मान्यता है कि बाली दुर्ग का निर्माण जालोर के चौहान राजकुमार वीरमदेव ने अपनी बहन बालादे और उसके पति मेवाड़ के राणा हमीरसिंह के रहने के लिये करवाया था। इससे अनुमान होता है कि जिस समय बाली दुर्ग का निर्माण हुआ, उस समय दिल्ली पर अल्लाउद्दीन खिलजी का शासन था।
पाली जिला मुख्यालय से 75 किलोमीटर तथा फालना रेल्वे स्टेशन से 8 किलोमीटर दूर स्थित बाली उपखण्ड मुख्यालय जोधपुर रियासत में जिला मुख्यालय था किन्तु आजादी के बाद इसे पाली जिले में सम्मिलित कर लिया गया। यहाँ स्थित प्राचनी बाली दुर्ग दर्शनीय है।
बाली दुर्ग का निर्माण जालोर के चौहान राजकुमार वीरमदेव ने अपनी बहन बालादे और उसके पति मेवाड़ के राणा हमीरसिंह के रहने के लिये करवाया था। यह भी कहा जाता है कि इस दुर्ग का निर्माण विक्रम संवत् 1240 में चौहान राजा बलदेव ने करवाया तथा अपने अपने नाम पर यहाँ बाली नाम का गांव बसाया। यह भी कहा जाता है कि बोया के ठाकुर चैनसिंह को बोया के दुर्ग में चल रहे षड्यंत्र की जानकारी देकर बाली नामक रेबारन ने ठाकुर को यहाँ छिपाया और उसके प्राणों की रक्षा की।
ठाकुर ने अपनी प्रेयसी बाली के नाम पर ही यहाँ बाली नामक गांव बसाया और दुर्ग का निर्माण करवाया। यहाँ एक गिल्ली और डण्डा रखे हुए हैं, जो पाण्डवों के बताये जाते हैं। अपने वनवास काल के दौरान पाण्डव इस गिल्ली डण्डे से खेलते थे। पाण्डुपुत्र भीम ने अपने पांव की चोट से धरती में एक गड्ढा बनाया जिससे पानी निकल आया था। उस स्थान पर आज भी एक बावड़ी स्थित है।
बाली दुर्ग को तीन सुदृढ़ परकोटों से घेरा गया है। प्रथम परकोटा वीरमदेव द्वारा निर्मित है। दूसरा परकोटा मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह द्वारा ई. 1620 में बनवाया गया। और तीसरा परकोटा प्राचीन बाली गांव को समेटे हुए है जिसका खेखली दरवाजा आज भी विद्यमान है।
धरू, सेवाड़ी और सेला दरवाजे ध्वस्त हो गए हैं लेकिन नाम से उन स्थानों को आज भी पुकारा जाता है। किले में बालादे के महल खण्डहर हो गए हैं लेकिन उसके अवशेष मौजूद हैं। किले की प्राचीरें, बुर्ज तथा विशाल दरवाजे, सदियों पश्चात् भी बिना रख-रखाव के खड़े हैं महाराणा द्वारा निर्मित बाहुगण माता के मन्दिर के साथ ही शीतला माता का मन्दिर भी है।
बाली दुर्ग में सैंकडो वर्ष पुराने बारूद के भण्डार दबे पड़े हैं। इस किले के खण्डहरों की खुदाई करवाई जाए तो अनेक महत्वपूर्ण सामग्री इतिहास के साक्ष्य के रूप में उपलब्ध होने की सम्भावना है। कुछ दशक पहले, शीतला माता के मेले में बाली दुर्ग के एक बारूद भण्डार में विस्फोट हो जाने से अनेक लोग घायल हो गए थे। यहाँ बाली के जागीरदारों की छतरियां, मनमोहन पार्श्वनाथ मंदिर, चन्द्रभुज मन्दिर, विमलनाथ मंदिर तथा धर्म नाथ मंदिर सहित अनेक वैष्णव मंदिर, देवी मंदिर एवं जैन मंदिर देखे जा सकते हैं।