महाराजा सवाई जयसिंह उच्चकोटि का विद्वान था। संस्कृत और फारसी भाषाओं के साथ-साथ वह गणित, ज्यामिति, नक्षत्र विज्ञान और ज्योतिष का भी ज्ञाता था। उसने अनेक विद्वानों को राज्याश्रय दिया। वह बहुत से उद्भट विद्वानों को महाराष्ट्र, तेलंगाना तथा बनारस आदि स्थानों से जयपुर ले आया तथा जयपुर में ब्रह्मपुरी नामक बस्ती बसाकर उसमें उन विद्वानों को निवास दिया। राजा जयसिंह ने मुहम्मद शरीफ और मुहम्मद मेहरी नामक दो व्यक्तियों को पाण्डुलिपियों का संग्रहण करने के लिये विदेशों में भेजा। उन्हें गणित और ज्योतिष सम्बन्धी पाण्डुलिपियां खोजकर लाने का काम दिया गया ताकि नक्षत्रों की गतिविधियों का अध्ययन करके शुद्ध आँकड़े जुटाये जा सकें और उनके आधार पर शुद्धतम गणना करने वाले यंत्र तैयार करवाये जा सकें।
1725 ई. के आस-पास जयसिंह ने नक्षत्रों की शुद्ध सारणी बनवायी और उसका नाम बादशाह मुहम्मदशाह के नाम पर ‘जिच-ए-मुहम्मदशाही’ रखा। इन सारणियों को पंचांग कहा जाता है। जयसिंह ने जगन्नाथ नामक ज्योतिषी से ज्योतिष विद्या का ज्ञान प्राप्त किया तथा स्वयं ने ‘जयसिंह कारिका’ नामक ज्योतिष ग्रन्थ की रचना की। जगन्नाथ ने जयसिंह की प्रेरणा से युक्लिड नामक विद्वान की रेखागणित से सम्बन्धित सुप्रसिद्ध पुस्तक एलीमेंट्स का संस्कृत भाषा में अनुवाद किया। जगन्नाथ ने टालेमी की ख्याति-प्राप्त पुस्तक ‘सिटैक्सिस’के फारसी अनुवाद का ‘सिद्धान्त सम्राट’के नाम से संस्कृत में अनुवाद किया। इसे ‘सिद्धांत सार कौस्तुभ’भी कहा जाता है। जयसिंह की प्रेरणा से केवलराम ज्योतिषी ने लॉगरिथम का फ्रेंच से संस्कृत में अनुवाद किया जिसको ‘विभाग सारणी’कहा जाता है। नयन मुखोपध्याय ने अरबी ग्रन्थ ‘ऊकर’का संस्कृत भाषा में अनुवाद किया। अन्य बहुत से ग्रन्थों की भी रचना हुई जिनमें मिथ्या जीव छाया सारणी, दुकपक्ष ग्रन्थ, तारा सारणी आदि प्रमुख हैं। पुण्डरीक रत्नाकर ने ‘जयसिंह कल्पदु्रम’की रचना की जिसमें तत्कालीन समाज और राजनीति का अच्छा विवरण मिलता है।
सवाई जयसिंह के दरबार में अनेक विद्वान रहते थे। इन्होंने एक स्वर से महाराजा के शासन की प्रशंसा की है। कवि नेमीचंद ने लिखा है-
अम्बावती पुत्र थान सवाई जैसिंघ महाराजई।
पातिसाह राखै मान राज करै परिवार म्युं।
दया सील पालै सदा, बैरी जीति किया सब जेर तो
तिनकी महिमा अतिघणी, हिन्दू की पत्ति राखण मेट तो।
श्रावक लो सबै सुखी, नव निधि स्यों भरिय भंडार तौ।
मन वांछित सुख भोगवै, दुख न जाणै कोई लंगार तौ।
कवि खुशालचंद ने लिखा है-
देश ढूंढाहण जाणों सार, तामैं धरमा तणुं अधिकार।
बिसनसिंह सुत जैसिंहराय, राज करै सब कूं सुखराय।
कवि बखतराम साह ने बुद्धि विलास में लिखा है-
बिस स्पंध नृप कै भए, श्री जयस्पंध नरिंद।
तिनहिं सवाई पद दियौ, दिल्ली सुरपति हिंद।
संगि लिए चतुरंग दल, रथ पामक गज बाजि।
क्रम श्री जय स्पंध नृप, चढ़े गढ़ौं पै साजि।।
विदेशी विद्वानों से सम्पर्क
जयसिंह ने पुर्तगालियों, फ्रांसीसियों तथा जर्मन विद्वानों को जयपुर में बुलाकर उनके यहाँ विकसित हो रहे ज्ञान की जानकारी प्राप्त की। वहाँ से पुस्तकें खरीद कर मंगवाईं तथा जयपुर के लोगों को उस ज्ञान से परिचित करवाया। जयसिंह की बनाई वेधशालाओं में अनेक विदेशी विद्वान काम करते थे। उसने सूरत से अंग्रेजों के कीप जैसे यंत्र, मानचित्र तथा ग्लोब भी मंगवाये। उसने गोआ के वायसराय के माध्यम से पुर्तगाल के बादशाह से किसी वैज्ञानिक चिकित्सक को जयपुर भिजवाने का अनुरोध किया। उसके अनुरोध पर 6 नवम्बर 1730 को मेनोल फिगूएरेडो तथा पैड्रो दा सिल्वा लीटाओ नामक डॉक्टर गोआ से जयपुर के लिये भेजे गये। जयसिंह ने मेनोल फिगूएरेडो को पर्याप्त धनराशि देकर पुर्तगाल भेजा ताकि वह पुर्तगाल से ग्रंथ और यंत्र क्रय करके ला सके। पैड्रो दा सिल्वा का पौत्र हकीम शेवायर के नाम से प्रसिद्ध था। जयसिंह के निमंत्रण पर फ्रांसीसी विद्वान क्लौद बूदियर, बवेरिया के आन्दे स्ट्रॉब्ल तथा ऐन्तोने गेबेल स्पर्गर नाम विद्वानों ने जयपुर की यात्रा की।