जोधपुर-नागौर मार्ग पर नागौर से 40 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित खींवसर मुख्य सड़क से आधा किलोमीटर दूर बसा हुआ है। जैन धर्म के अनुयायियों के अनुसार यह ग्राम आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान महावीर स्वामी के समय में सेमसर के नाम से आबाद था।
यह भी उल्लेख मिलता है कि खींवसर गांव का नाम हस्तनगरी और अस्तिग्राम था। जैनियों के अनसुार भगवान महावीर ने दीक्षा प्राप्त करने के बाद खींवसर गांव में अपना पहला चातुर्मास किया। गांव के पूर्व में भगवान महावीर का मंदिर है जिसमें भगवान महावीर के पगलिये हैं। सामान्यतः महावीर की प्रतिमा पूजी जाती है किंतु यहाँ महावीर के पगलिये पूजे जाते हैं।
यह गांव भी चौहान साम्राज्य का हिस्सा था। गोरधनसिंह खींची (चौहान) की जागीर में भी यह गांव सम्मिलित था। उसके समय का बना हुआ तालाब अब गोरधन सागर कहलाता हे। आज से लगभग 250 वर्ष पूर्व जागीरदार जोरावरसिंह ने खींवसर को नया रूप प्रदान किया तथा जयपुर की तरह चौड़े मार्ग एवं चौराहे बनवाये।
आजादी के पूर्व यह गांव राव जोधा के बड़े पुत्र राव करमसिंह के वंशज करमसिंहोतों की जागीर में था। कहा जाता है कि नागौर के मुस्लिम शासक ने बातीणी गांव के खींवसिंह मांगलिया को यह गांव जागीर में दिया था, तब से यह खींवसर कहलाने लगा।
खींवसर में मध्यकाल का एक दुर्ग भी स्थित है जिसे अब होटल बना दिया गया है। बताया जाता है कि औरंगजेब भी इस गढ़ में ठहरा था। इसी कारण खींवसर होटल के एक कक्ष का नाम औरंगजेब रखा गया है। गांव के लोग बताते हैं कि यह गांव प्राचीन काल की हाकड़ा नदी के किनारे बसा हुआ था जो सिंध प्रदेश तक जाती थी। बाद में हाकड़ा नदी सूख गई।
खींवसर में छोटे-बड़े 25 मंदिर हैं। इनमें भगवान जगदीश, लक्ष्मीनाथ, महादेव, गणेश तथा चारभुजा के मंदिर बड़े हैं। कई पुरानी छतरियां भी बनी हुई हैं। यहाँ के मिट्टी के बर्तन प्रसिद्ध हैं। यहाँ के मूण, घड़ा, परातें, चकलिया आदि दूर तक प्रसिद्ध हैं।
किसी समय यहाँ बनियों की अच्छी बस्ती थी किंतु जागीरदारी के समय जागीरदारों के आतंक से बनिये गांव छोड़कर चले गये। इस कारण उनका मोहल्ला और बड़ी-बड़ी हवेलियां सूनी हो गईं और खण्डहरों में बदल गईं। यह गांव पर्यटक मानचित्र पर तेजी से उभरा है। यहाँ स्थित बलुई टीलों में काले हिरण झुण्ड बनाकर विचरते हैं जिन्हें देखने के लिए विदेशी पर्यटक बुलाये जाते हैं।
इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



