Thursday, July 25, 2024
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अरावली पर्वत

अरावली पर्वत शृंखला राजस्थान के ठीक मध्य में उत्तर-दक्षिण की लम्बाई में कर्णवत स्थित है। यह पर्वतश्रेणी एक निरन्तर श्रेणी के रूप में नहीं है, अपितु बीच-बीच में टूटी हुई है।

यह उत्तर-पूर्व में खेतड़ी से आरम्भ होकर दक्षिण-पश्चिम में सिरोही तक तो शृंखलाबद्ध है किंतु खेतड़ी से दिल्ली तक छोटी-छोटी शृंखलाओं में स्थित है। दक्षिण-पश्चिम में यह गुजरात के पालनपुर के निकट खेड़ब्रह्मा तक फैली हुई है।

अरावली पर्वत माला संसार की सबसे प्राचीन पर्वत मालाओं में से एक है। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार अत्यंत प्राचीन काल में गौंडवाना लैण्ड का एक अंश विलग होकर उत्तर की ओर खिसक गया जिसमें से राजस्थान के अरावली पर्वत एवं दक्षिणी पठार बने।

अरावली पर्वतमाला की कुल लम्बाई 692 किलोमीटर है जिसमें से 550 किलोमीटर पर्वतमाला राजस्थान में स्थित है। अरावली पर्वतमाला का सर्वाधिक विस्तार उदयपुर जिले में और न्यूनतम विस्तार अजमेर जिले में है। राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 9.3 प्रतिशत भाग अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ है।

अरावली पर्वतमाला पूरे प्रदेश को दो स्पष्ट प्राकृतिक भागों में विभक्त करती है। इस कारण लगभग 58 प्रतिशत क्षेत्र उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में तथा लगभग 42 प्रतिशत क्षेत्र दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में विभक्त हो जाता है।

अरावली की पहाड़ियां दिल्ली से कटक दक्षिण-पश्चिम की तरफ फैली हैं किन्तु जयपुर में खेतड़ी के समीप वे अधिक सुस्पष्ट शृंखला के रूप में दृष्टिगोचर होती हैं।

दक्षिण-पश्चिम की तरफ विस्तृत शृंखला काफी महत्वपूर्ण है जिसमें मुख्य चोटियां जैसे बाबाई (780 मीटर), खो (920 मीटर), रघुनाथगढ़ (1055 मीटर) और तारागढ़ (873 मीटर) आदि स्थित हैं। यह शृंखला सांभर झील के पश्चिम से गुजरती है तथा विस्तृत क्षेत्र पर फैली है।

अजमेर के बाद कई समानान्तर शृंखलाएं हैं। मेरवाड़ के परे अरावली पहाड़ियों की चौड़ाई लगभग 50 किलोमीटर है। उदयपुर और डूंगरपुर की तरफ दक्षिण-पूर्व में इनकी चौड़ाई बढ़ने लगती है। मुख्य शृंखला दक्षिण-पश्चिम की तरफ सिरोही जिले के दक्षिण-पूर्वी भू-भाग तक विस्तृत है। अरावली की सबसे ऊंची चोटी गुरुशिखर (1722 मीटर) इसी पहाड़ी प्रदेश में स्थित है।

अरावली श्रेणी के भाग

अरावली श्रेणी और पहाड़ी प्रदेश को पुनः चार लघु भौतिक भागों में बाँटा जा सकता है-

(अ) उत्तरी-पूर्वी पहाड़ी प्रदेश

यह प्रदेश जयपुर जिले के उत्तरी-पश्चिमी भागों में तथा अलवर जिले के अधिकांश भागों में स्थित चट्टानी और प्रपाती पहाड़ियों के कई समानातिक कटकों को शामिल करता है। इस क्षेत्र में अरावली शृंखला फाइलाईट और क्वार्ट्ज से निर्मित है जो कि पर्वतों के निर्माण में सहायक होती है।

देहली क्रम की अन्य चट्टानें चूने के पत्थर की है जो सामान्यतः केल्क-नीस में बदल जाती है, बहुत सख्त होने के कारण वे क्वार्टज् कटकों के बीच ऊँची घाटियाँ अथवा ऊँचे मैदानों का निर्माण करती है।

इसकी शाखाएं पश्चिम में सीकर श्रीमाधोपुर, नीम का थाना और खेतड़ी तहसीलों में पाई जाती है। उत्तर और उत्तर-पूर्व की ओर आगे पहाड़ियां टूटी हुई हैं और पहाड़ियों के अन्तिम सिरों की तरफ उनकी ऊँचाई अधिक होती जाती है। इस क्षेत्र में कुछ चोटियां 700 मीटर से भी अधिक ऊँची हैं जैसे- अलवर में भैराच (792 मीटर), बैराठ (704 मीटर), जयंपुर में बाबाई (780 मीटर), खो (920 मीटर) और सीकर जिले में रघुनाथगढ़ (1055 मीटर) आदि।

