ऊँटगिरि दुर्ग करौली जिला मुख्यालय से मंडरायल सड़क पर करौली नगर से लगभग 40 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में करणपुर के निकट कल्याणपुरा गांव की पहाड़ी पर स्थित है। यह दुर्ग चार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
दुर्ग के निर्माता
ऊँटगिरि दुर्ग राजा तिनमपाल के पुत्र नागराज ने 15वीं शताब्दी में एक गुफानुमा पहाड़ी पर करणपुर अथवा कल्याणपुरा नामक गांव में बनवाया था। ई.1566 से 1644 के बीच इस दुर्ग का विस्तार होता रहा।
ऊँटगिरि दुर्ग की सुरक्षा व्यवस्था
दुर्ग को एक ऊंची पहाड़ी पर बनाया गया है। इस कारण यह पार्वत्य श्रेणी का सुरक्षित दुर्ग है। जिस समय दुर्ग का निर्माण किया गया, इसके चारों ओर घना जंगल विस्तृत था। इस कारण यह अरण्य श्रेणी का दुर्ग था। दुर्ग के चारों ओर एक परिघा बनाई गई थी। इस कारण यह पारिघ श्रेणी का दुर्ग था। दुर्ग को चारों ओर ऊँचे परकोटे से घेरा गया था। इस प्रकार इस दुर्ग की सुरक्षा के लिए अनेक प्रबंध किए गए थे।
ऊँटगिरि दुर्ग का स्थापत्य
ऊँटगिरि दुर्ग में सहेलियों की बावड़ी, कलात्मक झरोखे, मगधराय की छतरी देखने योग्य हैं। दुर्ग परिसर में महाराजा गोपालदास का बनवाया हुआ दो मंजिला नृत्य-गोपाल भवन नामक मंदिर स्थित है। इस मंदिर में स्थापित श्रीकृष्ण प्रतिमा दौलताबाद के दुर्ग से लाई गई। दुर्ग परिसर में स्थित एक शिवलिंग पर 100 फुट की ऊँचाई से एक झरना गिरता है। इस पानी में शिलाजीत काफी मात्रा में पाया जाता है।
इस दुर्ग में बने शिवलिंगों पर 100 फुट की ऊंचाई जल गिरता है। इस जल से बड़ी मात्रा में शिलाजीत प्राप्त होता है।
ऊँटगिरि दुर्ग का इतिहास
सोलहवीं शती के आरम्भ में ई.1506-07 में सिकन्दर लोदी ने ऊँटगिरि दुर्ग पर आक्रमण किया। उस समय यह दुर्ग ग्वालियर राज्य के अधिकार में था। मुगल काल में यह दुर्ग पुनः यदुवंशी राजाओं के अधीन आ गया तथा सम्पूर्ण मुगल काल में यदुवंशी राजा इस दुर्ग पर अपना अधिकार बनाये रखने में सफल रहे।
जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने भी कुछ काल के लिये इस दुर्ग में निवास किया। दुर्ग बनने के बहुत बाद में इस दुर्ग के निकट एक बस्ती बस गई जो बहादुरपुर के नाम से प्रसिद्ध हुई। धीरे-धीरे लोग इस दुर्ग का पुराना नाम भूल गये और इसे बहादुरपुर का किला कहने लगे।
दुर्ग के नीचे झरने, तालाब और सतियों की खंडित छतरियां हैं। दुर्ग में प्रवेश करने के लिए दो विशाल द्वार हैं। इनमें से इमलीवाला पोल मुख्य द्वार है। दुर्ग में अनेक भवन एवं मंदिर हैं जो अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। कुछ तालाब भी हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता