मेड़ता रोड़ रेल्वे स्टेशन से लगभग दो किलोमीटर दूर स्थित फलवर्द्धिका गांव अब मेड़ता रोड कस्बे में ही सम्मिलित हो गया है। फलवर्द्धिका 10वीं शताब्दी ईस्वी अथवा उससे भी पूर्व किसी शताब्दी में फलवर्द्धिका देवी के नाम पर बसा। यहाँ स्थित ब्रह्माणी माता का मंदिर मूलतः फलवर्द्धिका देवी का मंदिर है।
इस मंदिर के कुछ शिखरों की खुदाई 10वीं शताब्दी ईस्वी अथवा उससे भी पूर्व की प्रतीत होती है। मंदिर का निर्माण प्रतिहार काल में हुआ होगा। मंदिर गांव के पूर्व में स्थित है। इसके सभामण्डप का बाहरी भाग तथा शिखर नवीन हैं किंतु भीतर के स्तंभ एवं बाहरी दीवारों में से अधिकतर 10वीं शताब्दी अथवा उससे पूर्व की हैं।
बाहर की ओर बने तीन ताक काफी बाद के हैं जिनमें से एक में नृसिंह, दूसरे में वराह तथा तीसरे में फलवर्द्धिका देवी की मूर्ति स्थापित है। देवी की मूर्ति आठ भुजाओं वाली थी जिसके 6 हाथ काफी पहले नष्ट हो चुके हैं। मुख्य मंदिर में विराजमान ब्रह्मणी माता की मूर्ति काफी बाद की है।
मंदिर के स्तंभों पर कई लेख हैं। सबसे पुराना लेख बिना तिथि का है, इसमें फलवर्द्धिका देवी का उल्लेख है। दूसरा वि.सं. 1465 भाद्रपद सुदि 5 (26 अगस्त 1408) का है। यह लेख तुगलक कालीन है जिसमें फलवर्द्धिका देवी के मंदिर के जीर्णेाद्धार का उल्लेख है।
तीसरा लेख वि.सं. 1535 चैत्र सुदि 15 (6 अप्रेल 1479) का है। यह लेख अपभ्रंश में है तथा इसमें मंदिर के जीर्णोद्धार की सूचना है। इस मंदिर के दक्षिण में निकट ही एक अन्य प्राचीन मंदिर स्थित है। ये दोनों मंदिर एक जैसे हैं। इसके प्रधान ताकों में कुबेर, त्रिविक्रम (वामन) तथा गणेश की मूर्तियां हैं। सुरक्षित मूल शिखर के अंश 11वीं शती के प्रतीत होते हैं।
फलवर्द्धिका गांव के पश्चिम में 12वीं शताब्दी में निर्मित पार्श्वनाथ जैन मंदिर है जहाँ आश्विन माह में प्रतिवर्ष बड़ा मेला लगता है। मंदिर के सामने दोनों तरफ एक-एक संगमरमर की शिला लगी है जिन पर लेख खुदे हैं। एक लेख वि.सं. 1221 मार्गशीर्ष सुदि 6 (21 नवम्बर 1164) का है। इसमें पार्श्वनाथ मंदिर के लिए पोरवाड़ रूप मुनि एवं भंडारी दसाढ़ा आदि द्वारा दी गई भेंट की सूचना है।
दूसरे लेख में संवत् नहीं हैं। इसमें सेठ मुनिचन्द्र द्वारा उत्तानपट्ट बनाये जाने का उल्लेख है। सभामण्डप के एक कमरे के ताकों में कुछ मूर्तियां रखी हैं तथा समोसरण और नन्दीश्वर द्वीप की रचनाएं हैं, ये रचनायें नवीन शैली की हैं। जैन धर्म में फलौदी को बहुत बड़ा तीर्थ माना जाता है। ईसा की 12वीं शताब्दी से पहले यहाँ महावीर जिनालय था।
ई.1124 में धर्मघोष सूरि को यहाँ से पार्श्वनाथ की मूर्ति प्राप्त हुई। उसने ईस्वी 1147 में पार्श्वनाथ जिनालय का निर्माण करवाया। इसके उद्घाटन समारोह में अजमेर तथा नागौर से श्रद्धालु आये। विविधतीर्थ कल्प में लिखा है कि धांधला ने इस मंदिर के निर्माण तथा उद्घाटन समारोह का व्यय किया। विविध तीर्थमाला, विविध तीर्थकल्प तथा अन्य जैन ग्रंथों में इस स्थान का उल्लेख हुआ है। यह स्थान जैनियों की खतरगच्छ शाखा से सम्बद्ध था।
-इस ब्लॉग में प्रयुक्त सामग्री डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखित ग्रंथ नागौर जिले का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास से ली गई है।



