Tuesday, September 17, 2024
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राव जगमाल का नगरअभिलेख

राव जगमाल का नगरअभिलेख मारवाड़ में प्रारम्भिक राठौड़ राजाओं का इतिहास लिखने के लिए सर्वाधिक विश्वसनीय सामग्री उपलब्ध करवाता है। यह थार रेगिस्तान के शासकों के भूले-बिसरे सुनहरे समय का एक दुर्लभ पत्थर है जिसका मूल्य इतिहास की सैंकडों पुस्तकों से भी अधिक है।

राठौड़ों के मारवाड़ आगमन के समय यह क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था। ये छोटे-छोटे राजा चौहानों, चौलुक्यों, प्रतिहारों, परमारों एवं गुहिलों के अधीन रहकर शासन करते थे। राव सीहा द्वारा राठौड़ राज्य की स्थापना के बाद मारवाड़ एक नए राज्य के रूप में सामने आने लगा। कालान्तर में कि मारवाड़ का सर्वाधिक प्रतापी राजवंश राठौड़़ वंश ही हो गया जिसका प्रभुत्व इस प्रदेश पर लगभग सात शताब्दियों तक बना रहा।

मारवाड़ के राठौड़़ वंश का प्रथम पुरुष राव सीहा था जिसने मारवाड़ पर आधिपत्य स्थापित किया। राव सीहा के वंशजों ने कई राज्यों की स्थापना की। इसमें से एक शाखा का आधिपत्य दक्षिणी-पश्चिमी मारवाड़ पर रहा। इस प्रदेश का नामकरण राव सीहा के दूसरे वंशज मालदेव के नाम पर ‘मालानी’ हुआ। मालानी प्रदेश के राजवंश का पूर्व पुरुष मालदेव था।

राव सीहा एवं उसके पुत्र सोनिग ने पश्चिमी मारवाड़ पर अधिकार कर लिया। यद्यपि राव माला एवं उसके पुत्र जगमाल का इतिहास अनेक काव्य ग्रन्थों एवं ख्यातों से प्राप्त होता है। राठौड़़ों की इसी शाखा का एक अभिलेख नगर नामक ग्राम में प्राप्त हुआ जिससे इस वंश की वंशावली एवं इस वंश के राजाओं से सम्बन्धित सूचनाएं प्राप्त होती हैं। इसे राव जगमाल का नगरअभिलेख कहा जाता है।

यह अभिलेख ‘नगर’ नामक एक प्राचीन नगर के ध्वंशावशेषों में रणछोड़ मन्दिर से प्राप्त हुआ था। इस लेख में कुल 8 पंक्तियां हैं। लेख की तिथि मंगलवार चैत्र कृष्णा सप्तमी संवत् 1686 है।[1] इस समय राव सीहा का इक्कीसवां वंशज जगमाल इस क्षेत्र पर शासन कर रहा था।

अभिलेख में निहित ऐतिहासिक तथ्य

राव जगमाल का नगरअभिलेख से हमें निम्नलिखित ऐतिहासिक तथ्य प्राप्त होते हैं-

1. राव सीहा से महारावल जगमाल (द्वितीय) तक की वंशावली।

2. खेड़ पर राठौड़़ों का अधिकार।

3. राठौड़़ों की तेरह शाखाएँ।

4. रावल जगमाल की रानियाँ।

5. रावल जगमाल द्वारा रणछोड़ मन्दिर का निर्माण।

6. सूत्रधारों के नाम।

वंशावली

राव जगमाल का नगरअभिलेख में मालानी के राठौड़़ों की वंशावली उपलब्ध है। यह वंशावली राव सीहा से उसके 21वें वंशज जगमाल तक चलती है। यह वंशावली इस प्रकार है-

1. सीहा 

2. आसथान

3. धहूड

4. रायपाल

5. कन्हराउ

6. जाल्हणसी

7. छाडा

8. तीडा

9. सलखा

10. माला

11. जगमाल (प्रथम)

12. मंडलिक

13. भोजराज

14. वीदा

15. नीसल

16. वरसिंह

17. हापा

18. मेघराज

19. माण दुरजोधन राज श्री दुजणसल जी जिनकी रानी का नाम सोढी संतोष दे था.

20. तेजसी जिसकी द्वितीय रानी का नाम सिसोदनी दाडिम दे था,

21. जगमाल (द्वितीय)

राव जगमाल का नगरअभिलेख की वंशावली जोधपुर राजवंश की वंशावली के राव सीहा से राव सलखा तक मेल खाती है। राव सलखा के पुत्र वीरम के वंशज मंडोर के अधिपति हुए। वीरम के पुत्र चूंडा को सर्वप्रथम मंडोर का राज्य ईदों से दहेज के रूप में प्राप्त हुआ था-

                                           इंदों रो उपकार कमधज कदे न भूलजे।

                                           चूंडे चंवरी चाड, दियो मंडोवर दायजे।।

सलखा के द्वितीय पुत्र मालाजी (मालदेव) ने मालानी की स्थापना की थी। इस प्रदेश का नाम महेवा था। महेवा की स्थापना राव वीदा ने की थी।[2]

इससे पूर्व ये लोग भिंड में रहते थे। [3] राव मालदेव अथवा माला मल्लीनाथ नाम से प्रसिद्ध हुआ था। इसने योगी रतन का शिष्यत्व ग्रहरण कर लिया था। योगी रतन ने ही इसे मल्लीनाथ नाम दिया।[4] कालान्तर में मल्लीनाथ सिद्ध पुरुष के रूप में माना जाने लगा एवं इसके नाम के साथ अनेक चमत्कारी घटनाएं जुड़ गईं।

राव मल्लीनाथ एवं उसके पट्टधर जगमाल का इतिहास बांकीदास एवं मुहता नैणसी की ख्यात से प्राप्त होता है। साथ ही वीर मायरण गींदोली री बात आदि अनेक साहित्यिक रचनाओं में भी कुछ अतिशयोक्ति के साथ इन दोनों का इतिवृत्त उपलब्ध होता है किंतु रावल जगमाल प्रथम से जगमाल द्वितीय तक के शासकों के इतिहास पर प्रकाश डालने वाला कोई स्रोत अब तक प्रकाश में नहीं आया। यह वंशावली भी मात्र इसी लेख प्राप्त होती है।

खेड़ पर राठौड़़ों का अधिकार

राव सीहा के मारवाड़ में आगमन के समय खेड़ पर मोहिलों का अधिकार था। खेड़ उस समय का बड़ा राजनीतिक केन्द्र था। यहाँ से उपलब्ध खंडहर अतीत के वैभव की गाथा कहते हैं। गोहिलों से राठौड़़ों ने खेड़ नगर छीना। नगर शिलालेख के अनुसार राठौड़़ सीहा ने अपने पुत्र सोनिंग के साथ मिलकर, गहलोतों से खेड़ प्राप्त किया। मुहता नैणसी की ख्यात[5] एवं बांकीदास री ख्यात [6]के अनुसार राव आसथान ने नगर गहलोतों से छीना था। अभय विलास नामक काव्य में कहा है-[7]

                             इह आसथान लिए षेड आया।

                             अन भंग दीघ गोहिल उठाय।।

इससे स्पष्ट हो जाता है कि वास्तव में आसथान ने ही गोहिलों से खेड़ छीना था। रेऊ भी इसी तथ्य को स्वीकार करते हैं। रेऊ ने लिखा है कि सीहा ने खेड़ पर आक्रमण अवश्य किया था किंतु पाली में उपद्रव होने के कारण वे लौट आये।[8] गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने भी आसथान द्वारा गोहिलों से खेड़ लेना लिखा है किंतु इसकी पुष्टि में उन्होंने इसी लेख का हवाला दिया है।[9] जबकि इस अभिलेख में सीहा एवं सोनिंग द्वारा खेड़ पर अधिकार करना लिखा है। [10]

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि सीहा ने खेड़ को अपने अधिकार में लिया होगा परन्तु उसकी यह विजय स्थायी नहीं रही। खेड़ पर राठौड़़ों का स्थायी प्रभुत्व राव आसथान के समय में स्थापित हुआ।

राठौड़ों की तेरह शाखाएं

नगर अभिलेख में कहा गया है कि आसथान से (अर्थात् उसके वंशजों से) राठौड़ों की तेरह शाखाएं चलीं-

1. धूहड

2. धांधल

3. ऊहड

4. वानर

5. बांजा

6. गोइंदरा

7. अतिरा

8. गूडाल

9. चाचिग

10. आसाहोल

11. जोपसा

12. नापसा एवं

13. खीपसा।

इनमें से खीपसा चाचगदे (चाचक), धांधक (धांधल), वानर, धून्हड एवं ऊहड़ शाखाओं का उल्लेख बांकीदास की ख्यात में भी हुआ है।[11]

मुहता नैणसी ने भी राठौड़़ों की तेरह शाखाओं के नाम दिये हैं किंतु वे नगर लेख में वर्णित 13 शाखाओं से भिन्न हैं।[12] राव आसथान के पुत्रों के नाम भी भिन्न-भिन्न मिलते हैं। रेऊ ने राव आसथान के पुत्रों के नाम इस प्रकार बताए हैं-[13] 1. धूहड़ 2. धांधल 3. चाचक 4. आसल 5. हरडक (हरखा) 6. खीपसा 7. पोहड और 8. जोपसा।

कर्नल टॉड ने राव आसथान के पुत्रों के नाम निम्न प्रकार से दिये हैं- 1. धूहड 2. जोपसी 3. खीपसा 4. भोपसू 5. धांधल 6. जेवमल 7. बादर 8. ऊहड़।[14]

जगमाल के नगर लेख के अनुसार राव आसथान के तेरह पुत्र थे जिनसे 13 शाखाएं हुईं। इन दोनों की अपेक्षा लेख में दी गई सूची अधिक प्रामाणिक है।

रावल जगमाल की रानियां

नगर लेख के अनुसार राव जगमाल (द्वितीय) का जन्म राव तेजसी की द्वितीय पत्नी सीसोदणी दाडिमदे के गर्भ से हुआ था। इसके पांच रानियां थीं। उनके नाम निम्न प्रकार से दिये गये हैं- 1. भटियाणी जिवंतदे 2. चहुवाणि जमणादे 3. सोढि चतरंगदे 4. देवडी ग्रमोलकदे 5. भटियाणि सुसाणदे।

इनमें से देवड़ी अमोलक दे पटरानी थी जिसके कि गर्भ से कुंवर भारमल का जन्म हुआ। भारमल को प्रधान कुंवर लिखा है। इससे अनुमान होता है कि जगमाल (द्वितीय) ने इसी को अपना उतराधिकारी घोषित कर दिया था।

रणछोड़जी के मन्दिर का निर्माण

नगर लेख में कहा गया है कि जगमाल (द्वितीय) ने अपने पुण्य के लिए, पंचकुल की वृद्धि के लिए, स्वकल्याण हेतु एवं परमेश्वर की भक्ति के निमित्त रणछोड़ मन्दिर का निर्माण करवाया। अभिलेख में वर्णित देवगृह आज भी विद्यमान है। यद्यपि आसपास के काफी छोटे-छोटे देवालय टूट फूट गये हैं, परन्तु उपलब्ध सामग्री से तत्कालीन वास्तु एवं मूर्तिकला का अनुमान लगाया जा सकता है।

सूत्रधारों के नाम

नगर लेख के अन्त में सूत्रधारों के नाम दिये गये हैं- 1. गजधर कल्याण 2. सोमा 3. मेधा 4. तारा 5. गोआल 6. हेमा। इन सूत्रधारों ने ही इस मन्दिर का निर्माण किया होगा, कल्याण के नाम के साथ गजधर शब्द भी प्रयुक्त हुआ है। इससे अनुमान है कि यह मुख्य सूत्रधार होगा।

राव जगमाल का नगरअभिलेख का मूल पाठ

              1. ओम नमः श्री गणेशाय नमः सूरिजवंशी कनौजिया राठौड़ सीहा सोनग इए खेड गोलिया पासे खडवा वले लीधी महाराजा सीहाजी पुः राजा ह आसथान पुः घूडनि देवी नागणेची अविचल।

              2. राज दीधू राजा श्री धून्हड पुः राः राः राइपाल कन्हराई पुः राः जाल्हण सी पुः राः छाडा पुः राः तीडा पुः राः सलखा द्वितीया चन्द्र आधारित राउ श्री माला पुः राः जगमाल पुः राउल।

              3. मंडलिक पुः राज श्री भोजराज पुः राः वीदा पुः राः नीसल पुः राः वरसीग पुः राः हापा पुः राः श्री मेघराज पुः मारण दुरजोधन राज श्री दुजरणसलजी राणी सोढी संतोषदे पुः राउ श्री जेजसी द्वितीय भा।

              4. र्या सत्यवंती राणी श्री सीसोदणी दाडमदेजी कः कुः क्षि पुत्र रत्न छत्रीसराज कुल सिणगार गोत्र गोप्राल प्रजापाल परमदयाल गौ ब्राह्मण प्रतिपाल कंठ शोभित विय श्री वरमाल महाराउल।

              5. श्री 5 जगमाल जी विजयराज्ये तदगृहे राणी भटीयाणी जितवंतदे चहुवारिण जमरणादे सोढी चतंरगदें देवडी मोलकदे भटियांणी सुजाणदे राणी 5. पटराणी देवडी कुक्षिरत्न प्रधान कुंवर श्री भारमलजी।

              6. उदयभान राउलजी स्वपुण्यः णयाः र्थ पंचकुल वृद्धचार्य स्वश्रेयसे परमेश्वर भक्तत्यर्थं संवत 1686 वृः वः र्षे उतर गोलगेत श्री सूर्ये कुंभ संक्राती ऋतौ चैत्र वीद 7 भौमवार अ।

              7. नुराधा नक्षत्र रवियोग श्री रिणछोड देवगृहं कारापति चिरं स्थेयातः राजा श्री आसथान गोत्र 13 तीयांरी 13 साधि राठौड़ां री हुई प्रथम धूहड 1. धंधल 2. .हड 3. वानर 4.

              8. बांजा 5. गोइंदरा 6. अणंतरा 7. गूडाल 8. चाचिग 9. आसाहोल 10. जोपसा 11. नापसा 12. खीपसा साणि 13. सूत्रधार गजधर कल्याणं सूत्र सोमा सूत्रमेघा।

              9. सूत्र तारा सूत्र गोपाल सूत्र हेमा।

इस प्रकार हम देखते हैं कि इतिहास लेखन की दृष्टि से राव जगमाल का नगरअभिलेख अत्यधिक उपयोगी है।

REFERENCES


[1] मांगीलाल व्यास मयंक, रावल जगमाल का नगर अभिलेख, राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस प्रोसीडिंग्स, 1968.

[2] मुहणोत नैणसी की ख्यात, नागरी प्रचारिणी संस्करण, पृ. 71.

[3] उपरोक्त, पृ. 71.

[4] बांकीदास की ख्यात, नरोतमदास स्वामी द्वारा सम्पादित, पृ. 5, वात सं. 36.

[5] मुहणोत नैणसी की ख्यात, पृ. 56-58.

[6] बांकीदास की ख्यात, पृ. 3, वात सं. 12.

[7] प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान उदयपुर शाखा में उपलब्ध हस्तलिखि ग्रन्थ सं. 486, पृ. 3.

[8] मारवाड़ का इतिहास, भाग 1, पृ. 38.

[9] राजपूताने का इतिहास, भाग 2, पृ. 1045.

[10] रेऊ, मारवाड़ का इतिहास, भाग 1, पृ. 38.

[11] बांकीदास की ख्यात, पृ. 1-2.

[12] मुहता नैणसी की ख्यात, पृ. 47.

[13] मारवाड़ का इतिहास, भाग 1, पृ. 4.

[14] एनल्स एन्ड एन्टिक्वीटीज ऑफ राजस्थान, भाग 2, पृ. 94.

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