ओर एक सुरंग बताई जाती है जिसका निकास दुर्ग से पांच किलोमीटर दूर एक गांव में है। वर्तमान में यह सुरंग बंद पड़ी है। दुर्ग के भीतर से बाहर जाने के और भी गुप्त मार्ग थे जो अब बंद कर दिये गये हैं।
रियासती काल में मनोहरथाना दुर्ग पर तोपें तैनात रहती थीं। कोटा राज्य के शासक एवं अधिकारी यहाँ शिकार खेलने आया करते थे। दुर्ग में दो-मंजिला महल के खण्डहर हैं। इस महल में रियासती काल में शासक परिवार के सदस्य ठहरते थे।
मनोहरथाना दुर्ग में अन्य देवी-देवताओं के साथ-साथ भीलों की आराध्य देवी विश्ववन्ती का मंदिर भी स्थित है। वर्तमान में यह दुर्ग वन विभाग के अधीन है तथा इसमें सार्वजनिक निर्माण विभाग द्वारा एक विश्राम गृह का संचालन किया जाता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता