अलवर जिले में नीमराणा दुर्ग से कुछ दूरी पर केसरोली दुर्ग स्थित है। यहाँ से महाभारत कालीन प्रमाण मिले हैं। केसरोली दुर्ग का एक द्वार पाण्डवकालीन माना जाता है।
दुर्ग के निर्माता
वर्तमान केसरोली दुर्ग, इस क्षेत्र के यादव शासकों द्वारा चौदहवीं शताब्दी ईस्वी में बनाया गया। दुर्ग का निर्माण महाभारत काल से चले आ रहे अति प्राचीन दुर्ग के अवशेषों पर किया गया।
दुर्ग का स्थापत्य
यह दुर्ग धरती से डेढ़-दो सौ फुट ऊंची चट्टान जैसी पहाड़ी पर बना हुआ है। दुर्ग के भीतर कई महल हैं। एक विशाल कुंआ भी बना हुआ है। दुर्ग के उत्तर की ओर एक तालाब है।
दुर्ग का इतिहास
फिरोजशाह तुगलक के समय में इस क्षेत्र के यादवों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। इसके बाद यह दुर्ग मेवाती मुसलमान खानजादों के अधीन हो गया। बाबर के आक्रमण के समय यह दुर्ग हसन खां मेवाती के अधीन था जो खानवा के मैदान में महाराणा सांगा की तरफ से लड़ता हुआ काम आया।
बाबर ने यह दुर्ग मुगल सल्तनत में सम्मिलित कर लिया। जब अठारहवीं शताब्दी में मुगल कमजोर हो गये, तब यह दुर्ग जाटों के अधीन हुआ। जब रावराजा प्रतापसिंह ने जयपुर राज्य में से अलवर राज्य का निर्माण किया तब यह यह दुर्ग अलवर राज्य के कच्छवाहों के अधीन हो गया। ई.1831 में अलवर के राजा विनयसिंह ने यह दुर्ग ठाकुर भवानीसिंह राणावत को दे दिया जो मेवाड़ के सिसोदियों से सम्बन्धित था। इसमें अब हेरिटेज होटल चलता है।