Thursday, December 26, 2024
spot_img

अजमेर का स्थापना काल

भारत के इतिहास में प्रमुख भूमिका निभाने वाले अजमेर का स्थापना काल अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है। लोक किम्वदंती है कि अजमेर के तारागढ़ नामक दुर्ग की स्थापना बाली की पत्नी तारा ने की थी[1]  किंतु इस सम्बन्ध में कोई प्राचीन साक्ष्य नहीं मिलता है। अतः यह धारणा मिथ्या जान पड़ती है।

यह माना जाता है कि अजमेर नगर की स्थापना एक पहाड़ी दुर्ग के रूप में ही हुई थी। इसी दुर्ग को अब तारागढ़ तथा गढ़ बीठली के नाम से जाना जाता है। वर्तमान समय में अजमेर नगर इसी तारागढ़ पहाड़ी के चारों ओर बसा हुआ है तथा तारागढ़ एक जीर्ण-शीर्ण दुर्ग के रूप में स्थित है।

माना जाता है कि अजमेर संसार के प्राचीन नगरों में से एक है किंतु यह नगर वास्तव में कब बसा, इसके सम्बन्ध में इतिहासकारों ने अलग-अलग तिथियां दी हैं जो ई.145 से लेकर वि.सं.1170 (ई.1113) तक के बीच में फैली हुई हैं। अजमेर की स्थापना का सबसे प्राचीन काल ई.145 बताया जाता है जो कि डबल्यू डबल्यू हण्टर  द्वारा तैयार किए गए इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इण्डिया में उल्लिखित है। [2]

राजस्थान डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में वाटसन ने भी इसका समर्थन किया है। [3] यह तिथि सही प्रतीत नहीं होती। समस्त इतिहासकारों ने अजमेर नगर की स्थापना चौहान राजा अजयराज द्वारा की जानी मानी है। अतः यह अजयराज कौनसा था और किस काल में चौहानों का राजा हुआ, इसका तिथि निर्धारण करना आवश्यक है परन्तु अजयराज का सही काल अभी तक निर्धारित नहीं हो सका है। अजमेर इतिहास के लेखक हरविलास शारदा [4] का मत है कि अजमेर की स्थापना छठी शताब्दी के पहले हुई थी। अपने मत के समर्थन में उन्होंने चौहान राजानों की उस वंशावली का उल्लेख किया है जो राजशेखर द्वारा लिखित प्रबन्ध कोष में उपलब्ध है। इस वंशावली के अनुसार अजमेर का संस्थापक अज या अजयराज, शाकाम्भरी (साँभर) के चौहान शासकों के क्रम में तीसरा था।

डॉ. दशरथ शर्मा ने अपनी पुस्तक अर्ली चौहान डायनेस्टी में अजयराज को अजमेर का संस्थापक माना है और उसके दो और नाम अजयदेव तथा अल्हन बताया है किंतु वे इस राजा का काल तथा उसके द्वारा अजमेर की स्थापना का काल वि.सं. 1170 (ई.1113) के आस पास माना है। डॉ. शर्मा ने अपना मत ‘अपभ्रंश काव्यत्रयी’ के आधार पर निर्धारित किया है जिसका लेखक जैन मुनि जिनदत्त सूरी था। जिनदत्त सूरी अजमेर के चौहान शासक अर्णोराज का समकालीन था। यह पुस्तक ‘प्रबन्ध कोश’ से प्राचीन है। इसके आधार पर चौहान राजा अजयराज शाकाम्भरी के राजाओं के क्रम में पच्चीसवें नम्बर पर था।

एक वंशावली में राजा का क्रम तृतीय तथा दूसरी वंशावली में उसी राजा का क्रम पच्चीसवां होना संदेह उत्पन्न करता है। सम्भव है कि शाकम्भरी के चौहानों में अजयदेव या अजयराज नाम के दो अलग-अलग राजा हुए हों और उनका काल-क्रम अलग-अलग हो। केवल इस आधार पर ‘प्रबन्ध कोश’ का मत अमान्य नहीं ठहराया जा सकता कि वह ‘अपभ्रंश काव्यत्रयी’ से बाद का है।

समस्त इतिहासकार ने एकमत से वासुदेव को शाकम्भरी के चौहान राजाओं के क्रम में सबसे पहला राजा स्वीकार किया है। ‘प्रबन्ध कोश’ में वासुदेव का काल वि.सं. 688 (ई.551) दिया गया है। [5] आर. जी. भण्डारकर के आधार पर दशरथ शर्मा ने स्वीकार किया है कि वासुदेव का का शासनकाल ई.627 के लगभग था। यह अन्तर उतना नहीं जितना कि अजयराज के शासनकाल के सम्बन्ध में है, अतः इसी आधार पर हम ‘प्रबन्ध कोश’ के मत को पूर्णतः नहीं त्याग सकते हैं।

हरविलास शारदा ने ‘प्रबन्ध कोश’ के आधार पर शाकम्भरी के प्रथम चौहान राजा वासुदेव का काल ई.551 माना है तथा इसके आधार पर तीसरे चौहान राजा अजयराज का काल छठी शताब्दी से पहले स्वीकार किया है और इसी काल में अजमेर नगर की स्थापना होनी स्वीकार की है। हरविलास शारदा ने अपने मत के समर्थन में ऐसा कोई निश्चित तर्क प्रस्तुत नहीं कर सके हैं जिसके आधार पर इस तिथि को सही माना जा सके।

जिस प्रकार ई.551 के पास अजमेर की स्थाना के मत को पूर्णतः सही या पूर्णतः गलत नहीं ठहाया जा सकता, उसी प्रकार विसं. 1170 (ई.1113) के आसपास भी अजमेर की स्थाना के मत को पूर्ण रूपेण सही या गलत नहीं माना जा सकता। इस तिथि से पहले के कई उल्लेख मिलते हैं जिनमें अजमेर नगर के अस्तित्व में होने की जानकारी होती है।

तारीख-ए-फरिश्ता में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जिनके अनुसार अजमेर वि.सं. 1170 से बहुत पहले ही अस्तित्व में था। फरिश्ता क अनुसार अजमेर के राय ने ई.997 में गजनी के शासक सुबुक्तगीन के विरुद्ध लाहौर के शासक की सहायता के लिए अपनी सेना भेजी थी। [6] डॉ. दशरथ शर्मा इस वर्णन को इस आधार पर सत्य नहीं मानते क्योंकि उनके अनुसार अन्य मध्ययुगीन इतिहासकार जैसे उत्बी एवं इब्न-उल-अथर आदि के ग्रन्थों में इसका कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए डॉ. शर्मा तारीख ए-फरिश्ता में लिखित अजमेर को शाकम्भरी मानते हैं, [7]  परन्तु जब तक कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिलता कि अजमेर की उस काल में स्थापना भी नहीं हुई थी तब तक हम फरिश्ता के कथन को पूर्ण रूप से असत्य नहीं कह सकते।

यद्यपि तारीख-ए-फरिश्ता काफी बाद के समय में लिखा गया ग्रन्थ है परन्तु स्वयं दशरथ शर्मा यह स्वीकार करते हैं कि यह ग्रंथ अन्य मुस्लिम ग्रन्थों से अधिक विस्तृत है तथा तारीख-ए-फरिश्ता की अधिकांश सूचनाएं प्राचीन हिन्दू ग्रंथों से मेल खाती हैं। तारीख-ए-फरिश्ता में कुछ सामग्री उन हिन्दू ग्रंथों से ली गई है जो अब अप्राप्य हैं। इस आधार पर जब तक इस तथ्य के विरुद्ध कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल जाते, हम इसे अमान्य नहीं कर सकते। इस प्रकार अजमेर का स्थापना काल ई.997 से पहिले की किसी काल में होनी सिद्ध होती है।

हरविलास शारदा ने इस काल के पहिले के भी कुछ उदाहरण अजमेर के अस्तित्व में होने के दिए हैं। उनके अनुसार अजमेर में दिगम्बर जैन मुनियों के थड़ों एवं छत्रियों में 8वीं एवं 9वीं शताब्दी के लेख मिले हैं। इनमें भट्टाकर रत्न कीर्ति के शिष्य हेमराज की कीर्तिसमाधि पर अंकित शिलालेख पर दी गई तिथि वि.सं. 817 (ईसवी 760) है। अतः इन तिथियों में अजमेर एक सम्पन्न नगर होना सिद्ध होता है। किंतु आज तक किसी भी अन्य इतिहासकर द्वारा इस युग के अजमेर में मिले शिलालेख का उल्लेख नहीं किया गया है और ये शिलालेख अब उपलब्ध नहीं हैं। इनकी अनुपस्थिति के कारण इन्हें पूर्ण रूपेण स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह भी संभव है कि अजमेर की स्थापना के पूर्व भी इस स्थान पर जैन मुनियों के स्मारक बनाए गए हों। अतः अजमेर का स्थापना काल छठी शताब्दी ईस्वी में माना जाए अथवा बारहवीं शताब्दी ईस्वी में, इस सम्बन्ध में अभी भी कुछ ठोस प्रमाणों का सामने आना शेष है।

यादगार ए मुराद अली, अनुवाद- नफीस मनसब, राजस्थान पत्रिका, 25 अप्रेल 1999.

  डबल्यू डबल्यू हण्टर, दी इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इण्डिया, भाग 1, पृ. 92 लन्दन 1881.

  सी. सी. वाटसन, राजपूताना डिस्ट्रीक्ट गजेटियर अजमेर-मेरवाड़ा, भाग ए, पृ. 92, अजमेर 1904.

  हरविलास शारदा, अजमेर हिस्टॉरिकल एण्ड डिसक्रिप्टिव, अजमेर 1941.

  डॉ. दशरथ शर्मा, अर्ली चौहान डायनेस्टीज, 1959, पृ. 40.

  तारीख-ए-फरिश्ता: प्रथम भाग, पृ. 7 एवं 18.

  डॉ. दशरथ शर्मा, अर्ली चौहान डायनेस्टीज, पृ. 32.

REFERENCES


[1] यादगार ए मुराद अली, अनुवाद- नफीस मनसब, राजस्थान पत्रिका, 25 अप्रेल 1999.

[2] डबल्यू डबल्यू हण्टर, दी इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इण्डिया, भाग 1, पृ. 92 लन्दन 1881.

[3] सी. सी. वाटसन, राजपूताना डिस्ट्रीक्ट गजेटियर अजमेर-मेरवाड़ा, भाग ए, पृ. 92, अजमेर 1904.

[4] हरविलास शारदा, अजमेर हिस्टॉरिकल एण्ड डिसक्रिप्टिव, अजमेर 1941.

[5] डॉ. दशरथ शर्मा, अर्ली चौहान डायनेस्टीज, 1959, पृ. 40.

[6] तारीख-ए-फरिश्ता: प्रथम भाग, पृ. 7 एवं 18.

[7] डॉ. दशरथ शर्मा, अर्ली चौहान डायनेस्टीज, पृ. 32.

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source