अजमेर का राजा वीर्यराम चौहान भारत के इतिहास में अद्भुत राजा हुआ है। उसकी उपलब्धियाँ भी बड़ी थीं किंतु दुर्भाग्यवश भारत के लोग उसका इतिहास भूल गए हैं।
जब विश्व के इतिहास में ग्यारहवीं शताब्दी आरम्भ हुई तब भारत के इतिहास में एक काला अध्याय आरम्भ हुआ। इस समय तक अरब में इस्लाम का उदय होने को साढ़े तीन सौ साल बीत चुके थे तथा मध्य एशिया के तुर्क जो कुछ समय पहले तक इस्लाम के कट्टर शत्रु थे, अब इस्लाम के अनुयाई होकर इस्लाम को भारत में फैलाने के लिए आतुर थे।
भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित अफगानिस्तान में गजनी एवं गोर नामक छोटे राज्यों के तुर्क स्वामी महमूद गजनवी ने ई.1000 में बगदाद के खलीफा से अनुमति लेकर भारत पर इस्लामिक आक्रमण करने आरमभ किए।
महमूद ई.1000 से ई.1027 तक भारत पर लगातार आक्रमण करता रहा। उसने ई.1000 में भारत के सीमावर्ती प्रदेश पर, ई.1001 में पंजाब के हिन्दूशाही शासक जयपाल पर, ईस्वी 1003 में झेलम के किनारे पर स्थित भेरा राज्य पर ई.1005 में मुल्तान पर, ई.1007 में पुनः मुल्तान पर, ई.1008 में पंजाब एवं नगरकोट पर, पर आक्रमण किया।
महमूद ने ई.1009 में अलवर के निकट नरैणा पर, ईस्वी 1011 में मुल्तान पर, ई.1013 में पंजाब तथा काश्मीर पर, ई.1014 में हर्षवर्द्धन की पुरानी राजधानी थानेश्वर पर, ई.1015 में काश्मीर पर, ई.1018 में मथुरा तथा कन्नौज पर, ई.1019 में कालिंजर पर, ई.1020 में पुनः पंजाब पर, ई.1022 में एक बार पुनः ग्वालियर तथा कालिंजर पर आक्रमण किया।
इन आक्रमणों के दौरान महमूद गजनवी ने भारत के हजारों निर्दोष नागरिकों को मार डाला, कई लाख स्त्री-पुरुषों एवं बच्चों को पकड़कर ले गया और उन्हें मध्य एशिया के बाजारों में गुलामों के रूप में बेच डाला। सैंकड़ों भव्य मंदिरों को तोड़ डाला।
नगरकोट एवं सोमनाथ जैसे विश्वप्रसिद्ध मंदिरों को लूटकर अरबों रुपए की विशाल सम्पदा, सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात, हाथी, घोड़े आदि लूटकर ले गया। शिवलिंगों एवे देवविग्रहों को हाथी के पैरों से बंधवाकर घसीटता हुआ गजनी ले गया और वहाँ ले जाकर मस्जिदों के दरवाजों एवं रास्तों में डलवा दिया।
महमूद गजनवी पिछले चौबीस सालों से भारत पर आक्रमण करता एवं भारत के मंदिरों को लूटता फिर रहा था फिर भी भारत के हिन्दू शासकों को परस्पर युद्धों से ही होश नहीं था। अजमेर के चौहान और मेवाड़ के गुहिल आपस में लड़ रहे थे। चौहान और चौलुक्य अलग शत्रु हुए बैठे थे।
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भारत में छोटे-छोटें सैंकड़ों राज्य थे। इनके राजा अपने-अपने राज्य का विस्तार करने के लिए एक दूसरे से लड़ते रहते थे। इस कारण बहुत से राजवंशों में मन-मुटाव एवं ईर्ष्या-द्वेष चलता रहता था।
