Saturday, July 27, 2024
spot_img

1. जय हो जग में जले जहाँ भी पुनीत अनल को!

श्री भैरोंसिंह शेखावत का नाम मैंने, जीवन में पहली बार पिताजी के मुख से सुना। वे वर्ष 1977 की गर्मियों के दिन थे और लूओं ने पूरे वातावरण को झकझोर रखा था। देश का राजनीतिक वातावरण भी उन दिनों बहुत गर्म था जिसकी चर्चा प्रायः पिताजी घर में किया करते थे। उस समय मैं 15 साल का बालक था। शाम के समय कार्यालय से लौटने के पश्चात् पिताजी ने कहा था कि कल भैरोंसिंह शेखावत राजस्थान के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। इस पर मैंने बाल सुलभ जिज्ञासा से पूछा था, ये कैसे आदमी हैं? पिताजी ने हँसकर जवाब दिया था- जोरदार। राजस्थान सौभाग्यशाली है कि उसे जुझारू व्यक्ति मुख्यमंत्री के रूप में मिला। उसी दिन मैंने पिताजी के मुँह से भैरोंसिंह शेखावत के संघर्षमय जीवन की कुछ बातें सुनीं।

श्री भैरोंसिंह शेखावत को निकट से देखने का अवसर वर्ष 1992 में आया जब मेरा चयन राजस्थान सरकार में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में हुआ। उस समय राज्य में श्री भैरोंसिंह शेखावतजी की दूसरी सरकार चल रही थी। मैंने निदेशालय में अपनी ज्यॉइनिंग की तिथि 16 दिसम्बर 1992 चुनी थी, उन दिनों भी देश का राजनीतिक वातावरण हलचलों से भरा हुआ था। मेरे ज्यॉनिंग से ठीक एक दिन पहले भैरोंसिंह शेखावत सरकार बर्खास्त हो गई।

16 दिसम्बर 1992 को जब मैंने शासन सचिवालय परिसर में स्थित सूचना एवं जनसम्पर्क निदेशालय में अपनी ज्यॉनिंग दी तो पूरे सचिवालय में एक विचित्र सा भययुक्त वातावरण था। पूरा परिसर सुरक्षाकर्मियों की सीटियों एवं तेजी से आ-जा रही गाड़ियों के साइरनों से गूंज रहा था जिसे सुनकर मन में भय उत्पन्न होता था। बाद में ज्ञात हुआ कि प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है इसलिये राज्यपाल डॉ. एम. चेन्नारेड्डी आने वाले हैं। वे अनुशासन पसंद व्यक्ति हैं इसलिये आज चारों ओर सख्ती है। यदि कोई व्यक्ति सचिवालय परिसर की सड़क पर अथवा गलियारे में दिखाई देता है तो उसे हटाने के लिये सुरक्षा कर्मी सीटियां बजा रहे हैं।

शाम होते-होते ज्ञात हुआ कि सचिवालय में स्थित मंत्रियों के कक्षों से मनों-टनों कागज निकालकर बाहर किये गये हैं। ये वे कागज थे जिनमें प्रदेश के सुदूर अंचलों में निवास करने वाले करोड़ों लोगों की इच्छायें, अभिलाषायें, सपने और मजबूरियां लिखी हुई थीं। इन कागजों पर कार्यवाहियां होनी शेष थीं किंतु सरकार के चले जाने से अब ये कागज किसी काम के नहीं रह गये थे। नई सरकार के समक्ष जनआकांक्षाओं को फिर से अभिव्यक्त होने के लिये नये कागज लिखे जाने होंगे।

उस दिन पहली बार मुझे आभास हुआ कि एक मुख्यमंत्री जो पूरी सरकार चलाता है, एक व्यक्ति नहीं होता, जन आकांक्षाओं, अभिलाषाओं और करोड़ों लोगों के हृदयों में पलने वाले सपनों का केन्द्र बिंदु होता है। वह चारों ओर से समस्याओं से घिरा हुआ होता है। हजारों व्यक्ति उससे प्रत्यक्षतः जुड़े हुए होते हैं, लाखों हाथ सदैव उसकी तरफ कोई न कोई कागज लेकर मण्डरा रहे होते हैं, करोड़ों आंखें उसे आशा भरी दृष्टि से देख रही होती हैं और उसका अपना निजी जीवन कुछ नहीं होता, कुछ भी नहीं।

मन में एक पीड़ा सी हुई। मुझे आशा थी कि इस नई नियुक्ति में मुझे श्री भैंरोंसिंह शेखावत को निकट से देखने और संभवतः उनके साथ काम करने का भी अवसर मिलेगा किंतु उनकी सरकार बर्खास्त हो चुकी थी और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग चुका था। निदेशालय से मेरी नियुक्ति जालोर जिले में कर दी गई और मैं कुछ दिन बाद जालोर चला गया। ठीक एक साल बाद 4 दिसम्बर 1993 को श्री भैरोंसिंह शेखावत ने राज्य में तीसरी बार सरकार बनाई। मन में फिर से आस जगी कि अब मैं उन्हें आंखों से देख सकूंगा। हो सकता है कि मुझे उनके पास काम करने का अवसर भी मिले।

इस प्रकार पहली बार वर्ष 1994 में मुझे श्री भैरोंसिंह शेखावत को अपनी आंखों से देखने का अवसर मिला जब वे जालोर जिले के दौरे पर आये और मुझे जिला सूचना एवं जनसम्पर्क अधिकारी के रूप में उनकी यात्रा की प्रेस कवरेज करने का अवसर मिला। श्री शेखावत को देखकर मेरे मन में सबसे पहले यह विचार आया- ये तो ठीक वैसे ही हैं, जैसा कि पिताजी ने वर्ष 1997 में इनके बारे में बताया था। एकदम सरल, सहज।

मैं जून 1997 तक जालोर जिले में पदस्थापति रहा। इस बीच श्री भैरोंसिंह शेखावत ने मुख्यमंत्री के रूप में  जालोर जिले की कई यात्राएं कीं और मुझे उनकी मीडिया कवरेज का सौभाग्य मिला। उनकी वक्तृत्व शैली से मैं बहुत प्रभावित हुआ। लगता ही नहीं था कि उनकी बातों को समझने के लिये किसी को अपने दिमाग पर जरा भी जोर देने की आवश्यकता है। सरल शब्द, सुलझी हुई बात, संक्षिप्त वाक्य और चुटीला अंदाज। उनके भाषणों को प्रेस नोट के रूप में लिखने में मुझे कभी कोई कठिनाई या उलझन नहीं हुई।

इसी दौरान वर्ष 1996 में ग्यारहवीं लोकसभा के लिये आम चुनाव होने तय हुए। लोकसभा चुनावों की अधिसूचना जारी होने से पहले श्री भैरोंसिंह शेखावत जालोर जिले की यात्रा पर आये। इस दौरान उन्होंने आहोर से लेकर जालोर, बागरा, भीनमाल तथा सांचोर आदि क्षेत्रों का सड़क मार्ग से दौरा किया। मैं, मीडिया कवरेज के लिये मुख्यमंत्री के काफिले में साथ रहा। इस यात्रा में मैंने उनका जो रूप देखा, वह मेरे जैसे अनुभवहीन व्यक्ति को चक्कर में डाल देने के लिये पर्याप्त था। उनकी पूरी यात्रा बिना किसी तड़क-भड़क के, बिना किसी आडम्बर के और बिना किसी शोर-शराबे के रही। पूरी यात्रा के दौरान सड़क के दोनों तरफ सैंकड़ों लोग खड़े हुए दिखाई देते थे। मुख्यमंत्री उन्हें देखकर अपनी गाड़ी रुकवाते, उनसे हाथ मिलाते और यदि कोई माला लेकर खड़ा होता तो उसके हाथ से माला पहनते। शेखावाटी युक्त मारवाड़ी में उससे कुछ बात करते जिसमें प्रायः उस व्यक्ति का नाम भी होता था। मुझे आश्चर्य होता, एक व्यक्ति आखिर कितने नाम स्मरण रख सकता है। कई लोगों से वे गुटखा मांगते, अपने हाथ के गुटखे को दूसरों के साथ बांटकर खाते और आगे चल देते।

