सूरजमल के सहयोग से प्रसन्न होकर वजीर सफदरजंग ने मुगल बादशाह से अनुशंसा की कि सूरजमल को 3000 जात और 2000 घुड़सवार का मनसब दिया जाये तथा उसके पुत्र रतनसिंह को राव की उपाधि दी जाये। सूरजमल के पुत्र जवाहरसिंह के मनसब में भी वृद्धि की जाये। इसके कुछ दिन बाद सफदरजंग ने बादशाह से अनुशंसा की कि बदनसिंह को महेन्द्र की उपाधि देकर राजा और सूरजमल को राजेन्द्र की उपाधि देकर कुमार बहादुर बनाया जाये। बादशाह ने इस अनुशंसा को स्वीकार कर लिया। भव्य समारोहों में बदनसिंह तथा सूरजमल ने इन उपाधियों को धारण किया। इसके बाद सूरजमल ने अपना नाम जसवंतसिंह रख लिया किंतु वह इस नाम का उपयोग बहुत कम ही किया करता था। कवि सूदन ने सूरजमल के लिये सुजानसिंह नाम का भी प्रयोग किया है। इसके कुछ दिन बाद बादशाह ने सूरजमल को मथुरा का फौजदार बना दिया। इससे उसे आगरा प्रान्त में यमुना के दोनों ओर के अधिकांश प्रदेशों पर तथा आगरा नगर के आस पास के क्षेत्रों पर अधिकार प्राप्त हो गया। यह सचमुच जाटों का चरम उत्कर्ष था कि वे मथुरा और आगरा के निकटवर्ती क्षेत्रों के शासक बन जायें।
दिल्ली की लूट
मार्च 1753 में बादशाह अहमदशाह ने सफदरजंग को वजीर के पद से हटा दिया। इस पर सफदरजंग ने नाराज होकर विद्रोह कर दिया। उसने अपनी लेकर दिल्ली का लाल किला घेर लिया तथा सूरजमल को अपनी सहायता के लिये बुलाया। सूरजमल तत्काल एक सेना लेकर अपने मित्र सफदरजंग की सहायता करने के लिये चल पड़ा। मार्ग में उसने अलीगढ़ के निकट चकला कोइल के जागीरदार बहादुरसिंह बड़गूजर पर आक्रमण किया। उस समय बहादुरसिंह, घसीरा के दुर्ग में था। उसने अन्य कोई उपाय न देखकर अपनी स्त्रियों को मार डाला तथा दुर्ग के द्वार खोल दिये। 23 अप्रेल 1753 को सूरजमल ने समस्त बड़गूजरों को मारकर घसीरा के दुर्ग पर अधिकार किया। इस युद्ध में सूरजमल के 1500 सैनिक मारे गये।
मई 1753 में सूरजमल 15 हजार घुड़सवारों की सेना लेकर दिल्ली पहुंचा। 9 मई से 4 जून के बीच जाटों ने दिल्ली में जमकर लूट मचाई। जाट सैनिकों ने दिल्ली के दरवाजे तक लूट लिये। बहुत बड़ी संख्या में दिल्ली के मकान ढहा दिये। उस काल के इतिहासकारों ने लिखा है कि जाटों की लूटपाट के बाद दिल्ली के निकट बसे हुए उपनगरों, चुरनिया तथा वकीलपुरा आदि में तो कोई दिया ही नहीं दिखता था। तभी से दिल्ली में जाट-गर्दी मुहावरा कहा जाने लगा। बाद में जब सदाशिव भाऊ ने दिल्ली में लूट मचाई तो भाऊगर्दी का तथा अहमशाह अब्दाली ने लूट मचाई तो शाह-गर्दी का मुहावरा प्रचलित हुआ।
दिल्ली की बादशाहत पर आये इस संकट में सफदरजंग तथा सूरजमल के अतिरिक्त अन्य समस्त शक्तियां बादशाह की ओर हो गईं। सूरजमल को बड़े प्रलोभन एवं धमकियां दी गईं ताकि वह सफदरजंग का साथ छोड़कर बादशाह के साथ आ जाये किंतु सूरजमल अपने मित्र के प्रति वचनबद्ध था और गद्दारी करने को तैयार नहीं था। सूरजमल पर नियंत्रण करने के लिये बादशाह ने मल्हारराव होलकर को दक्कन से बुलवाया किंतु सूरजमल पर उसका भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इससे पहले कि मराठे दिल्ली पहुंचते, सूरजमल ने दिल्ली के नये वजीर इन्तिजामुद्दौला तथा उसके भतीजे गाजीउद्दीन के बीच फूट डलवा दी। इस कारण बादशाह को सफदरजंग के समक्ष शांति एवं संधि का प्रस्ताव भेजना पड़ा। ई.1753 के अंतिम महीनों में जयपुर नरेश माधोसिंह दिल्ली पहुंचा। उसने सूरजमल को युद्ध बंद करने के लिये कहा किंतु सूरजमल ने कहा कि जब तक सफदरजंग को दुबारा वजीर नहीं बनाया जायेगा तथा सफदरजंग को अवध एवं इलाहाबाद के सूबे वापस नहीं दिये जायेंगे, युद्ध बंद नहीं होगा। बादशाह ने सूरजमल की मांग मान ली तथा युद्ध समाप्त हो गया। इसके बाद सफदरजंग तो अपने सूबों में चला गया किंतु राजा सूरजमल तथा दिल्ली के बादशाह के बीच जो शत्रुता उत्पन्न हुई, उसका दुष्परिणाम आगे चलकर सूरजमल को भोगना पड़ा।