(ब) मध्य अरावली श्रेणी

इस प्रदेश के अंतर्गत अजमेर, जयपुर जिले तथा टोंक जिले के दक्षिण-पश्चिम में स्थित अरावली श्रेणी की पहाड़ियां शामिल हैं।

इस क्षेत्र के उच्च प्रदेश पश्चिम में बिखरे कटकों के साथ सांभर बेसिन द्वारा, उत्तर में अलवर पहाड़ियों के द्वारा, पूर्व में करौली उच्चभूमि के द्वारा तथा दक्षिण में बनास मैदान द्वारा सीमित है। इस प्रदेश को पुनः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(क) शेखावाटी निम्न पहाड़ियां

इस प्रदेश का भू-दृश्य बालू पहाड़ियां और निम्न गर्तों से परिलक्षित है। यह आंतरिक प्रवाह क्षेत्र है। सांभर झील से प्रारंभ होने वाली सबसे लंबी श्रेणी झुंझुनूं जिले में सिहना तक जाती है। अन्य छोटी-छोटी पहाड़ियां इस प्रदेश में विभिन्न नामों से जानी जाती हैं जैसे पुराना घाट, नाहरगढ़, आड़ा डुंगर, राहेड़ी, तोरावाटी आदि।

(ख) मेरवाड़ पहाड़ियां

मेरवाड़ पहाड़ियां मारवाड़ के मैदान को मेवाड़ के उच्च पठार से अलग करने वाली पर्वत श्रेणी है जो अजमेर नगर के समीपवर्ती भागों में पहाड़ियों के समानान्तर अनुक्रम में दृष्टिगोचर होती है। इसका उच्चतम शिखर अजमेर नगर के निकट समुद्रतल से लगभग 870 मीटर ऊँचा है जो तारागढ़ कहलाता है।

कुकरा से पहाड़ियों व घाटियों का एक क्रम जिले के अन्तिम सिरे तक विस्तृत है जहाँ वे मेवाड़ पहाड़ियों में मिल जाते हैं। पश्चिम पार्श्व पर पहाड़ियां बहुत ही प्रबल तथा प्रपाती बन जाती है। इस क्षेत्र की औसत ऊंचाई 550 मीटर है।

(स) मेवाड़ पहाड़ियाँ और भोराट पठार

यह क्षेत्र पूर्वी सिरोही, उदयपुर के पूर्व में एक संकरी पट्टी को छोडकर लगभग संपूर्ण उदयपुर और डूंगरपुर जिलों में विस्तृत है।

महान् भारतीय जल विभाजक रेखा उदयपुर जिले के उत्तर से उदयपुर से बाहर पूर्व की तरफ मुड़ने से पूर्व दक्षिण-पश्चिम तक चली गई है। आबूखण्ड के अतिरिक्त अरावली शृंखला का उच्चतम भू-भाग उदयपुर के उत्तर-पश्चिम में कुंभलगढ़ और गोगुन्दा के बीच एक पठार के रूप में स्थित है जो स्थानीय भाषा में भोराट पठार के नाम से जाना जाता है।

समुद्रतल से जयसमंद लगभग 300 मीटर, ऋषभदेव 400 मीटर, गोगुन्दा 840 मीटर, सायरा 900 मीटर और कोटड़ा 450 मीटर ऊँचा है। कुछ चोटियों की ऊँचाई समुद्रतल से 1300 मीटर है जबकि जरगा पर्वत मे उच्चतम चोटी 1223 मीटर ऊँची पाई जाती है।

पूर्वी सिरोही में सुदूर पश्चिम में स्थित कटक हालांकि अधिक ऊँची नहीं है, किन्तु तीव्र ढाल वाली तथा ऊबड़ खाबड़ है जो स्थानीय भाषा में भाकर कहलाती है। जयसमन्द से और आगे पूर्व में लासड़िया का विच्छेदित व कटा-फटा पठार है। यहीं से पहाड़ियों की शाखाएं प्रतापगढ़ तक चली गई हैं।

भोराट पठार से पूर्व की ओर कई पर्वत स्कन्ध मिलते हैं जिनमें से दक्षिण सिरे का पर्वत स्कंध (500-600 मीटर) महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के जल प्रवाह के बीच एक जल-विभाजक का कार्य करता है। कुछ पहाड़ी स्कंध तश्तरीनुमा आकृति वाले उदयपुर बेसिन को घेरे हुए हैं, जिसे स्थानीय भाषा में गिरवा कहते हैं। गिरवा से तात्पर्य पहाड़ियों की मेखला से है।

(द) आबू पर्वत खण्ड

इस क्षेत्र में पहाड़ियाँ कठोर क्वार्टज् से निर्मित हैं। ये पहाड़ियां कटक जैसी लगती हैं, काफी लंबी तथा ऊपरी सिरों पर समतल सतह वाली हैं। इनके पार्श्व दीवार की भाँति हैं। आबू पर्वत 19 किलोमीटर लंबा और 8 किलोमीटर चौड़ा पठार है जो लगभग 1200 मीटर समुद्रतल से ऊँचा है।

यह एक अनियमित पठार है जो कई प्रक्षेपित चोटियों से घिरा हुआ है। प्राकृतिक स्थलाकृतियां पश्चिमी और उत्तरी पार्श्वों में अति प्रपाती ढाल के कारण प्रमुख हैं। पर्वत स्कंधों और उनके बीच स्थित घाटियों के द्वारा पूर्व और दक्षिण का धरातल काफी छिन्न-भिन्न है। सबसे आश्चर्यजनक भू-दृश्य चट्टानों के विशालतम खण्ड हैं जो पहाड़ी के शिखर के साथ खड़े प्रतीत होते हैं।

आबू पर्वत से सटा हुआ उड़िया पठार आबू से लगभग 160 मीटर ऊँचा है और गुरुशिखर मुख्य चोटी के नीचे स्थित है। जेम्स टॉड ने गुरुशिखर को संतों का शिखर कहा है। यह हिमालय और नीलगिरी के बीच (गुरुशिखर 1722 मीटर) सबसे ऊँची चोटी है। गुरुशिखर के आस-पास की अन्य चोटियों में से सेर (1597 मीटर), अचलगढ़ (1380 मीटर) और दिलवाड़ा के पश्चिम में तीन अन्य चोटियां है।

आबू पर्वत के पश्चिम में आबू-सिरोही श्रेणियां हैं। आबू क्षेत्र के पश्चिम में जसवन्तपुरा पर्वतीय क्षेत्र में मुख्यतः डोरा पर्वत (869 मीटर) विस्तृत है। जसवंतपुरा पर्वत क्षेत्र के पश्चिम में रानीवाड़ा उच्च प्रदेश वृक्षविहीन अनावृत प्रदेश है।

सिवाना ग्रेनाइट पर्वत क्षेत्र के नाम से प्रख्यात पर्वतीय क्षेत्र में मुख्यतः गोलाकार पहाड़ियां है, इन्हें छप्पन की पहाड़ियां एवं नाकोड़ा पर्वत के नाम से पुकारा जाता है। इसी प्रकार जवाई नदी घाटी के दक्षिण में विस्तृत जालोर पर्वत क्षेत्र के रोजा भाखर (730 मीटर), इसराना भाखर (839 मीटर) एवं झारोला पहाड़ (588 मीटर) प्रमुख हैं।

अरावली पर्वत की चोटियाँ

अरावली पर्वतमाला की सबसे ऊँची चोटियाँ दक्षिणी हिस्से में स्थित हैं। सबसे ऊँची चोटी सिरोही जिले में है जो गुरुशिखर (1722 मीटर) कहलाती है। दूसरे नम्बर की चोटी भी सिरोही जिले में है तथा सेर (1597 मीटर) कहलाती है।

दक्षिणी हिस्से की अन्य चोटियों में उदयपुर जिले की जरगा (1431 मीटर), सिरोही जिले की अचलगढ़ (1380 मीटर), राजसमंद जिले की कुंभलगढ़ (1224 मीटर) ऐसी चोटियाँ हैं जो 1000 मीटर से ऊंची हैं।

अरावली पर्वतमाला के उत्तरी हिस्से में सीकर जिले की रघुनाथगढ़ (1055 मीटर) एक मात्र ऐसी चोटी है जो 1000 मीटर ऊंची है।

इस हिस्से की अन्य प्रमुख चोटियों में अलवर जिले की खो (920 मीटर), भैराच (792 मीटर) तथा बैराठ (704 मीटर), अजमेर जिले की नाग पहाड़ी (855 मीटर) तथा तारागढ़ (870 मीटर) और झुंझुनूं जिले की बाबई (780 मीटर) सम्मिलित हैं।

अरावली की अन्य पहाड़ियाँ

राज्य की अन्य पहाड़ियों में झालावाड़ तथा कोटा जिलों की मुकन्दरा पहाड़ियाँ, चित्तौड़गढ़ जिले का मेसा पठार, बूंदी जिले का आडावाला पठार, बाड़मेर जिले में छप्पन की पहाड़ियाँ, जालोर जिले की सुंधा पहाड़ियाँ, राजा भाखर, इसराना भाखर, कन्यागिरि एवं कनकाचल, सीकर जिले की मालखेत पहाड़ियाँ, हर्ष की पहाड़ियाँ एवं जीणमाता पर्वत, जैसलमेर जिले की त्रिकूट पहाड़ियाँ, जोधपुर जिले का चिड़ियानाथ की टूंक पर्वत आदि प्रमुख हैं।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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