राजस्थान में ताम्रपत्र एवं सिक्के बड़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं जिनसे राजस्थान का लिखित इतिहास निर्मित करने में बड़ी सहायता मिली है। इस आलेख में उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
ताम्रपत्र
जब शासक किसी महत्वपूर्ण अवसर पर भूमि, गाँव, स्वर्ण एवं रत्न आदि दान देते थे या कोई अनुदान स्वीकृत करते थे, तब वे इस दान या अनुदान को ताम्बे की चद्दर पर उत्कीर्ण करवाकर देते थे ताकि पीढ़ियों तक यह साक्ष्य उस परिवार के पास उपलब्ध रहे। हजारों की संख्या में ताम्रपत्र उपलब्ध होते हैं। कुछ दानपत्रों से इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ियों को जोड़ने में सहायता मिलती है।
अब तक सबसे प्राचीन ताम्रपत्र ई.679 का धूलेव का दानपत्र मिला है। ई.956 का मघनदेव का ताम्रपत्र, ई.1002 का रोपी ताम्रपत्र, ई.1180 का आबू के परमार राजा धारावर्ष का ताम्रपत्र, ई.1185 का वीरपुर का दानपत्र, ई.1194 का कदमाल गाँव का ताम्रपत्र, ई.1206 का आहाड़ का ताम्रपत्र, ई.1259 का कदमाल ताम्रपत्र, ई.1287 का वीरसिंह देव का ताम्रपत्र तथा ई.1437 का नादिया गाँव का ताम्रपत्र प्रमुख हैं। ये ताम्रपत्र राजस्थान के विभिन्न संग्रहालयों एवं अभिलेखागारों में रखे हैं।
सिक्के
राजस्थान से मिले पंचमार्का सिक्के, गधैया सिक्के, ढब्बू सिक्के, आहड़ उत्खनन से प्राप्त सिक्के, मालवगण के सिक्के और सीलें, राजन्य सिक्के, यौधेय सिक्के, रंगमहल से प्राप्त सिक्के, सांभर से प्राप्त मुद्रायें, सेनापति मुद्रायें, रेड से प्राप्त सिक्के, मित्र मुद्रायें, नगर मुद्रायें, बैराट से प्राप्त मुद्रायें, गुप्तकालीन सिक्के, गुर्जर प्रतिहारों के सिक्के, चौहानों के सिक्के तथा मेवाड़ी सिक्के राजस्थान के प्राचीन इतिहास को जानने के प्रमुख स्रोत हैं।
अजमेर से मिले एक सिक्के में एक तरफ पृथ्वीराज चौहान का नाम अंकित है तथा दूसरी तरफ मुहम्मद गौरी का नाम अंकित है। इससे अनुमान होता है कि पृथ्वीराज चौहान को परास्त करने के बाद मुहम्मद गौरी ने उसके सिक्कों को जब्त करके उन्हें अपने नाम से दुबारा जारी किया था।
राजस्थान की विभिन्न रियासतों में भी विभिन्न सिक्कों का प्रचलन हुआ। इनसे मध्यकाल एवं मध्येतर काल के इतिहास की जानकारी मिलती है। इनमें स्वरूपशाही सिक्के तथा राव अमरसिंह राठौड़ के सिक्के महत्वपूर्ण हैं। मुगलों के शासन काल में कुचामन के ठाकुर को सिक्के ढालने की अनुमति दी गई थी। ये सिक्के राजस्थान के विभिन्न संग्रहालयों में रखे हैं।
इस प्रकार राजस्थान में ताम्रपत्र एवं सिक्के इतिहास लेखन में बहुत सहायक सिद्ध हुए हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता