3 नवम्बर 1688 : आमेर के महलों में महाराजा बिशनसिंह की राठौड़ रानी इन्द्रकुंवरी के गर्भ से, महाराजा बिशनसिंह के पहले राजकुमार का जन्म। राजकुमार का नाम विजयसिंह रखा गया।
1696 ई. : राजकुमार विजयसिंह को औरंगजेब से मिलवाया गया। औरंगजेब ने विजयसिंह का नाम बदलकर जयसिंह किया तथा सवाई की उपाधि दी।
1698 ई. : औरंगजेब के निर्देश पर जयसिंह को दक्षिण के मोर्चे पर भेजा गया।
1699 ई. : महाराजा बिशनसिंह ने जयसिंह का विवाह करने के बहाने से पुनः आमेर बुलवाया। महाराजा बिशनसिंह की अफगानिस्तान के मोर्चे पर मृत्यु।
25 जनवरी 1700 : 11 वर्ष की आयु में जयसिंह आमेर का राजा बना। औरंगजेब ने जयसिंह को 2000 जात व सवार का मनसब दिया।
17 नवम्बर 1700 : औरंगजेब के भाले-बरदार सवाई जयसिंह को लेने आमेर आये।
मार्च 1701 : श्योपुर के गौड़ राजा उत्तमराम के भतीजे उदितसिंह की पुत्री से जयसिंह का विवाह हुआ।
1701 ई. : जयसिंह ने बुरहानपुर जाने के लिये आमेर से प्रस्थान किया किंतु मार्ग में भारी वर्षा के कारण खानदेश से आगे नहीं बढ़ सका।
13 सितम्बर 1701 : औरंगजेब ने जयसिंह के मनसब में 500 की कमी की।
अक्टूबर 1701 : जयसिंह शहजादे बेदारबख्त की सेना में पहुंचा। औरंगजेब ने जयसिंह को शाहजादे बेदारबख्त के साथ पन्हाला दुर्ग पर नियुक्त किया।
14 फरवरी 1702 : जयसिंह की सेना ने खेलना दुर्ग के कोंकणी द्वार पर स्थित मराठा चौकी पर अधिकार किया।
11 मई 1702 : जयसिंह की सेना ने कोंकणी दुर्ग की बारली बुर्ज पर अधिकार करके आम्बेर राज्य का झण्डा फहराया।
13 मई 1702 : औरंगजेब ने जयसिंह को पुनः 2000 का मनसब दिया।
सितम्बर 1702 : बेदारबख्त के साथ जयसिंह औरंगाबाद एवं खानदेश में नियुक्त।
23 नवम्बर 1702 : बेदारबख्त ने जयसिंह को खानदेश की सुरक्षा का काम सौंपा।
फरवरी 1703 : औरंगजेब ने जयसिंह के मनसब में 500 की कमी की।
मई 1703 : मराठों ने शहजादे बेदारबख्त को फरदापुर की घाटी में घेरा। जयसिंह ने शहजादे को सुरक्षित निकाला।
28 जनवरी 1704 : औरंगजेब ने महाराजा जयसिंह का मनसब 2000 किया।
1705 ई. : औरंगजेब ने जयसिंह को मालवा का नायब सूबेदार नियुक्त करने की मांग को ‘जायज़ नेस्त’कहकर फरमान जारी किया कि जयसिंह मसनद पर न बैठकर ज़मीन पर सूजनी बिछाकर बैठा करे। औरंगजेब ने जयसिंह को नगाड़े रखने की अनुमति देने से इन्कार किया। औरंगजेब ने जयसिंह को चाटसू, दौसा, मोअज्जामाबाद और रेवाड़ी के परगने दिये जाने की मांग ‘ख़म ख़म अस्त’कहकर ठुकराई। जयसिंह ने खुशहालसिंह से झिलाय का दुर्ग छीना। औरंगजेब ने जयसिंह को मलारना का परगना इजारे पर दिया। बेदारबख्त ने जयसिंह को मालवा की व्यवस्था का भार सौंपा।
1707 ई. : औरंगजेब की मृत्यु के बाद जाजऊ के मैदान में मुअज्जम और आजम की सेनाओं में युद्ध हुआ। जयसिंह ने बेदारबख्त के पिता आजम का पक्ष लिया। युद्ध आरम्भ होने के कुछ देर बाद जयसिंह, आजम का पक्ष त्यागकर, अपने एक हजार सैनिकों के साथ, मुअज्जम से जा मिला।
जनवरी 1708 : बहादुरशाह (मुअज्जम) आमेर आया तथा अकबर की बनाई हुई मस्जिद में नमाज पढ़कर आमेर का नाम मोमिनाबाद रखा।
10 जनवरी 1708 : बहादुरशाह ने जयसिंह से आमेर का राज्य छीन लिया तथा उसके छोटे भाई विजयसिंह को सवाई की उपाधि देकर आमेर का राजा बनाया।
जनवरी 1708 : जयसिंह, फिर से राज्य पाने की आशा में बहादुरशाह के साथ दक्षिण के लिये रवाना हुआ।
21 अप्रेल 1708 : जयसिंह और अजीतसिंह, बहादुरशाह का शिविर त्यागकर, मण्डलेश्वर से चुपचाप निकल भागे।
जुलाई 1708 : विजयसिंह और मुगल फौजदार को आमेर से खदेड़कर सवाई जयसिंह पुनः आमेर के सिंहासन पर बैठा।
1708 ई. : मेवाड़ महाराणा ने अपनी पुत्री चन्द्रकुंवरी का तथा जोधपुर महाराजा अजीतसिंह ने अपनी पुत्री सूरज कुंवरी का विवाह जयसिंह के साथ किया। बहादुरशाह ने सवाई जयसिंह को आमेर का शासक स्वीकार किया।
1713 ई. : जयसिंह को सात हजार का मनसब तथा मालवा की सूबेदारी मिली। जयसिंह ने अपने छोटे भाई विजयसिंह को बंदी बनाया। जयसिंह ने फर्रूखसीयर से कहकर जजिया बंद करवाया।
1714 ई. : भानगढ़ जयपुर राज्य में सम्मिलित।
10 मई 1715 : जयसिंह ने पिलसुद के निकट मराठों को परास्त किया। फर्रूखसीयर ने जयसिंह को प्रशंसा पत्र भिजवाया।
मई 1716 : फर्रूखसीयर ने जयसिंह को जाटों के विरुद्ध अभियान के आदेश दिये।
1716-17 ई. : मलेरना, अमरसर, झाले, उनियारा, बरबड़ और नारायणा, जयपुर राज्य में सम्मिलित।
1720 ई. : जयसिंह की प्रार्थना पर बादशाह मुहम्मदशाह ने जजिया हटाया।
21 अप्रेल 1721 : मुहम्मदशाह ने जयसिंह को सरमद – ए – राजा- ए – हिन्द की उपाधि दी।
4 जून 1721 : जयसिंह ने महंतों, सन्यासियों और बैरागी फकीरों द्वारा बनवाये गये धार्मिक स्थानों को उनकी मृत्यु के बाद जब्त करने की प्रथा समाप्त करवाई।
1722 ई. : जयसिंह को पुनः जाटों का दमन करने का काम सौंपा गया।
7-8 नवम्बर 1722 : मोहकमसिंह ने थूण के दुर्ग में बारूद भरकर रात्रि के समय आग लगाई। बदनसिंह द्वारा दी गई सूचना से जयसिंह के प्राण बचे।
2 दिसम्बर 1722 : जयसिंह ने जाट नेता बदनसिंह के सिर पर सरदारी की पाग बांधी तथा उसका तिलक करके भरतपुर का राजा बनाया।
2 जून 1723 : मुहम्मदशाह ने राजा जयसिंह को ‘राजराजेश्वर श्री राजाधिराज महाराजा सवाई जयसिंह’ की उपाधि दी।
23 जून 1724 : जयसिंह ने जोधपुर नरेश अजीतसिंह की हत्या करवाई।
अगस्त 1724 : जोधपुर नरेश अभयसिंह से जयसिंह की पुत्री विचित्र कुंवरी का विवाह।
