Saturday, July 27, 2024
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ह्वेनसांग का वर्णन

631 ईस्वी अर्थात् सातवीं शताब्दी में भारत की यात्रा पर आये चीनी बौद्ध भिक्षु ह्वेनसांग ने मिहिरकुल के बारे में लिखा है कि उसने बौद्धों पर बड़ा अत्याचार किया। उनके मठों, विहारों तथा स्तूपों को लूटा और बड़़ी निर्दयता से उनका सामूहिक वध किया। मिहिरकुल ने अपने सम्पूर्ण राज्य में बौद्ध संघ के पूर्ण विनाश की आज्ञा दी।

ह्वेनसांग लिखता है कि मिहिरकुल ने 1600 बौद्ध स्तूपों और विहारों को ध्वस्त कर दिया और 9 करोड़ बौद्ध उपासकों की हत्या कर दी। ह्वेनसांग के वर्णन में अतिरंजना हो सकती है किंतु यह निश्चित है कि तोरमाण तथा मिहिरकुल ने राजस्थान के बौद्धों को बहुत क्षति पहुंचाई। उनके मठ उजाड़ दिये, पुस्तकालय जला दिये। विहारों को धूल में मिला दिया तथा लाखों बौद्ध भिक्षुओं को मार डाला। गुप्त शासक बालादित्य तथा मालवा का शासक यशोधर्मा परस्पर भी लड़ रहे थे इसलिये वे हूणों को भारत से बाहर नहीं निकाल सके।

बौद्धों के अस्तित्व पर संकट

 हूणों की भयानक विनाशलीला के कारण बौद्ध भिक्षुओं के समक्ष अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया। बहुत से बौद्ध भिक्षुओं ने भागकर तिब्बत, चीन, बर्मा, श्रीलंका आदि देशों में शरण ली। राजस्थान के हजारों बौद्ध भिक्षु भागकर जंगलों और गुफाओं में चले गये तथा वहीं छिपकर, भगवान बुद्ध के बताये नियमों का पालन करते हुए साधना करने लगे। इन गुफाओं में छिपे बौद्ध भिक्षुओं का क्या अंत हुआ होगा, यह बताने वाला कोई शिलालेख अथवा लिखित प्रमाण नहीं मिला है।

केवल अनुमान के सहारे ही आगे बढ़ा जा सकता है और यही कहा जा सकता है कि अपने आप को बचाने का प्रयास करने वाले ये भिक्षु अंततः या तो हूणों के भालों की नोकों के नीचे आ गये होंगे या फिर उन्हें भी चीन, बर्मा अथवा श्रीलंका को भाग जाना पड़ा होगा।

 झालावाड़ जिले की बौद्ध गुफाएं

यदि हम झालावाड़ जिले के भवानीमण्डी कस्बे से मंदसौर को जाने वाली सड़क पर चलें तो झालावाड़ जिले में कोलवी, हात्यागोड़, बिनायगा तथा गुनाई और मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में धर्मराजेश्वर नामक स्थान पर बौद्ध भिक्षुओं की छठी से आठवीं शताब्दी की बौद्ध गुफाएं मिलती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सैंकड़ों बौद्ध भिक्षुओं ने घने जंगलों में छिपी हुई इन पहाड़ियों में गुफाएं बनाकर इनमें निवास किया। इन गुफाओं के आकार तथा उनमें बने कक्ष, शैयाएं, साधना कक्ष, बौद्ध मंदिर, बारामदों तथा दो मंजिली गुफाओं आदि की उपस्थिति से अनुमान होता है कि बौद्ध भिक्षुओं ने लम्बे समय तक इनमें निवास किया होगा।

 यहां उन्होंने गुफाओं के साथ-साथ कलात्मक स्तूप तथा भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं भी उत्कीर्ण कीं। बौद्ध भिक्षुओं के सधे हुए हाथों की छैनियों की टंकार आज भी इन गुफाओं के वीराने में गूंजती हुई प्रतीत होती है। अंग्रेज अधिकारी डॉक्टर इम्पे ने कोलवी की गुफाओं को खोजा था। जनरल कनिंघम ने भी इन गुफाओं को देखा था।

 झालावाड़ जिले से मंदसौर तक फैली हुई ये गुफाएं भुरभुरे लैटेराइट पत्थर की बनी हुई हैं जिन पर छैनी चलाकर आसानी से काटा जा सकता है। इस पूरे क्षेत्र में बोधिसत्व की प्रतिमाओं का अभाव है जिससे सिद्ध होता है कि ये समस्त गुफाएं बौद्धों के हीनयान मत के भिक्षुओं की हैं किंतु बुद्ध की कई प्रतिमाएं हैं जिनमें से कुछ प्रतिमाएं गुफाओं के बाहर तथा कुछ प्रतिमाएं गुफाओं के भीतर स्थित हैं। गुफाओं में स्थित बुद्ध प्रतिमाएं यह सिद्ध करती हैं कि उनकी पूजा की जाती थी।

 यह बात झालावाड़ क्षेत्र के हीनयान सम्प्रदाय के लिये विलक्षण कही जा सकती है कि यहां के बौद्ध भिुक्ष बुद्ध की मूर्तियों की पूजा कर रहे थे। हीनयान सम्प्रदाय मूलतः बुद्ध को महापुरुष मानता है न कि भगवान। इसलिये हीनयान में बुद्ध की मूर्तियों की पूजा नहीं होती थी।

 कोलवी में लगभग 50 गुफाएं हैं जिनमें से कुछ गुफाएं नष्ट हो गयी हैं। इन गुफाओं का सामान्यतः आकार 15 फुट लम्बा, 13 फुट चौड़ा तथा 22 फुट ऊंचा है। इन गुफाओं में सामान्यतः एक हिस्से में लगभग दो फुट ऊंचे मिट्टी तथा पत्थर के मिश्रण से चबूतरे बने हुए हैं जो शैयाएं जान पड़ते हैं। इनके एक तरफ मिट्टी-पत्थरों का ही सिराहना बना हुआ है जबकि पैताणा (पैरों की तरफ का भाग) नीचे की ओर ढलान लिये हुए है।

 आयुर्वेद कहता है कि यदि भोजन करने के बाद धरती पर 180 डिग्री पर सीधे सोने की बजाय यदि पेट से सिर तक का हिस्सा कुछ उठा हुआ हो तो भोजन जल्दी पचता है तथा वायु एवं अपच आदि विकार नहीं होते। बौद्ध गुफाओं में बनी हुई ये शैयाएं इसी सिद्धांत पर बनी हुई प्रतीत होती हैं। कुछ गुफाओं में दोनों किनारों पर इस तरह के शैयाएं बनी हुई हैं।

अधिकतर गुफाओं में एक ही कक्ष बना हुआ है जबकि कुछ गुफाओं के भीतर एक से अधिक कक्ष भी बने हुए हैं। कुछ कक्षों के साथ छोटे कक्ष भी बने हुए हैं जो साधना कक्ष के रूप में अथवा भण्डार गृह के रूप में काम आते होंगे। कोलवी में एक गुफा में कुंआ भी बना हुआ है जो कि एक असाधारण बात है।

पहाड़ के कठोर पत्थर की खुदाई करके कुंआ बनाना उन दिनों में पर्याप्त श्रम भरा कार्य रहा होगा। क्योंकि तब न तो उन्नत प्रकार के उपकरण थे और न बारूद जैसे विस्फोटक। गुफा के भीतर कूप की स्थिति इस ओर भी संकेत करती है कि बौद्ध भिक्षुओं ने स्वयं को शत्रु की दृष्टि से छिपाने के लिये इस कूप को सार्वजनिक स्थल पर खनन न करके, गुप्त स्थान पर खनन किया।

कोलवी में एक चट्टान पर 12 फुट उंची भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा भी उत्कीर्ण है जो उपदेश देने की मुद्रा में है। काफी संख्या में तथा अलग-अलग आकार में कलात्मक स्तूप हैं जो चट्टानों को काटकर वर्गाकार एवं अष्टभुजा आधार पर बनाये गये हैं। इनमें से कुछ स्तूप आज भी अच्छी अवस्था में हैं। एक गुफा में भगवान बुद्ध की पद्मासन मुद्रा की प्रतिमा है। इस प्रकार की गुफाएं चैत्य कहलाती हैं। इनकी छत हाथी के पीठ की तरह होती हैं। कोलवी में कुछ अन्य चैत्य भी मौजूद हैं जो अब नष्ट प्रायः हैं।

 कोलवी से 13 किलोमीटर दूर बिनायगा गांव के निकट की पहाड़ी में लगभग 20 गुफाएं स्थित हैं जिनका आकार कोलवी की गुफाओं की अपेक्षा छोटा है। हात्यागोड़ नामक गांव की पहाड़ी में 5 गुफाएं हैं। गुनाई गांव में भी 4 गुफाएं हैं। झालावाड़ जिले में डग के निकटवर्ती क्षेत्र में भी कुछ गुफाएं हैं जो निरंजनी गुफाएं कहलाती हैं। कोलवी, बिनायगा तथा हात्यागोड़ की गुफाएं एक ही जैसी बनी हुई हैं। बिनायगा तथा हात्यागोड़ की गुफाओं में भी कोलवी की गुफाओं की भांति पत्थर और मिट्टी के शैयाएं बनी हुई हैं। कोलवी में कुछ गुफाएं दो मंजिल की हैं जबकि बिनायगा में एक मंजिल की ही गुफाएं हैं। इसी सड़क पर लगभग 100 किलोमीटर आगे चलने पर मंदसौर जिला आरम्भ हो जाता है। यहां धर्मराजेश्वर नामक स्थान पर 524 मालव संवत का एक शिलालेख मिला है जिसमें भगवान बुद्ध को सुगत नाम से सम्बोधित किया गया है। राजस्थान सरकार ने कोलवी तथा बिनायगा की गुफाओं तक जाने के लिये पत्थर के पक्के मार्ग तथा उसके साथ रक्षा दीवार बनवा दी है। इससे इन गुफाओं तक पहुंचना सुगम हो गया है। फिर भी पर्यटकों को यहां तब तक नहीं लाया जा सकता जब तक कि ये राज्य के पर्यटन मानचित्र पर प्रमुख स्थान नहीं पा जातीं।

 झालावाड़ जिले की कोलवी, विनायगा, हात्यागोड़ तथा गुनाई गांव की गुफाएं तथा मध्यप्रदेश के धर्मराजेश्वर की गुफाएं काल के गाल में समा गये बौद्ध भिक्षुओं का रहस्य छिपाये आज भी मौन खड़ी हैं।

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