Saturday, February 22, 2025
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नवलगढ़ एवं दलेलगढ़

नवलगढ़ एवं दलेलगढ़ दो दुर्ग हैं, इन दोनों का निर्माण ठाकुर नवलसिंह ने करवाया था। ये दोनों दुर्ग वर्तमान समय में झुंझुनूं जिले में स्थित हैं।

नवलगढ़

सीकर से 30 किलोमीटर तथा झुंझुनूं से 40 किलोमीटर दूर स्थित नवलगढ़ का दुर्ग ठाकुर नवलसिंह द्वारा ई.1678 में बनवाया गया था। यह किला दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। किले में सुन्दर भित्तिचित्र देखने योग्य हैं। इसके भीतर एक शीश महल बनाया गया था जिसके कारण स्थानीय जनता इसे कांचिया गढ़ भी कहती थी।  किले में दरबार हॉल एवं रनिवास भी बना हुआ है। वर्तमान में यह दुर्ग झुंझुनूं जिले में है तथा इसमें पांच बैंक शाखाएं एवं सरकारी कार्यालय चलते हैं। ठाकुर कुंवर जगमालसिंह द्वारा नवलगढ़ में रूप निवास की कोठी का निर्माण करवाया गया।

दलेलगढ़

झुंझुनूं के राजा शार्दूलसिंह के वंशज ठाकुर नवलसिंह, नवलगढ़ ठिकाणे के ठाकुर थे। उन्हें दलेलगढ़ गांव भाई-बंट में मिला था। उस समय इस गांव का नाम कुछ और था। उन्होंने इस गांव में एक दुर्ग बनवाया तथा यह गांव अैार दुर्ग अपने पुत्र दलेलसिंह को दे दिया।

दलेलसिंह के नाम पर यह दुर्ग दलेलगढ़ कहलाया। यह नवलगढ़ ठिकाने के अंतर्गत आता था। वर्तमान में दलेलगढ़ पिलानी के नाम से प्रसिद्ध है। बाद में महनसर के ठाकुर लक्ष्मणसिंह ने अपने काका दलेल सिंह से दलेलगढ़ (पिलानी) छीन लिया।

दलेल सिंह अपने अन्य भतीजे उदयसिंह के पास नवलगढ़ चले गए। नवलगढ़ एवं मंडावा के ठाकुरों ने उदयसिंह के नेतृत्व में पिलानी पर आक्रमण किया तथा दलेल गढ़ घेर लिया। लक्ष्मणसिंह को गढ़ खाली करके भागना पड़ा। संभवतः इसके बाद नवलगढ़ का दुर्ग पुनः नवलगढ़ के ठिकाणेदार उदयसिंह के ही अधीन हो गया।

नवलगढ़ के एक पाने के ठाकुर मुकन्दसिंह ने मुकन्दगढ़ बसाया। आगे चलकर पिलानी गांव के दो हिस्से हो गये। आधा हिस्सा नवलगढ़ वालों का एवं आधा हिस्सा मुकंदगढ़ वालों का। पिलानी का बिड़ला परिवार, मूलतः मुकन्दगढ़ ठिकाणे वाले हिस्से में रहता था। मुकन्दगढ़ के ठाकुर बाघसिंह ने उन्हें अपने क्षेत्र से निकाल दिया।

इस पर बिड़ला परिवार नवलगढ़ ठिकाने वाले भाग में आकर रहने लगे। आज जहाँ बिड़ला परिवार द्वारा निर्मित सीरी संस्थान स्थित है, यह छेत्र नवलगढ़ ठिकाणे के अधीन था।

वर्तमान समय में नवलगढ़ एवं दलेलगढ़ दुर्ग पर्यटकों के आकर्षण के विषय हैं तथा रियासती काल में शेखावाटी क्षेत्र के राजनीतिक एवं प्रशासनिक इतिहास के अध्ययन हेतु भी महत्वपूर्ण हैं। 

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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