पिछली कड़ी में हमने सम्राट पृथ्वीराज की रानी अजिया की चर्चा की थी। अजिया की ही तरह सम्राट पृथ्वीराज की कुछ अन्य रानियों के साथ प्रेम कथाएं भी जुड़ी हुई हैं जिनके अध्ययन से ज्ञात होता है कि विभिन्न राज्यों की राजकुमारियां सम्राट पृथ्वीराज चौहान की वीरता के किस्से सुनकर सम्राट से प्रेम करने लगती थीं तथा वे पृथ्वीराज से विवाह करने के लिए परिस्थितियों से संघर्ष करती थीं।
वस्तुतः पृथ्वीराज चौहान के नाम से संलग्न ये प्रेम कथाएं इस बात की द्योतक हैं कि राजा पृथ्वीराज द्वारा अपने शत्रुओं पर प्राप्त की गई विजयों के कारण वह इतना प्रसिद्ध हो गया था कि लोक साहित्य में पृथ्वीराज चौहान को भी ढोला-मारू तथा मूमल-महेन्द्रा की तरह लोककथाओं का नायक बना दिया गया था।
इसी तरह की कथाओं में एक कथा पृथ्वीराज की रानी इच्छिनी परमार की भी मिलती है। पृथ्वीराज रासो में आई इस कथा के अनुसार आबू के परमार शासक सलख की दो पुत्रियां थीं जिनमें से बड़ी पुत्री मंदोदरी का विवाह अन्हिलपाटन के चौलुक्य शासक भीमदेव के साथ हआ था जिसे इतिहास में भोला भीम भी कहते हैं।
चौलुक्य राजा भीमदेव, परमार राजा सलख की छोटी पुत्री इच्छिनी से भी विवाह करना चाहता था क्योंकि राजकुमारी इच्छिनी अपनी बड़ी बहिन मंदोदरी से भी अधिक सुंदर थी किंतु राजा सलख अपनी छोटी पुत्री इच्छिनी का विवाह अजयमेरु के राजा पृथ्वीराज चौहान से करना चाहता था।
चौहानों एवं चौलुक्यों की परस्पर शत्रुता के चलते चौलुक्य राजा भोला भीम यह नहीं चाहता था कि परमारों की राजकुमारी का विवाह चौहान शासकों से हो। इसलिए राजा भीमदेव चौलुक्य ने आबू के राजा सलख पर आक्रमण कर दिया।
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इस पर राजा सलख ने अजयमेरु के शासक पृथ्वीराज चौहान को अपनी रक्षा के लिए आमंत्रित किया। राजा पृथ्वीराज चौहान अपनी सेना लेकर आबू पहुंचा तथा उसने चौलुक्य राजा भीमदेव का आक्रमण विफल कर दिया। इसके बाद परमार राजा सलख ने अपनी छोटी पुत्री इच्छिनी का विवाह पृथ्वीराज चौहान के साथ कर दिया।
पृथ्वीराज रासो में आई इस कथा के अनुसार इसके बाद चौलुक्य शासक भोला भीम ने अजमेर पर आक्रमण करके अजमेर के राजा सोमेश्वर को मार डाला। इसके बाद राजा पृथ्वीराज चौहान ने भोला भीम पर आक्रमण करके उसे मार डाला।
हालांकि अब यह स्थापित हो चुका है कि न तो चौलुक्य शासक भोला भीम ने सोमेश्वर को मारा था और ने सोमेश्वर के पुत्र पृथ्वीराज चौहान ने भोला भीम को मारा था। अतः ऐतिहासिक तथ्यों की तुला में राजकुमारी इच्छनी की कथा के विभिन्न प्रसंग सही नहीं ठहरते।
आबू के परमार शासकों में सलख नाम का कोई राजा नहीं हुआ है। गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार उस समय आबू में धारावर्ष परमार का शासन था न कि सांखला परमार का। डॉ. दशरथ शर्मा सहित अनेक इतिहासकारों ने इच्छिनी के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं किया है जबकि डॉ. रामवृक्षसिंह ने इस कथा को ऐतिहासिक माना है किंतु उन्होंने अन्य संदर्भों से मिले तथ्यों की बजाय पृथ्वीराज रासो पर अधिक विश्वास किया है।
पृथ्वीराज चौहान के एक सेनापति का नाम सलख परमार था जो कि परमारों की भीनमाल शाखा से सम्बन्धित था। पर्याप्त संभव है कि पृथ्वीराज की रानी इच्छिनी इसी सलख परमार की पुत्री रही हो।
डॉ. रामवृक्षसिंह के अनुसार अन्हिलवाड़ा के राजा कुमार पाल चौलुक्य ने आबू के राजा विक्रमसिंह पंवार को ई.1145 में आबू से हटा दिया तथा उसके स्थान पर यशोधवल को आबू का राजा नियुक्त किया। इस सम्बन्ध में सिरोही जिले के अजारी गांव में एक शिलालेख भी मिलता है।
डॉ. रामवृक्षसिंह के अनुसार विक्रमसिंह पंवार के पुत्र सलख ने अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने के लिए अपनी पुत्री इच्छिनी का विवाह पृथ्वीराज चौहान से किया था ताकि पृथ्वीराज चौहान से सैनिक सहायता प्राप्त करके अपने खोए हुए राज्य आबू पर फिर से अधिकार कर सके।
वस्तुतः डॉ. रामवृक्षसिंह का यह मत इसलिए सही नहीं माना जा सकता कि सलख आबू के परमारों में से नहीं होकर भीनमाल के परमारों में से था।
रासमाला नामक ग्रंथ में पृथ्वीराज की रानी इच्छिनी को परमार सलख की पौत्री माना गया है। अतः विभिन्न संदर्भों से मिले तथ्यों के आधार पर यह तो माना जा सकता है कि राजा पृथ्वीराज चौहान की एक रानी का नाम इच्छिनी पंवारी रहा होगा किंतु इसके साथ जुड़ी हुई कथाएं सही नहीं हैं।
अगली कड़ी में देखिए- पृथ्वीराज चौहान की रानी चंद्रावती पुण्डीर का इतिहास!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता