कुँवर भीमसिंह को निष्कासित करने के बाद जब मरुधरानाथ जोधपुर में प्रविष्ठ हुआ तब कारभारी जोरावरमल के दुष्ट पुत्र सूरजमल ने जालौर पर अधिकार करने का मन बनाया किंतु कुँवर शेरसिंह के जालौर दुर्ग में रहते यह संभव नहीं था। इसलिये सूरजमल ने कुँवर शेरसिंह को सलाह दी कि राजा विजयसिंह का अंत निकट आ रहा है। आपको युवराज पद पहले से ही दिया हुआ है। मुझे महाराजा ने खास रुक्का भेजकर लिखा है कि कुँवर शेरसिंह को जोधपुर भेज दें। शेरसिंह ने सूरजमल की सलाह मान ली और रातों-रात पालकी में बैठकर जोधपुर पहुँच गया। शेरसिंह ने मरुधरानाथ की ड्यौढ़ी पर उपस्थित होकर मुजरा किया तो महाराज ने हैरान होकर पूछा-‘हमारे बुलाये बिना जालौर से यहाँ आने का क्या प्रयोजन है?’
-‘मैं तो आपकी आज्ञानुसार ही उपस्थित हुआ हूँ।’ कुँवर ने कहा।
-‘तेरे जैसा दुर्भाग्यशाली इस संसार में और कोई नहीं। मूर्ख! कुँवर मानसिंह बारह साल का बच्चा है, सूरजमल ने उसे अपने पास रखकर जालौर का किला और परगने दबा लिये हैं। मानसिंह और उसके कारभारी सूरजमल के कहने में हैं। उसने चार हजार की सेना किले में रखकर किले की मजबूती कर ली है और तुझे बाहर निकाल दिया है। तू मुँह उठाये यहाँ किस लिये चला आया है?’ मरुधरपति ने क्रोधित होकर कहा।
महाराज को इस तरह क्रोध करता देखकर शेरसिंह की हैरानी का पार न रहा। उसकी माता पहले ही मर गई थी। सूरजमल ने उसे जालौर से निकाल दिया था और अब मरुधरपति भी उससे रुष्ट हो गया था।