गुर्जर-प्रतिहार, पाल तथा राष्ट्रकूट राजा तो पिछले सवा दो सौ साल से आपस में लड़ कर एक-दूसरे को नष्ट करने में लगे थे रहे जिसके कारण भारत में वीर सैनिकों का अभाव हो गया था। गुर्जर-प्रतिहार, पाल तथा राष्ट्रकूट राजाओं के ये युद्ध तभी समाप्त हुए जब महमूद गजनवी ने भारत पर लगातार आक्रमण करके इन तीनों राजाओं को पूरी तरह कुचल नहीं दिया।
भारतीय राजाओं की हालत यहाँ तक खराब थी कि जब ईस्वी 1018 में महमूद गजनवी ने कन्नौज के प्रतिहार राजा राज्यपाल को परास्त कर दिया तथा राज्यपाल ने महमूद की अधीनता स्वीकार कर ली तो चंदेल राजा गण्ड ने राज्यपाल पर आक्रमण करके उसे दण्डित किया तथा प्रतिहार राजा राज्यपाल को जान से मार डाला।
जब महमूद गजनवी को यह बात ज्ञात हुई तो उसने चंदेल राजा गण्ड पर आक्रमण करके उससे अधीनता स्वीकार करवाई। इस प्रकार ये भारतीय राजा इतने कमजोर हो गये कि उनमें परस्पर लड़ने की भी शक्ति नहीं रही।
यह एक आश्चर्य की ही बात थी कि वह पूरे 27 साल की अवधि में महमूद गजननवी जिस किसी हिन्दू राजा पर अथवा उसके क्षेत्र में स्थित मंदिर पर आक्रमण करता, उस क्षेत्र का राजा अपने स्तर पर महमूद गजनवी से युद्ध करता था। केवल ई.1008 में भारत के हिन्दू राजाओं ने अफगान आक्रांता महमूद गजनवी के विरुद्ध एक संघ बनाया जो कि पराजित हो गया।
महमूद ने राजा जयपाल को बंदी बना लिया गया। जयपाल ने गजनवी को विपुल धन अर्पित करके स्वयं को मुक्त करवाया तथा जीवित ही अग्नि में प्रवेश कर लिया। तब से लेकर ई.1024 में अजमेर पर आक्रमण करने तक महमूद गजनवी को कोई भी भारतीय राजा परास्त नहीं कर सका।
कुछ पुस्तकों में उल्लेख है कि अजमेर के शासक गोविंदराज (द्वितीय) ने भी एक बार महमूद गजनवी की सेना को परास्त किया किंतु इस युद्ध की तिथि एवं विवरण प्राप्त नहीं होता है।
गोविंदराज (द्वितीय) का उत्तराधिकारी उसका पुत्र वाक्पतिराज (द्वितीय) हुआ। उसने मेवाड़ के शासक अम्बाप्रसाद का वध किया। वाक्पतिराज (द्वितीय) के बाद वीर्यराम अजमेर का राजा हुआ।
ई.1024 में महमूद गजनवी ने अजमेर पर आक्रमण किया तथा गढ़ बीठली को घेर लिया तो अजमेर के चौहान शासक वीर्यराम ने महमूद गजनवी की सेना में भीषण मार लगाई। स्वयं महमूद को तलवार लेकर युद्ध के मैदान में आना पड़ा किंतु वह भी घायल हो गया और प्राण बचाकर अन्हिलवाड़ा की तरफ भाग गया।
इस प्रकार महमूद गजनवी भारत को लूटता फिर रहा था और भारत के राजा परस्पर शत्रुता में उलझे हुए थे। वे न केवल अपनी हानि कर रहे थे अपितु राष्ट्रशक्ति को भी क्षीण कर रहे थे।
यहाँ तक कि ई.1025 में महमूद गजनवी ने सोमनाथ का मंदिर लूट लिया। हजारों ब्राह्मणों एवं गायों की हत्या की तथा हजारों नर-नारियों को पकड़कर गजनी ले गया। उसने सोमनाथ का शिवलिंग भंग करके हाथी के पैरों में बंधवा दिया तथा गजनी में ले जाकर फिंकवा दिया।
जब महमूद गजनवी वापस गजनी जा रहा था तब थार रेगिस्तान में रहने वाले जाटों ने महमूद का मार्ग रोककर उसे लूटा किंतु महमूद ने दो साल बाद पुनः लौट कर जाटों को दण्डित किया। कोई हिन्दू भारतीय जाटों की सहायता के लिए आगे नहीं आया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता