रूपनगढ़ दुर्ग की प्राचीर में नौ बुर्ज बनी हुई हैं। दुर्ग के भीतर राजसी महल, शस्त्रागार, बारूदखाना भूमिगत गलियारे, जेल तथा अन्य निर्माण देखे जा सकते हैं।
नवलगढ़ एवं मंडावा के ठाकुरों ने उदयसिंह के नेतृत्व में पिलानी पर आक्रमण किया तथा दलेल गढ़ घेर लिया। लक्ष्मणसिंह को गढ़ खाली करके भागना पड़ा। संभवतः इसके बाद नवलगढ़ का दुर्ग पुनः नवलगढ़ के ठिकाणेदार उदयसिंह के ही अधीन हो गया।
ई.1755 में जोधपुर नरेश रामसिंह की विमाता, जीणमाता के दर्शन करने के लिये सीकर ठिकाणे में आई, तब ठाकुर गुमानसिंह ने उसे लूट लिया। ठाकुर को दण्ड देने के लिये जयपुर की सेना ने दांतारामगढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया।
लालगढ़ दुर्ग-महल में लगभग 100 आवासीय कक्ष बने हुए हैं जो रियासती काल में राजपरिवार एवं उनके अनुचरों के निवास स्थल हुआ करते थे। इस महल में एक समृद्ध पुस्तकालय भी है। इसमें कई मूल दस्तावेज एवं दुर्लभ ग्रंथ संजोये गये हैं।