1725 ई. : जयसिंह ने नक्षत्रों की शुद्ध सारणी बनवाकर उसका नाम ‘जिच-ए-मुहम्मदशाही’ रखा तथा मुहम्मदशाह से अनुमति लेकर दिल्ली के जयसिंहपुरा क्षेत्र में वेधशाला का निर्माण करवाया।
1726 ई. : जयसिंह ने आम्बेर दुर्ग के निकट चील का टीला पर जयगढ़ दुर्ग का निर्माण आरम्भ करवाया।
18 नवम्बर 1727 : जयसिंह ने जयपुर नगर का शिलान्यास किया।
1728 ई. : जयसिंह अपनी राजधानी आम्बेर से जयपुर ले आया। जयसिंह ने बादशाह से कहकर गया के तीर्थ यात्रियों से लिया जाने वाला कर समाप्त करवाया।
1729 ई. : बूंदी नरेश बुद्धसिंह ने जयसिंह के छोटे भाई विजयसिंह को बंदीगृह से निकालकर जयपुर का राजा बनाने का षड़यंत्र किया। जयसिंह ने विजयसिंह की हत्या करवाई तथा दलेलसिंह को बूंदी का राजा बनाया। उदयपुर राज्य से रामपुरा का परगना माधोसिंह के नाम से मिला।
अक्टूबर 1729 : जयसिंह दूसरी बार मालवा का सूबेदार नियुक्त।
19 मई 1730 : जयसिंह ने दलेलसिंह को पुनः बूंदी की गद्दी पर बैठाया।
सितम्बर 1730 : मुहम्मदशाह ने जयसिंह पर काहिली और दगाबाजी का आरोप लगाकर मालवा से वापस बुलाया।
6 नवम्बर 1730 : जयसिंह के अनुरोध पर गोआ के वायसराय ने मेनोल फिगूएरेडो तथा पैड्रो दा सिल्वा लीटाओ नामक डॉक्टर गोआ से जयपुर भेजे।
1732 ई. : जयसिंह तीसरी बार मालवा का सूबेदार नियुक्त। जयसिंह ने अपनी पुत्री कृष्णा कुमारी का विवाह दलेलसिंह के साथ किया।
जनवरी 1733 : मराठों ने मंदसौर के निकट जयसिंह को घेरा। जयसिंह ने मालवा के 28 परगने होल्कर को सौंपकर संधि कर ली।
1733 ई. : आम्बेर के स्थान पर जयपुर को राजधानी बनाने की विधिवत् घोषणा।
16-17 जुलाई 1734 : जयसिंह के प्रयासों से हुरडा में राजपूताना के राजाओं का सम्मेलन आयोजित।
फरवरी 1735 : जयसिंह की मध्यस्थता से मुगल सेनापति खानेदौरां और मराठों में समझौता सम्पन्न।
अगस्त 1735 : जयसिंह को मालवा की सूबेदारी से हटाया गया। दो प्रांत जयसिंह को जीवन भर के लिये मिले थे, वे भी छीने गये।
25 फरवरी 1736 : जयसिंह के निमंत्रण पर पेशवा जयपुर आया। भमोला गांव में जयसिंह तथा पेशवा की भेंट।
1737 ई. : जयसिंह ने मराठों से संधि करके उन्हें कर देना स्वीकार किया।
1740 ई. : जयसिंह द्वारा जोधपुर पर आक्रमण। जोधपुर नरेश अभयसिंह तथा जयसिंह के बीच संधि। जयसिंह द्वारा अश्वमेध यज्ञ का आयोजन।
12 मई 1741 : जयसिंह ने पेशवा बालाजी बाजीराव से मुगल बादशाह की तरफ से धौलपुर में समझौता वार्त्ता की।
11 जून 1741 : गंगवाणा के मैदान में जयपुर ने जोधपुर की सेना को परास्त किया।
जुलाई 1741 : जयपुर एवं जोधपुर राज्यों में नई सन्धि सम्पन्न। 21 सितम्बर 1743 : राजधानी जयपुर में सवाई जयसिंह का निधन।