पृथ्वीराज रासो नामक काव्य में ‘पद्मावतीसमय’ नामक एक आख्यान भी दिया गया है। इसके अनुसार पूर्व दिशा में समुद्रशिख नामक प्रदेश पर विजयपाल यादव नाम का राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी का नाम पद्मसेन तथा पुत्री का नाम पद्मावती था। एक दिन राजकुमार पद्मावती राजभवन के उद्यान में विचरण कर रही थी। उस समय एक शुक अर्थात् तोता पद्मावती के लाल होठों को बिम्बाफल मानकर उसे खाने के लिए आगे बढा। उसी समय पद्मावती ने शुक को पकड़ लिया।
वह शुक मनुष्यों की भाषा बोलता था। उसने पद्मावती का मनोरञ्जन करने के लिए एक कथा सुनाई। इस पर राजकुमारी पद्मावती ने पूछा- हे शुकराज! आप कहाँ निवास करते हैं? आपके राज्य का राजा कौन है?
इस पर शुक ने कहा- ‘हिन्दूओं के उत्तम प्रदेश हिन्दुस्थान में दिल्ली नामक एक सुंदर नगरी है। उसके अधिपति राजा पृथ्वीराज चौहान हैं। वे सोलह वर्ष के हैं तथा उनका बल देवराज इन्द्र के समान है। उनके सभी सामान्त भी अत्यन्त पराक्रमी हैं। पृथ्वीराज की भुजा में भीमसेन के समान बल है। पृथ्वीराज तीन बार शहाबुद्दीन ग़ोरी नामक राजा को पराजित कर चुका है। उसके धनुष के प्रत्यंचा की ध्वनि अति भयानक होती है। वह शब्दभेदी बाण चलाने में समर्थ हैं। राजा पृथ्वीराज वचनपालन में दैत्यराज बलि, दान में अंगराज कर्ण, सत्कार्यों में सम्राट विक्रमादित्य और आचरण में सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र के समान है। उसका जन्म कलियुग में दुष्टों का संहार करने के लिए हुआ है। वह चौदह कलाओं से सम्पन्न तथा कामदेव के समान सुंदर है।’
शुक के मुख से राजा पृथ्वीराज की प्रशंसा सुन कर यादव कुमारी पद्मावती का मन पृथ्वीराज के प्रति अनुरक्त हो गया परन्तु पद्मावती के पिता विजयपाल ने पद्मावती का विवाह कुमाऊँ प्रदेश के राजा कुमुदमणि के साथ निर्धारित कर दिया था। इसलिए राजकुमारी ने शुक से कहा- ‘हे कीर! आप शीघ्र ही दिल्ली जाकर मेरे प्रिय पृथ्वीराज को बुला लाईए।’
इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-
राजकुमारी पद्मावती ने शुक को एक पत्र भी दिया जिसमें उसने लिखा कि हे क्षत्रिय कुलभूषण! मैं तन-मन से आपसे प्रेम करती हूँ। आप मेरा पाणिग्रहण करके मेरे प्राणों की रक्षा करें। जैसे श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण किया था, वैसे ही आप मेरा हरण करके मुझे कृतार्थ करें।
शुक ने वायुवेग से दिल्ली पहुंचकर राजा पृथ्वीराज को राजकुमारी पद्मवती का पत्र दिया। पृथ्वीराज ने अपनी सेना एवं सामन्तों को अपने साथ लेकर समुद्रशिखर नामक नगर के लिए प्रस्थान किया। दूसरी ओर राजा कुमुदमणि भी कुमाऊँ से बारात लेकर चल पड़ा।
जब इन दोनों राजाओं के समुद्रशिखर की तरफ रवाना होने के समाचार मुहम्मद गौरी को मिले तो वह भी एक सेना लेकर समुद्रशिखर की ओर बढ़ने लगा। राजकुमारी पद्मवती को राजा कुमुदमणि के आगमन का समाचार तो मिल गया किंतु राजा पृथ्वीराज का कोई समाचार नहीं मिला। इस कारण पद्मावती अत्यंत व्याकुल हो गई।
एक दिन अचानक शुक फिर से आया और उसने राजकुमारी से कहा- ‘हे सुन्दरि! तेरे प्रियतम समीप के शिव मन्दिर में हैं। तुम शीघ्र ही वहाँ जाओ।’ पद्मावती नवीन वस्त्र धारण करके अपनी सखिओं के साथ स्वर्ण थाली में दीप लेकर शिवालय पहुंची तथा माता पार्वती की पूजा करके राजा पृथ्वीराज से मिली। राजा पृथ्वीराज ने पद्मावती का हाथ पकड़कर उसे अपने घोड़े पर बैठा लिया तथा अपनी राजधानी दिल्ली के लिए रवाना हो गया।
यह दृश्य देखकर पद्मावती की सखियाँ आश्चर्य चकित रह गईं। उन्हें राजकुुमारी पद्मवती एवं राजा पृथ्वीराज के प्रेम के बारे में कुछ भी पता नहीं था।
जब राजा विजयपाल और राजा कुमुदमणि को राजकुमारी के हरण किए जाने का समाचार मिला तो वे अपनी सेनाएं लेकर पृथ्वीराज के पीछे दौड़े। इस पर पृथ्वीराज तो दिल्ली की तरफ बढ़ता रहा किंतु उसके सामन्तों ने विजयपाल एवं कुमुदमणि का मार्ग रोका। पृथ्वीराज के सामंतों ने इन दोनों राजाओं को परास्त कर दिया तथा वे भी दिल्ली की तरफ बढ़े।
मार्ग में मुहम्मद गोरी ने अपने सैनिकों के साथ पृथ्वीराज के ऊपर आक्रमण किया। दोनों पक्षों में घनघोर युद्ध हुआ जिसमें मुहम्मद गौरी की सूना परास्त हो गई। पृथ्वीराज ने मुहम्मद गोरी को बन्दी बना लिया। दिल्ली पहुंचने पर राजा पृथ्वीराज ने दुर्गा मन्दिर में राजकुमारी पद्मावती के साथ विवाह कर लिया।
इतिहासविदों ने रानी पद्मावती के कथानक को मनगढ़ंत माना है क्योंकि इतिहास में समुद्रशिखर नामक दुर्ग का उल्लेख नहीं मिलता है। इस युद्ध में दोनों ओर से तोपों का प्रयोग किया जाना लिखा है किंतु बारहवीं शताब्दी ईस्वी में भारत में तोपें नहीं आई थीं, न उस काल में किसी तुर्क शासक के पास तोपें थीं।
वस्तुतः राजा पृथ्वीराज की एक रानी का नाम पद्मावती था जो कि मरुस्थल के राजा पाल्हण परमार की पुत्री थी। पद्मावती के भाई का नाम कतिया था जो मरुस्थल का मण्डलेश्वर था। जैसलमेर जिले के पोकरण कस्बे से ई.1180 का एक शिलालेख मिला है जिसमें कहा गया है कि सम्राट पृथ्वीराज की आज्ञा से कतिया नामक मण्डलेश्वर ने विजयपुर के लोकेश्वर मन्दिर में पिहिलापाउल नामक ग्राम का दान किया था। ग्राम के साथ तड़ाग एवं विशाल वनखण्ड भी दान में दिये थे।
डॉ. दशरथ शर्मा ने पृथ्वीराज की रानी पद्मावती की पहचान कान्हड़दे प्रबंध में उल्लिखित रानी पद्मावती से की है तथा उसे राजा पाल्हण की पुत्री बताया है जो किराडू के आसपास का स्वामी था।
इन्हीं ऐतिहासिक तथ्यों को काम में लेते हुए किसी लेखक ने रानी पद्मावती की प्रेमगाथा का रूपक खड़ा कर दिया तथा उसे पृथ्वीराज रासो में जोड़ दिया। फिर भी इतना अवश्य कहा जा सकता है कि रानी पद्मावती के आख्यान का ऐतिहासिक महत्व भले ही नहीं हो, साहित्यिक महत्व अवश्य है।
इस कथा में रहस्य-रोमांच, छंद-अलंकार, विरह-मिलन, युद्ध एवं श्ृंगार आदि वे समस्त तत्व उपलब्ध हैं जो एक श्रेष्ठ साहित्यिक रचना के लिए आवश्यक होते हैं किंतु इसमें इतिहास उपलब्ध नहीं है। यह संभव है कि पृथ्वीराज रासो में दी गई रानी पद्ावती की कथा जिस प्राचीन लोकाख्यान के आधार पर गढ़ी गई होगी, संभवतः वही प्राचीन कथा सोलहवीं शताब्दी इस्वी में मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत का भी आधार बनी होगी।
अगली कड़ी में देखिए- यदि चौहान राज्य के नागरिकों को तंग किया तो तुझे गधे के पेट में सिलवा दूंगा!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता