Saturday, July 27, 2024
spot_img

गुहिल वंश

‘ईक्ष्वाकु’ कुल भारत का सबसे प्राचीन राजकुल है जो वैवस्वत मनु के वंशज  ईक्ष्वाकु के नाम से प्रसिद्ध है। इस कुल में अनरण्य, सगर, दिलीप, भगीरथ, रघु, अज, दशरथ एवं राजा रामचंद्र ने जन्म लिया। राजा रामचंद्र के दो पुत्र हुए- लव तथा कुश जिनके वंशजों ने भारतभूमि के विभिन्न भागों में अनेक नगरों की स्थापना की तथा कई राज्य स्थापित किये। लव-कुश में से ‘कुश’ ज्येष्ठ थे। विभिन्न पुराणों में ‘कुश’ से लेकर ‘सुमित्र’ तक तथा ‘सुमित्र’ से लेकर ‘सिंहरथ’ तक की वंशावलियां कुछ अंतर के साथ मिलती हैं।

इसी वंश में वि.सं. 625 (ई.568) के लगभग ‘गुहिल’ नामक प्रतापी राजा हुआ। आगरा से भूमि में गड़े हुए चांदी के 2000 से भी अधिक सिक्के मिले हैं जिन पर इस राजा का नाम अंकित है। ‘नरवर’ से भी चांदी का एक ऐसा सिक्का मिला है जिस पर ‘श्रीगुहिलपति’ लेख मिला है। इस राजा के वंशज ‘गुहिल’ अथवा ‘गुहिलोत’ कहलाये।

इसी वंश में उत्पन्न ‘बापा रावल’ अथवा ‘कालभोज’ नामक राजा का सोने का सिक्का भी मिला है। बापा रावल, शैव सम्प्रदाय के कनफड़े साधु हारीत ऋषि का शिष्य था। इसलिये उसने शैव सम्प्रदाय को अपना राजधर्म बनाया। उसने ई.713 के बाद के किसी वर्ष में मौर्यवंशी राजा मान मोरी से चित्तौड़ का दुर्ग हस्तगत किया।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO.

बापा के बाद मेवाड़ में कई राजा हुए जो नागदा तथा आहाड़ आदि को अपनी राजधानी बनाकर राज्य करते रहे। गुहिल राजा, अपने राज्य के विस्तार के लिये अपने पड़ौसी राजाओं से संघर्ष करते, लड़ते-भिड़ते आगे बढ़ते रहे। इस कारण उनका राज्य कभी आगरा के पास दिखाई देता तो कभी खिसक कर चाटसू होता हुआ गुजरात में चला जाता।

कभी-कभी तो गुहिलों का राज्य सिमट कर इतना छोटा रह जाता कि किसी तरह अस्तित्व भर बचा रहता था। इतना होने पर भी रघुवंशी गुहिल राजाओं का आदर्श ‘प्राण जाय पर बचन न जाय’ बना रहा। इस वंश के राजा स्वतंत्रता के अनन्य पुजारी थे। वे हिन्दू धर्म के रक्षक थे और हिन्दू धर्म पर आने वाले किसी भी संकट को राष्ट्र पर आया हुआ संकट जानकर बड़े से बड़े शत्रु के सामने जा डटते थे।

बारहवीं शताब्दी ईस्वी में इस वंश में ‘रण सिंह’ अथवा ‘कर्णसिंह’ नामक राजा हुआ। कर्णसिंह से गुहिलोतों की दो शाखाएं निकलीं। एक शाखा रावल[1] कहलाती थी जिसका चित्तौड़ पर शासन था और दूसरी शाखा राणा[2] कहलाती थी जिसका सीसोद की जागीर पर अधिकार था। इस प्रकार गुहिल राजवंश, लगभग छठी शताब्दी ईस्वी से राष्ट्र की रक्षा एवं प्रजा का पालन करता आ रहा था।


[1] एकलिंग महात्म्य, राजवर्णन अध्याय। श्लोक 50.

[2] गौरीशंकर हीराचंद ओझा, उदयपुर राज्य का इतिहास, भाग-1, पृ. 143.

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source