पृथ्वीराज रासो नामक काव्य में यह वर्णन मिलता है कि राजा चंद्र पुण्डीर की राजकुमारी चंद्रावती का विवाह पृथ्वीराज चौहान के साथ हुआ था जिसके गर्भ से सपादलक्ष के उत्तराधिकारी रैणसी ने जन्म लिया था। हमने पूर्व की कड़ी में यह चर्चा की थी कि रैणसी एक काल्पनिक पात्र है, उस राजकुमार का नाम गोविंद था।
इतिहासकारों में इस बात पर कोई मतभेद नहीं है कि चंद्र पुण्डीर की एक पुत्री राजा पृथ्वीराज चौहान से ब्याही गई थी किंतु राजा चंद्रपुण्डीर कौन था तथा कहाँ का शासक था, उसका इतिहास निर्दयी काल की धुंध में छिप गया है।
अजमेर के चौहानों एवं पुण्डीर राजाओं का सम्बन्ध अजमेर के चौहान शासक विग्रहराज राज (चतुर्थ) के समय से आरम्भ हुआ था। दर्शक जानते हैं कि राजा विग्रहराज (चतुर्थ), राजा पृथ्वीराज (तृतीय) का ताऊ था। विग्रहराज (चतुर्थ) पहला राजा था जिसने दिल्ली एवं तराइन क्षेत्र के राजाओं को पराजित करके उन्हें चौहान साम्राज्य में सम्मिलित किया था।
पुण्डीरों का प्राचीन राज्य पुण्डरक इसी क्षेत्र में स्थित था। उसी समय से पुण्डीर अजमेर के चौहानों के अधीन हो गए। पुण्डीर राजपूतों का यह राज्य आधुनिक करनाल से अधिक दूर नहीं था। तराइन नामक युद्ध का मैदान भी पुण्डरक के निकट स्थित था। तराइन के इस मैदान को इतिहासकार अब नरैना कहने लगे हैं तथा अनुमान है कि यह हरियाणा के पंचकूला के निकट स्थित था।
विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इतिहासकारों का अनुमान है कि विग्रहराज (चतुर्थ) के शिवालिक अभियान में पुण्डीर राजवंश का कोई राजकुमार, राजा विग्रहराज (चतुर्थ) के साथ था। इसकी पहचान शिवालिक स्तम्भ लेख में उल्लिखित ‘सलक्षण पालदेव’ नामक ‘राजपुत्र’ से की जाती है जिसके निर्देशन में यह शिलालेख स्थापित किया गया था।
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डॉ. दशरथ शर्मा ने अर्ली चौहान डाइनेस्टी में लिखा है कि चन्द्रराज, गोपाल पुण्डीर का पुत्र था तथा पृथ्वीराज चौहान का सरहदी सामंत था। इसी चंद्र पुण्डीर की एक पुत्री चंद्रावती का विवाह राजा पृथ्वीराज चौहान से हुआ था।
जैन मुनि नयनचंद सूरी ने अपने ग्रंथ हम्मीर महाकाव्य में लिखा है कि जब मुहम्मद गौरी ने सरहिंद के दुर्ग पर अधिकार करके निकटवर्ती प्रदेश में लूटपाट एवं मंदिरों का विध्वंस करना आरम्भ किया तब सरहिंद क्षेत्र के बहुत सारे लोग राय पिथौरा से मिलने के लिए अजमेर आए। चंद्रपुण्डीर भी इन लोगों में सम्मिलित था।
चंद्रपुण्डीर तथा उसके साथ आए सरहिंद के निवासियों ने राजा पृथ्वीराज को एक हाथी भेंट किया तथा उसे मुहम्मद गौरी द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के बारे में बताया।
मुस्लिम इतिहासकारों ने सरहिंद के इस दुर्ग को तबरहिंद कहकर सम्बोधित किया है। मुहम्मद गौरी ने तबरहिंद का दुर्ग चौहानों के किलेदार से छीनकर अपने विश्वस्त काजी जियाउद्दीन काजी को दे दिया तथा उसके अधीन एक छोटी सी फौज तबरहिंद में रखकर गजनी चला गया।
जब पृथ्वीराज को चंद्र पुण्डीर तथा अन्य लोगों की बात सुनकर मुहम्मद गौरी की कार्यवाही पर बड़ा क्रोध आया। उसने तीन हजार हाथियों एवं कई हजार अश्वरोहियों की सेना लेकर सरहिंद के लिए कूच किया। दिल्ली का राजा गोविंदराय भी राजा पृथ्वीराज के साथ था। यद्यपि इस युद्ध में चंद्रराज पुण्डीर की भूमिका के बारे में कोई विवरण नहीं मिलता तथापि तत्कालीन परिस्थितियों के आधार पर यह कहा जा सता है कि निश्चित रूप से चंद्रराज पुण्डीर भी इस युद्ध में पृथ्वीराज के साथ रहा होगा।
पृथ्वीराज रासो के अनुसार चंद्र पुण्डीर राजा पृथ्वीराज चौहान द्वारा संयोगिता के हरण के समय कन्नौज की सेना से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ था।
चंद्र पुण्डीर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र धीर पुण्डीर उसका उत्तराधिकारी हुआ। वह बड़ा बलवान और वीर योद्धा था। धीर पुण्डीर ने कांगड़ा के राजा हाहुलीराय का सिर काटकर पृथ्वीराज चौहान का अर्पित किया था।
चंद्रपुण्डीर के पौत्र पावस पुण्डीर और उसकी सेना ने तराइन के द्वितीय युद्ध में भाग लिया था और अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन किया था और युद्ध के मैदान में ही अपने प्राणों का बलिदान किया था।
राजा चंद्र पुण्डीर तथा उसकी पुत्री चंद्रावती के बारे में इतिहास में केवल इतनी ही जानकारी मिलती है। हालांकि पृथ्वीराज रासो में इसी चंद्रावती के गर्भ से रेणसी नामक पुत्र के जन्म लेने की बात कही गई है जबकि इतिहासकार इस पुत्र का नाम गोविंदराज मानते हैं तथा उसे पृथ्वीराज का एकमात्र पुत्र मानते हैं। यह अपने पिता के समय में ही सेना का संचालन करता था।
हम्मीर महाकाव्य ने भी पृथ्वीराज के पुत्र का नाम गोविंदराज बताया है। तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने पृथ्वीराज के किसी भी पुत्र का उल्लेख नहीं किया है। पृथ्वीराज रासो में रेणीसी, गोविंदराज, बलभद्र भरत, अक्षय कुमार, जोध एवं लाखन भी पृथ्वीराज चौहान के पुत्र बताये हैं।
अगली कड़ी में देखिए- सम्राट पृथ्वीराज चौहान की रानी पद्मावती की इतिहास-कथा!
नोट- रासो की कथा में वर्णित कुमुदमणि कुमाऊँ प्रदेश का राजा था। इसमें जुड़ने से रहा गया है। कृपया यथा स्थान जोड़ लें। इसी प्रकार रतनसिंह को रतनसेन कर लें। धन्यवाद।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता