जयपुर नरेश प्रतापसिंह मारवाड़ नरेश विजयसिंह का पौत्र-जवाईं था किंतु वह विजयसिंह के साथ लगातार धोखे कर रहा था। एक ओर तो प्रतापसिंह ने मराठों से समझौता कर लिया और दूसरी ओर उसने श्वसुर को उलाहना भिजवाया कि आपने सहायता करने की बजाय ईस्माइल बेग से संधि करने के कहलवाकर अच्छा नहीं किया।
मराठों से गुप्त समझौता हो जाने के बाद जयपुर नरेश प्रतापसिंह ने श्वसुर को उलाहना भरी चिट्ठी लिखी कि आपने यह सलाह दी है कि हम इस्माईल बेग को अपने साथ ले लें, अपना प्रदेश दे दें और खर्च के लिये पैसा भी दे दें। यह सब तब ठीक होता यदि वह हमारे राज्य की रक्षा करता आया हो।
जयपुर ने यह भी लिखा कि आपने अपना पैसा और प्रदेश देकर, उसका साथ देना स्वीकार किया है। यह आपका अपना निर्णय है। इसके सम्बन्ध में हमें कुछ नहीं कहना है किंतु अपना प्रदेश और पैसा देने की बात हमसे नहीं हो पाएगी। अजमेर के सिलसिले में पैसा हमारा खर्च हुआ और अजमेर पर कब्जा आपने कर लिया। युद्ध में हम लोग रहते हैं। मराठों की हमें कोई चिंता नहीं है। हम उन्हें समझा देंगे। उनकी दुश्मनी आपसे है, हमसे नहीं। महाराजा प्रतापसिंह का पत्र मिलने पर महाराजा विजयसिंह ने जीवराज पुरोहित को जयपुर भेजकर महाराजा प्रतापसिंह के मन की शंकाएं दूर करवाईं। जीवराज के प्रयासों से इस्माईल बेग, जयपुर तथा जोधपुर ने परस्पर वचन दिये कि वे एक दूसरे का पहले की ही तरह सहयोग करेंगे। इस्माईल बेग को मासिक खर्चे के एक लाख रुपयों का प्रबंध जयपुर एवं जोधपुर दोनों की ओर से आधा-आधा किया जायेगा।
जयपुर, जोधपुर तथा इस्माईल बेग के बीच समझौता हो जाने के बाद मरुधरपति के वकील शोभाचंद ने इस्माईल बेग के दीवान जागरीमल खत्री को जयपुर नरेश से मिलवाया और फिर जोधपुर लाकर मरुधरपति से भेंट करवाई। महाराज ने एकांत में डेढ़ घण्टा उससे बात की तथा एक दूसरे में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति तथा कुरान शरीफ का आदान प्रदान हुआ।
मरुधरानाथ की ओर से दीवान का बड़ा सम्मान किया गया और पचास हजार तथा बीस हजार की दो हुण्डियाँ जयपुर भेजी गईं। मरुधरानाथ ने जागरीमल को सिरपेंच, एक घोड़ा, सिरोपाव तथा उसके दोनों लड़कों को सिरोपाव और एक हजार रुपये नगद देकर विदा किया।