Friday, November 22, 2024
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41. महाराजा को इन्कार

-‘घणी खम्मा, अन्नदाता।’

-‘कहो सैनिक क्या समाचार लाये हो?’

-‘महाराज! जोहिये मालानी का परगना बिगाड़ रहे हैं। उन्होंने राठौड़ों की सेना को खदेड़ दिया है और स्वयं मालानी पर अमल जमा कर बैठ गये हैं। वे मालानी की जनता से बलपूर्वक धन इकट्ठा कर रहे हैं।’

मरुधरानाथ चिंता में पड़ गया। उसने गोवर्धन खीची की ओर देखा।

-‘महाराज! मेरा मानना है कि अकेले जोहियों का ऐसा साहस नहीं हो सकता, निश्चय ही भाटियों ने उन्हें इस कार्य के लिये उकसाया है। यद्यपि जैसलमेर रियासत से हमारे सम्बन्ध अच्छे रहे हैं तथापि कोई न कोई भाटी सरदार हमारे लिये समस्या खड़ी करता ही रहा है। इनका मजबूती से दमन करना आवश्यक है ताकि वे भविष्य में लम्बे समय तक कोई उपद्रव न कर सकें।’ खीची ने अपनी श्वेत दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा। उसके अनुभवी किंतु बूढ़े कपाल पर चिंता की रेखाएं उभर आईं।

-‘आप क्या कहती हैं?’ महाराजा ने गुलाब की ओर देखा।

-‘सरदार ठीक कह रहे हैं। अपनी निजी सेना भेजकर जोहियों और भाटियों को मजबूती से दबाना चाहिये। गुलाब को खीची सरदार का मंतव्य अच्छा नहीं लगा था किंतु इस विषम परिस्थति में वह खुलकर कुछ नहीं कहना चाहती थी, विशेषकर राज्य के पुराने मुत्सद्दी गोवर्धन खीची की उपस्थिति में।

-‘हम चाहते हैं कि जालौर में नियुक्त सेना को मालानी भेजकर इस उपद्रव को दबाया जाये।’ महाराजा ने गुलाब से अनुरोध किया।

-‘महाराज! इससे सुंदर और कोई बात हो ही नहीं सकती कि इस दासी की सेना आपके काम आये किंतु आप जानते हैं कि कुछ सरदार नहीं चाहते कि जालौर का परगना हमारे पास रहे। यदि जालौर की सेना मालानी चली गई तो देश को सूना पाकर विरोधी सरदार जालौर में बिगाड़ करेंगे।’ उत्तेजना में गुलाब ने एक ही साँस में इतना लम्बा वाक्य बोल डाला। यद्यपि वह चाहती थी कि उसकी उत्तेजना और हड़बड़ी महाराजा या मुत्सद्दी के समक्ष प्रकट न हों किंतु वह अपने मनोभावों को चाहकर भी नहीं छिपा सकी।

-‘आप बिलकुल ठीक कहती हैं, कहीं ऐसा न हो कि मालानी को सुधारने के चक्कर में जालौर बिगड़ जाये। हम यहाँ जोधपुर से बड़ी सेना भेजेंगे।’ मरुधरानाथ ने पासवान के विचारों से सहमति व्यक्त की।

वृद्ध मुत्सद्दी, पासवान द्वारा इस प्रकार प्रत्यक्षतः महाराजा के आदेश की अवहेलना करने तथा महाराजा द्वारा उसका बुरा न मानने को देखकर आश्चर्य चकित रह गया। वह जानता था कि मालानी में हो रहे उपद्रव का नेतृत्व पासवान के पुत्र तेजकरणसिंह का श्वसुर प्रतापसिंह सोढ़ा कर रहा है। इसीलिये पासवान अपनी सेना भेजने से इन्कार कर रही है। पासवान का यह इन्कार मारवाड़ रियासत के लिये किसी तरह हितकर नहीं माना जा सकता। इससे राज्य के आलोचकों को बातें बनाने का अवसर मिलेगा। खीची चाहता तो उसी समय महाराजा को सब बातें खोल कर कह देता किंतु उसने अपने मनोभावों को अपनी बूढ़ी त्वचा की सुदीर्घ झुर्रियों में सफलतापूर्वक छिपा लिया और मन ही मन निश्चय किया कि वह प्रतापसिंह सोढ़ा का ऐसा प्रबन्ध करेगा कि साँप भी मरेगा और उसके मरने की आवाज पूरे मारवाड़ में गूंजेगी ताकि फिर कोई साँप महाराजा के विरुद्ध उठ खड़ा होने का साहस न कर सके। मरुधरानाथ वृद्ध खीची के मन की थाह न पा सका।

गोवर्धन खीची महाराजा और पासवान से विदा लेकर महल के बाहर आ गया। बाहर निकलते ही उसकी दृष्टि बाखासर के ठाकुर जगतसिंह पर पड़ी। खीची को मानो तुरप का पत्ता हाथ लग गया। वह जानता था कि जगतसिंह की प्रतापसिंह सोढ़ा से पुरानी शत्रुता थी। यही अवसर था जब जगतसिंह इस शत्रुता को किसी निर्णय तक पहुँचा सकता था। खीची ने जगतसिंह के कंधे पर हाथ रखकर उसे अपने साथ आने का निमंत्रण दिया। अपनी हवेली पहुँचते-पहुँचते खीची ने जगतसिंह को मालानी अभियान के लिये तैयार कर लिया।

लगभग एक माह पश्चात् जोधाणे के दुर्ग में यह शुभ समाचार पहुँचा कि मालानी का उपद्रव सफलतापूर्वक दबा दिया गया और विद्रोहियों का सरदार प्रतापसिंह सोढ़ा, बाखासर के ठाकुर जगतसिंह की तलवार से मारा गया।

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