मुझे इस बात पर और भी आश्चर्य होता, जब वे लोगों से उनका नाम लेकर उनकी गाय-भैंस और खेती के बारे में पूछते। उसके लड़के का नाम लेकर उसके रोजगार के बारे में पूछते और बाई ससुराल में कैसी है, की भी जानकारी लेते। इन बातों में कई पुराने संदर्भ भी होते थे। इस यात्रा में पहली बार मेरी समझ में आया कि मुख्यमंत्री के चारों ओर ओर लाखों हाथ कागज लेकर ही नहीं खड़े रहते अपितु पूरे प्रदेश में गांव-गांव में उसके लाखों मित्र भी रहते हैं। उसके चाहने वाले होते हैं और उसके लिये मंगल कामना करने वाले भी होते हैं।

ई.1997 में जालोर जिले में साक्षरता कार्यक्रम चला। इस मिशन के लिये भैरोंसिंह शेखावत व्यक्तिगत रूप से चिंतित रहते थे। जब जालोर जिला प्रशासन ने राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के समक्ष अपनी परियोजना प्रस्तुत की तो मैं भी उस दल में सम्मिलित था जिसने इस परियोजना का निर्माण करवाया था और जिस दल ने इसका प्रस्तुतिकरण दिल्ली में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के समक्ष किया था। जब राष्ट्रीय साक्षरता मिशन ने इस परियोजना को स्वीकृति दी तो मुख्यमंत्री की प्रसन्नता का पारावार न था। जालोर जिले में इसकी लांचिंग के लिये मुख्यमंत्री स्वयं आये। जिला कलक्टर राजेश्वरसिंह ने जिला मुख्यालय पर इस कार्यक्रम की लांचिंग के लिये विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया। उस समय तक मेरा स्थानांतरण नागौर हो चुका था। इसलिये जिला कलक्टर ने मुझे कार्यक्रम का संचालन करने के लिये जालोर बुलाया।

मेरी याददाश्त में श्री भैरोंसिंह शेखावत के लिये संचालित किया गया यह मेरा पहला और अंतिम कार्यक्रम था। कार्यक्रम बहुत भव्य था। पूरा जिला ही जैसे इसमें उमड़ पड़ा था। मेरे और जिला कलक्टर के बीच पहले से ही तय हो गया था कि कार्यक्रम किस तरह संचालित किया जायेगा, कौन-कौन बोलेंगे और कब क्या होगा। सब कुछ उसी अनुरूप चला और अंत में मुख्यमंत्री बोलने के लिये उठ खड़े हुए। वे कोई चार-पांच मिनट बोले होंगे कि उनके माइक ने काम करना बंद कर दिया। बिजली आ रही थी किंतु माइक बंद हो गया था। किसी की कुछ समझ में नहीं आया। अब तक सब कुछ ठीक था और अब सब कुछ गुड़-गोबर होने जा रहा था। मेरा माइक काम कर रहा था। तीन-चार मिनट तो यह देखने में बीत गये कि माइक कहां से खराब हुआ है।

किसी भी मुख्यमंत्री की आम सभा के संचालन का यह मेरा पहला अवसर था फिर भी मैंने धैर्य से काम लिया और यह सोचकर कि जब तक माइक नहीं आ जाता, मैंने जालोर के साक्षरता मिशन के बारे में बोलना आरंभ किया। अब तक वह हुआ था जो मेरे और जिला कलक्टर के बीच तय हुआ था किंतु अब वह होने जा रहा था जो तय नहीं हुआ था। मुख्यमंत्री के भाषण के बीच में बोलना बहुत ही अशोभनीय और अटपटा लगने वाली बात थी किंतु मैंने परिस्थिति को देखते हुए यह दुस्साहस किया। माइक की व्यवस्था होने में लगभग तेरह-चौदह मिनट लग गये। इस बीच मैं जालोर के साक्षरता मिशन की भावी कार्ययोजना के सम्बन्ध में बोलता रहा। इस बीच जिला कलक्टर से मेरी दृष्टि दो-तीन बार मिली किंतु उन्होंने मेरे लिये कोई संकेत नहीं किया। मैं बोलता रहा और जब माइक ठीक हुआ तो मुख्यमंत्री ने पहला वाक्य इस प्रकार बोला- छोरो घणो जोरदार बोलै। मेरी सांस में सांस आई, अब जाकर मैं आश्वस्त हुआ कि इस दुस्साहस के लिये मुझे कोई कुछ कहने वाला नहीं है।

1998 के विधानसभा आम चुनावों से पहले मैं नागौर जिले में नियुक्त था। आचार संहिता लगने से पहले श्री भैरोंसिंह शेखावत के जिला मुख्यालय नागौर सहित जिले के कई कस्बों में कई दौरे हुए। इस बार भी मैंने उनकी यात्राओं का मीडिया कवरेज किया।

1 अक्टूबर 1998 को श्री भैरोंसिंह शेखावत दो दिवसीय यात्रा पर नागौर आये। दिन भर कई कार्यक्रमों में व्यस्त रहने के बाद शाम के समय वे नागौर में चतुर्मास कर रहे एक जैन साधु के उपासरे पर गये। मैं भी उनके साथ गया। लगभग एक घण्टे वे जैन साधु के सानिध्य में रहे। उस पूरे समय में उस कक्ष में केवल तीन ही व्यक्ति थे- श्री भैरोंसिंह शेखावत, जैन साधु और मैं। इस अवधि में उन दोनों के मध्य जिन विषयों पर वार्तालाप हुआ, उसे सुनकर एक और नई बात समझ में आई। मुख्यमंत्री केवल हजारों लाखों, करोड़ों व्यक्तियों के लिये ही नहीं होता, वह अपने लिये भी होता है, उसे आत्मा, परमात्मा, इहलोक और परलोक की चिंताएं भी सताती हैं।

अगले दिन 2 अक्टूबर था। मुख्यमंत्री महात्मा गांधी की प्रतिमा को माल्यार्पण करने गांधी चौक गये। मैं, भी जिला प्रशासन के अन्य अधिकारियों के साथ वहां उपस्थित था। तब तक बहुत से लोगों को ज्ञात हो चुका था कि भैरोंसिंहजी रात्रि को नागौर में ही ठहरे हैं और प्रातःकाल गांधी चौक आयेंगे। उस समय प्रातः के सात ही बजे थे। फिर भी पूरा गांधी चौक लोगों से ठसाठस भर गया। यहां भी वही सब हुआ। मुख्यमंत्री ने किसी से लेकर गुटखा खाया, कुछ लोगों के बच्चों के नाम लेकर उनके बारे में पूछा और आठ बजते-बजते उनका काफिला रवाना हो गया।

वर्ष 2007 में उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए वे महंत किशनारामजी महाराज की बरसी पर राजाराम आश्रम शिकारपुरा आये। उस समय मैं जोधपुर डिस्कॉम में जनसम्पर्क अधिकारी था किंतु उनकी इस यात्रा के कवरेज के लिये मुझे लगाया गया। उस दिन शिकारपुरा में लाखों व्यक्ति उपस्थित थे। जिस तरफ आंखें दौड़ाओ, आदमी ही आदमी, औरतें ही औरतें। आश्रम परिसर में तिल धरने को स्थान नहीं। दिन में लगभग साढ़े दस बजे उपराष्ट्रपति आये। जब वे मुख्यमंदिर में दर्शनों के लिये गये तो चारों ओर का स्थान लकड़ी की बल्लियां लगाकर सुरक्षित कर दिया गया था और उन बल्लियों को घेरकर पुलिसकर्मी खड़े थे। आम आदमी की हिम्मत नहीं होती थी कि उस सुरक्षा घेरे को तोड़कर उन तक पहुंच सके किंतु जब वे आये तो लाखों लोग मुख्यमंदिर की तरफ अनायास ही दौड़ पड़े। वे नजर भरकर अपने नेता को देखना चाहते थे। ऐसा सम्मोहन भरा दृश्य मैंने अपने जीवन में शायद ही कभी देखा होगा। यह सम्मोहन तभी भंग हुआ जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आश्रम में प्रवेश किया।

मैंने अंतिम बार श्री भैरोंसिंह शेखावत की नागाणा मंदिर की यात्रा का कवरेज वर्ष 2007 में किया। तब मैं बाड़मेर जिले में पदस्थापित था। इस बार वे उपराष्ट्रपति थे। संयोग की बात थी, इस बार भी राज्य का राजनीतिक वातावरण गर्म था। वे उपराष्ट्रपति थे, राजनीतिक बातों से ऊपर उठ चुके थे फिर भी मिट्टी की तासीर नहीं जाती, शब्दभेदी बाण चलाना जानते थे। वे हमेशा ही ऐसा कुछ करते थे जिससे सांप भी मरता था और लाठी भी नहीं टूटती थी। बाड़मेर जिले में भी मंच से उन्होंने ऐसे बहुत से लोगों के नाम लिये जो उनके सामने भीड़ में बैठे हुए थे। कुछ लोगों के नाम लेकर उन्होंने बाड़मेर जिले की अपनी पुरानी यात्राओं में हुई बातों का भी उल्लेख किया। इस भाषण का समां ऐसा था कि सभा समाप्त होने के बाद हर व्यक्ति को यह लगा कि वह श्री भैरोंसिंह शेखावत से व्यक्तिशः बात करके जा रहा है। संतुष्ट और अभिभूत! संभवतः अंतिम बार मैंने उन्हें जयपुर में गोविंददेवजी के मंदिर में देखा। वे पूरे लवाजमे के साथ गोविंददेवजी के मंदिर में आये किंतु बिना कोई सनसनी उत्पन्न किये।

15 मई 2010 को उनके निधन का दुःखद समाचार मिला। अगले दिन के समाचार पत्रों में बड़े-बड़े समाचार और चित्र प्रकाशित हुए। एक दिन पिताजी ने अखबार उठाकर कहा- भैरोंसिंहजी को श्रद्धांजलि देनी चाहिये। उन दिनों मैं, दैनिक नवज्योति में तीसरी आँख शीर्षक से एक स्तम्भ लिखा करता था  पश्चिमी राजस्थान में लोगों की जिह्वा पर चढ़ा हुआ था। उसी स्तम्भ में मैंने 18 मई 2010 को एक लेख लिखा- कहाँ गई दुनिया की वह सादगी, सरलता एवं भोलापन ! यह मेरी ओर से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि थी। मैं उन्हें शाब्दिक श्रद्धांजलि के अतिरिक्त और दे ही क्या सकता था!

मेरा उन्हें शत-शत प्रणाम है। राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर के शब्दों में- जय हो जग में जले जहाँ भी पुनीत अनल को। वे पुनीत अनल ही तो थे!

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

63, सरदार क्लब योजना,

वायुसेना क्षेत्र, जोधपुर

www.rajasthanhistory.com

mlguptapro@gmail.com

Cell : +91 94140 76061

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source