राजस्थान के डीग जिले में स्थित कामां का अत्यंत प्राचीन मंदिर अब चौरासी खम्भा मंदिर कहलाता है। यह बिना मूर्ति का महाभारत कालीन विष्णु मंदिर है। यह महाभारत के युद्ध से भी बहुत पहले अस्तित्व में था।
डीग जिले में स्थित कामां पुराणकालीन मंदिर है तथा यह महाभारत के युद्ध से भी बहुत पहले अस्तित्व में था। पुराणों में इसका नाम ब्रह्मपुर बताया गया है। लोकमान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के नाना कामसेन ने इस नगर का नाम ब्रह्मपुर से बदलकर कामां कर दिया।
कुछ पुराणों में इस क्षेत्र का उल्लेख काम्यक वन के नाम से किया गया है। मान्यता है कि अत्यंत प्राचीन काल में इस क्षेत्र में कदम्ब के पेड़ बड़ी संख्या में थे, इस कारण इस क्षेत्र को काम्यक वन कहा जाता था। बाद में यह नाम घिसकर कामां रह गया।
कामां के चौरासी खम्भा मंदिर का पुराणों में विष्णु मंदिर के रूप में उल्लेख हुआ है। कामा ब्रजभूमि के चौरासी कोस के घेरे में स्थित है तथा भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली है। कामां पर मथुरा के राजा शूरसेन का शासन रहा।
इस मंदिर से गुर्जर-प्रतिहार शासकों का एक शिलालेख मिला है जिसमें प्रतिहार शासकों की वंशावली दी गई है। मंदिर के एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख में कहा गया है कि शूरसेन वंश के दुर्गगण की पत्नी वच्छालिका ने एक विष्णु मंदिर बनवाया। इस मंदिर की कुछ मूर्तियां मथुरा के संग्रहालय में रखी हुई हैं।
जब अफगास्तिान से आए मुसलमानों ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया तो उन्होंने इस क्षेत्र के अनेक मंदिरों को तोड़ दिया। उन्होंने कामा के विष्णु मंदिर पर भी आक्रमण किया तथा इस मंदिर की मूर्तियों को तोड़कर इसे मस्जिद बना लिया। बाद के किसी समय में हिन्दुओं ने फिर से अपना मंदिर प्राप्त कर लिया किंतु हिन्दुओं ने इस मंदिर में कोई विग्रह स्थापित नहीं किया।
यही कारण है कि वर्तमान समय में चौरासी खम्भा मंदिर में भगवान विष्णु का अथवा किसी अन्य देवी-देवता का कोई विग्रह नहीं है। चौरासी खम्भा मंदिर के खम्भों पर नवग्रह, विष्णु एवं उनके अवतार तथा शिव-पार्वती विवाह आदि प्रसंग उत्कीर्ण हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता