Monday, February 3, 2025
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कुँवर जालमसिंह (95)

महाराजा विजयसिंह की एक रानी मेवाड़ की राजकुमारी थी। उसके पेट से जन्मा कुँवर जालमसिंह उदयपुर में रहता था। जब उसने सुना कि मरुधरानाथ राज्य पासवान के दत्तक पुत्र को दे रहे हैं जो जालमसिंह ने विद्रोह करने का निश्चय किया।

कुँवर जालमसिंह ने अपनी ओर से कायस्थ सम्पतराम को जोधपुर भेजकर पासवान तथा महाराजा से निवेदन करवाया कि जालमसिंह की क्या सामर्थ्य है जो मरुधरानाथ के विरुद्ध कोई अपराध करे! अद्यावधि पिताजी जीवित हैं और उनके आदेश का उल्लंघन न हो इसलिये मैंने उदयपुर में रहकर चुपचाप अपना समय बिता दिया। आपने पाँच साल के शेरसिंह को गोद लिया तो अच्छा किया। इस कार्य को क्षमा कर देने के बाद भी आपने महादजी सिन्धिया को दो लाख रुपये देकर तथा कागजात में से हमारा नाम हटाकर जोधपुर राज्य शेरसिंह के नाम कर दिया। हम क्षत्रिय राणियों के जाये हैं, क्या इस कार्य को देखकर चुपचाप सहन कर लेंगे?

जालमसिंह के वकील ने जब महाराजा से इस तरह के प्रश्न पूछे तो मरुधरपति उदासीन होकर बोला- ‘हम कुछ नहीं जानते, जो पासवान करेगी वही होगा।’

वकील का ऐसा दुःसाहस देखकर पासवान ने वकील को धमकाया- ‘इस समय तो आप चुपचाप उठकर यहाँ से चले जायें अन्यथा बेइज्जत करके आपको कैद किया जाएगा।’

पासवान का ऐसा रुख देखकर कुँवर जालमसिंह का वकील वहाँ से खिसक लिया। जब दूसरी बार भी जालमसिंह का प्रयास निष्फल गया तो उसने जोधपुर एवं नागौर पर बलपूर्वक अधिकार करने का मन बनाया। उसने शिवचंद सिंघी को बुलाकर उसका सम्मान किया तथा उससे पूछा- ‘खर्च के लिये पैसे चाहिये, उसकी क्या व्यवस्था होगी?’

तब शिवचंद ने पाँच हजार गुंसाई सैनिकों के नेता महन्त को बुलाकर कुँवर जालमसिंह से भेंट करवाई। गुंसाईयों ने बिना पैसे लिये ही कुँवर की नौकरी करना स्वीकार कर लिया किंतु सैनिकों के नित्य के भोजन के लिये व्यवस्था करने का दायित्व राजकुमार जालमसिंह को सौंपा। यह भी निश्चित हुआ कि जोधपुर या नागौर पर अधिकार होने के बाद राजकुमार सैनिकों के वेतन का चुकारा कर देगा।

कुँवर जालिमसिंह से सम्पर्क हो जाने के बाद मिर्जा इस्माईल बेग ने हकदाद खाँ को चार सौ सैनिक देकर शिवचंद सिंघी के साथ कर दिया ताकि वे मारवाड़ के गाँवों में उपद्रव करते रहें। वह स्वयं शेखावाटी की ओर चला गया। अन्य राठौड़ सरदार भी अपने रिसाले के हजार-बारह सौ आदमी लेकर जालमसिंह के पास आ गये।

सलूम्बर के रावत भीमसिंह का बेटा तीन सौ सैनिकों के साथ जालमसिंह से आ मिला। इस प्रकार कुल सात हजार सैनिक एकत्रित हो गए। इसके बाद जालमसिंह ने जोधपुर के सरदारों को पत्र लिखकर सूचित किया कि हम जोधपुर और नागौर पर अधिकार करने का प्रयास कर रहे हैं। आप सब ठाकुर और मुत्सद्दी हमारी सेवा में आ जायें।

इस संतानहीन, महान् आलसी, अव्वल अफीमची और पचास साल के प्रौढ़ राजकुमार पर मारवाड़ के सरदारों को किंचित् भी भरोसा नहीं था। उनका मानना था कि उसके भाग्य में राजयोग लिखा ही नहीं है।

फिर भी सरदारों को इस समय कुँवर की सहायता की आवश्यकता थी इसलिये सरदारों ने कुँवर को सूचित किया कि जो हम कर रहे हैं, उसमें शामिल हो जाओ अन्यथा आपके लाख चाहने पर भी जोधपुर का राज्य आपको नहीं मिलेगा। महाराजा विजयसिंह के पिता स्वर्गीय महाराजाधिराज बख्तसिंह द्वारा दिये गये वचन के अनुसार आपको नागौर दिला दी जायेगी।

जालमसिंह ने सरदारों की यह बात मान ली। उसके लिये यही पर्याप्त था कि मारवाड़ के सरदारों ने उसका थोड़ा ही सही, मान तो रखा था। इससे उत्साहित होकर उसने देसूरी का घाटा पार करके सादड़ी और बहाली पर आक्रमण किया।

पासवान ने विष्णु स्वामी के साथ पाँच सौ बैरागियों तथा दो हजार राजपूत सवारों को कारभारी जोरावरमल के पुत्र सूरजमल के साथ बहाली में नियुक्त कर रखा था। जब जोरावरसिंह के गुंसाइयों ने बहाली पर आक्रमण किया तो बैरागियों ने उनका सामना किया जिससे दो सौ अड़तीस बैरागी मारे गये और बहुत से घायल हो गये।

जबकि सरदारों के लिखित निर्देश होने के कारण राजपूतों ने हाथ में तलवार नहीं पकड़ी। वे बहाली छोड़कर अपने-अपने सरदारों के पास चले गये। जोरावरमल का लड़का किसी तरह जान बचाकर कर जोधपुर भाग आया। इससे पासवान उस पर बहुत क्रोधित हुई। उधर कुँवर जालमसिंह ने बहाली को लूट लिया और वहाँ से तीस हजार रुपये वसूल किये।

बहाली से निबट कर कुँवर जालमसिंह सादड़ी की ओर बढ़ा तथा वहाँ से पचास हजार रुपये वसूल किये। इसके बाद जोरावरसिंह ने शिवचंद सिंघी के माध्यम से पाली के साहूकारों से एक लाख रुपया कर्ज लिया तथा जोधपुर से चालीस कोस दूर तक आ धमका। पासवान को उसकी चेष्टाओं की सारी जानकारी रहती थी। फिर भी वह जालमसिंह के विरुद्ध कुछ नहीं कर रही थी ताकि वह जितना अधिक हो सके जोधपुर के निकट आ जाये और पासवान को उसके विरुद्ध कार्यवाही करने का नैतिक अधिकार मिल जाये।

कुँवर जालमसिंह ने पाली को अपनी सुरक्षा में ले लिया। इस पर पाली क्षेत्र के नामी गिरामी सरदारों ने अपने परिवारों को अन्यत्र सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया। इसके बाद जालिमसिंह सेना लेकर जोधपुर से केवल पाँच कोस की दूरी पर आ धमका और गोवर्धन खीची के संकेत की प्रतीक्षा करने लगा।

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