ई.1459 में राव जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग की स्थापना की तथा सोजत पर फिर से अधिकार कर लिया। माना जाता है कि ई.1460 में राव जोधा राठौड़ के पुत्र नीम्बा ने नानी सीरड़ी नामक पहाड़ी पर सोजत का दुर्ग बनवाया।
जोधपुर से 110 तथा पाली से 40 किलोमीटर दूर स्थित सोजत से आदिम युगीन ताम्र उपकरण एवं हथियार प्राप्त हुए हैं। किसी समय यह ताम्रवती नगर कहलाता था। तब यहाँ ताम्बे की खानें मौजूद थीं। यह कस्बा सूकड़ी नदी के किनारे बसा हुआ है। इतिहास के किसी कालखण्ड में यह कस्बा शुद्धदंती के नाम से भी जाना गया। बाद में सेजल माता के नाम से सोजत कहलाने लगा।
वर्तमान कस्बा वि.सं.1111 (ई.1054) में हूल क्षत्रियों ने सेजल माता के नाम से बसाया। बाद में यह पंवार, हूल, सोनगरा चौहान, सींधल राठौड़, सोलंकी राजपूतों के अधीन रहा। जब राठौड़ों ने मण्डोर में अपनी राजधानी स्थापित की और अपने राज्य का विस्तार करना आरम्भ किया तब मण्डोर के राठौड़ों ने सींधल राठौड़ों से सोजत कस्बा छीन लिया। महाराणा कुंभा ने जब मण्डोर पर अधिकार किया तब 14 साल के लिये यह कस्बा मेवाड़ के सिसोदियों के अधीन हो गया।
ई.1459 में राव जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग की स्थापना की तथा सोजत पर फिर से अधिकार कर लिया। माना जाता है कि ई.1460 में राव जोधा राठौड़ के पुत्र नीम्बा ने नानी सीरड़ी नामक पहाड़ी पर सोजत दुर्ग बनवाया। एक बार सींधल राठौड़ जोधपुर रियासत के पशुओं को घेरकर ले गये। तब राव जोधा के बड़े पुत्र नीम्बा ने सींधलों का पीछा किया। इस लड़ाई में नीम्बा मारा गया।
ई.1515 में जब गांगा जोधपुर का राजा हुआ तब उसके बड़े भाई वीरम को सोजत का दुर्ग तथा सोजत की जागीर दी गई। कुछ समय बाद राव गांगा ने वीरमदेव के मंत्री मुंहता रायमल को मारकर सोजत पर अधिकार कर लिया। गांगा के बाद मालदेव जोधपुर का राजा हुआ। जोधपुर राज्य की ख्यात में राव मालदेव को सोजत दुर्ग का निर्माता बताया है। वस्तुतः मालदेव ने इस दुर्ग के चारों ओर प्राकार का निर्माण करवाया।
मालदेव के बाद चन्द्रसेन जोधपुर का राव हुआ। अकबर ने उससे सोजत का किला छीन लिया तथा मालदेव के अन्य पुत्र राम को दे दिया। राम ने सोजत दुर्ग में रामेलाव तालाब का निर्माण करवाया। साम के बाद सोजत का किला मोटा राजा उदयसिंह के अधिकार में आया। ई.1607 में जहांगीर ने सोजत का किला राव करमसेन को दे दिया। इसके बाद जोधपुर के जागीरदार ही इस दुर्ग पर शासन करते रहे।
यह एक लघु गिरि-दुर्ग है जो अब भग्न अवस्था में है। इसमें स्थित प्रमुख भवन जनानी ड्यौढ़ी, दरीखाना, तबेला, सूरजपोल तथा चन्द्रपोल कहलाते थे। किले की दीवारें एवं बुर्ज सुदृढ़ हैं। सूरजपोल भी अच्छी अवस्था में है। एक पुरानी ख्यात में सोजत के कोट, दरवाजों और कंगूरों की विगत दी गई है। इसमें 44 बुर्ज, 35 सफील, 279 कंगूरे तथा सात दरवाजे थे।
नया सोजत दुर्ग
जोधपुर नरेश विजयसिंह ने सोजत में एक अन्य पहाड़ी पर नरसिंहगढ़ नाम से नया सोजत दुर्ग बनवाया। उस दुर्ग के चारों और पासवान गुलाबराय ने एक परकोटा खिंचवाया। वह उस स्थान पर नया नगर बनाना चाहती थी। उस परकोटे के भग्नावशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
सोजत नगर भी सुदृढ़ परकोटे के भीतर स्थित था। इसमें जोधपुरी दरवाजा, राज दरवाजा, जैतारण दरवाजा, नागौरी दरवाजा, चावंडपोल, रामपोल तथा जालोरी दरवाजा नामक सात दरवाजे थे। एक पुरानी ख्यात में सोजत में 44 बुर्ज, 35 सफीलें, 2792 कंगूरे तथा 7 दरवाजे बताये गए हैं। ई.1807 में यहाँ जोधपुर राज्य की टकसाल स्थापित की गई।