भूमिका – राजस्थान में बौद्ध स्मारक तथा मूर्तियाँ पृष्ठ पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित पुस्तक राजस्थान में बौद्ध स्मारक तथा मूर्तियाँ की भूमिका स्पष्ट की गई है।
करुणा और दया के अवतार भगवान बुद्ध के उपदेशों से भारत भूमि ही नहीं, मध्य और दक्षिण एशिया का विस्तृत भूभाग भी अपार श्रद्धा से नतमस्तक हो गया। हजारों वर्षों से युद्ध की ज्वालाओं में जल रही मनुष्य जाति को बौद्ध धर्म के रूप में शांति और सद्भाव का ठण्डा समीर प्राप्त हुआ। परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म तेजी से चारों दिशाओं में फैल गया।
राजस्थान की वीर प्रसूता भूमि पर भी बौद्ध धर्म का व्यापक प्रभाव हुआ। बौद्ध धर्म के जोर के आगे सनातन वैदिक धर्म तथा जैन धर्म की आभा फीकी पड़ने लगी। चारों ओर लाखों बौद्ध भिक्षु सार्वजनकि मार्गों पर बुद्धं शरणं गच्छामि गाते हुए दिखाई देने लगे। इन भिक्षुओं ने बड़ी संख्या में बौद्ध विहार, मठ, शैलाश्रय एवं मूर्तियों का निर्माण किया। बैराठ, रैढ़, चित्तौड़, लालसोट, कोलवी, पुष्कर, रंगमहल आदि स्थल बौद्धों के बड़े केन्द्र थे।
अचानक ही भारत के इतिहास में भयानक मोड़ आया। मध्य एशिया से उठी एक काली आंधी ने राजस्थान से बौद्ध धर्म का सर्वनाश कर दिया। उनके मठ और विहार जला दिये। मूर्तियां तोड़ दीं और करोड़ों बौद्ध भिक्षुओं को जीवित ही आग में झौंक दिया।
लाखों भिक्षु भाग खड़े हुए। उन्होंने तिब्बत, चीन, नेपाल, श्रीलंका और बर्मा आदि देशों में शरण ली। इस भीषण विध्वंस के कारण बौद्ध विहार, मठ एवं मूर्तियां काल के गाल में समा गये। सौभाग्य से कुछ अवशेष धरती में छिप कर अपनी स्मृति को बनाये रहे।
उन बौद्ध स्थलों में से कुछ को अंग्रेज एवं भारतीय पुरातत्वविदों ने चिह्नित किया जिनके आधार पर भारत एवं राजस्थान के इतिहास का निर्माण हुआ। यह पुस्तक राजस्थान में बौद्ध धर्म के उत्थान, पतन तथा बौद्ध स्मारकों और मूर्तियों को केन्द्रित करके लिखी गई है। आशा है यह पुस्तक पाठकों को पसंद आयेगी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता