बाड़मेर जिला मुख्यालय का नाम 13वीं शती के राजा बाहड़राव के नाम पर प्रसिद्ध है। जिस स्थान पर बाहड़राव ने अपना दुर्ग बनवाया था और अपने नाम पर उस दुर्ग का नाम बाहड़मेर रखा था वह स्थान आज के बाड़मेर से लगभग 7 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में है। वहाँ स्थित खण्डहर अब जूना बाहड़मेर कहलाते हैं।
जूना बाहड़मेर, बाड़मेर-मुनाबाव रेलमार्ग पर स्थित जसाई रेल्वे स्टेशन से लगभग छः किलोमीटर दूर स्थित है। इसे प्राचीन समय में बाहड़मेरु, बाहड़गिरि, बाप्पड़ाऊ तथा जूना बाहड़मेर के नाम से जाना जाता था।
जूना बाहड़मेर परमार राजा धरणीवराह के पुत्र बाहड़ बागभट्ट ने वि.सं.1059 (ई.1002) के बाद बसाया किन्तु भाटों से प्राप्त सामग्री के अनुसार ग्यारहवीं शताब्दी ईस्वी के आरम्भ में इस क्षेत्र पर ब्राह्मण शासक बप्पड़ का आधिपत्य था और उसने अपने नाम पर यहाँ ‘बाप्पड़ाऊ’ बसाया। बप्पड़ के वंशजों से परमार धरणीवराह के वंशजों ने इसे अपने अधीन कर इस का नाम बाहड़मेरु या बाहड़मेर रख दिया।
कर्नल टॉड ने ई.1027 में महमूद गजनवी द्वारा इस नगर को लूटा जाना बताया है। ई.1178 में मुहम्मद गौरी ने लोद्रावा, देवका, किराडू तथा जूना बाहड़मेर पर भी आक्रमण किया तथा जूना दुर्ग को तोड़ा। उस समय बाहड़मेरु चौहानों का दुर्ग था।
औरंगजेब के समय ई.1687 में वीर दुर्गादास राठौड़ ने भी यहाँ निवास किया। उसने औरंगजेब के पौत्र अकबर तथा उसके बच्चों को जूना दुर्ग में संरक्षण दिया। ई.1552 में रावत भीमाजी ने स्वतंत्र रूप से नवीन बाड़मेर बसाया जिसे आज भी बाड़मेर के नाम से जाना जाता है। उसके बाद पुराना नगर इतिहास के नेपथ्य में चला गया।
पहाड़ियों की गोद में बसे जूना बाहड़मेरु में प्राचीन शिल्प कला एवं स्थापत्य के साक्षी के रूप में जूनागढ़ दुर्ग तथा आदिनाथ जैन मंदिर ही बचे हैं। इन खण्डहरों में कुछ प्राचीन शिलालेख भी पड़े हैं। इनमें एक लेख जालोर के महाराज कुल श्री सामंतसिंह देव का ई.1295 का है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता