मेवाड़ रियासत में ऊंटाला प्रसिद्ध ठिकाणा था। यहाँ गुहिलों का एक प्राचीन दुर्ग बना हुआ है जिसे ऊंटाला दुर्ग कहते हैं। इस दुर्ग का प्राचीन एवं वास्तविक नाम ज्ञात नहीं है किंतु जब यह दुर्ग मुगलों के अधिकार में चला गया, तब इस दुर्ग में ऊँटों की सेना रहती थी। इस कारण इस दुर्ग का नाम ऊंटाला दुर्ग हो गया।
जब ई.1596 में महाराणा प्रताप का निधन हो गया, तब अकबर का पुत्र सलीम, मेवाड़ को कमजोर हुआ मानकर मेवाड़ पर चढ़ बैठा। उसने ऊंटाला पर अधिकार कर लिया और ऊंटाला के दुर्ग में आकर बैठ गया।
इस पर महाराणा अमरसिंह ने ऊंटाला पर चढ़ाई कर दी। मेवाड़ की सेना के हरावल अर्थात् अग्रभाग में चूण्डावत सरदारों को रहने का अधिकार प्राप्त था। जब अमरसिंह ने ऊंटाला पर चढ़ाई की तो शक्तावतों ने मांग की कि उन्हें सेना के हरावल में रहने दिया जाये।
चूण्डावत अपना अधिकार छोड़ने को तैयार नहीं हुए। इस पर महाराणा अमरसिंह ने निर्णय दिया कि चूण्डावतों और शक्तावतों में से जो पहले ऊंटाला दुर्ग में प्रवेश करेगा, आगे से हरावल में वही रहेंगे। महाराणा की आज्ञा पाकर शक्तावत और चूण्डावत ऊंटाला की तरफ भागे।
शक्तावत मार्ग से परिचित होने के कारण ऊंटाला दुर्ग तक पहले पहुंच गये और शक्तिसिंह का तीसरा पुत्र बल्लू दुर्ग के दरवाजे पर जा अड़ा। उसने महावत से कहा कि हाथी को दरवाजे पर हूल दे। दरवाजे पर तेज भाले लगे हुए थे और हाथी मुकना अर्थात् बिना दांत का था।
इसलिये वह दरवाजे में मोहरा (छेद) नहीं कर सका। इस पर बल्लू ने दरवाजे के भालों के सामने खड़े होकर कहा कि हाथी को मेरे शरीर पर हूल दे। महावत ने ऐसा ही किया। उधर चूण्डावत भी दुर्ग के पास पहुंच गये और सीढ़ी लगाकर दीवार पर चढ़ गये परन्तु छाती पर गोली लगने से जैतसिंह चूण्डावत दुर्ग के बाहर जा गिरा। उसने अपने साथियों से कहा कि मेरा सिर काटकर दुर्ग में फैंक दो।
चूण्डावतों ने वैसा ही किया। उधर शक्तावत भी ऊंटाला दुर्ग के भीतर पहुंच गये। शहजादा सलीम डर के कारण ऊंटाला छोड़कर भाग गया। चूंकि जैतसिंह चूण्डावत ने अपना सिर कटवाकर पहले दुर्ग में फिंकवा दिया था, इस कारण मेवाड़ की सेना के हरावल में रहने का चूण्डावतों का अधिकार पूर्ववत् बना रहा।
किसी समय इस क्षेत्र में चेचक महामारी का भयानक प्रकोप हुआ। इस कारण इस क्षेत्र में शीतला माता को ऊंटाला माता कहा जाने लगा।
ई. 1952 में सरदार वल्लभभाई पटेल के नाम पर इस कस्बे का नाम बदलकर वल्लभनगर कर दिया गया। अब लोग इसे वल्लभनगर के नाम से ही जानते हैं और ऊंटाला दुर्ग का इतिहास नेपथ्य में चला गया है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता