Friday, July 26, 2024
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91. हाथी घोड़े पालकी

 मरुधरानाथ ने शेरसिंह को भले ही सिंहासन और चंवर नहीं दिये किंतु टीका तो दे ही दिया था। इससे गुलाबराय घमण्ड में चूर होकर सरदारों को अपमानित कर रही थी। उन्हीं दिनों महादजी सिन्धिया की ओर से मामलत की वसूली के लिये मराठों का जमादार पूरबिया धनसिंह जोधपुर आया। वह एक चालू आदमी था। गुलाबराय से उसके अच्छे सम्बन्ध थे। वह भले ही मराठों का जमादार था किंतु गुलाब ने भी उसे महादजी के दरबार में अपने हित साधने के लिये नियुक्त कर रखा था।

इस बार जब धनसिंह जोधपुर आया तो गुलाब ने उसके माध्यम से मराठों के वकील सदाशिव पन्त को धन देकर उसे भी अपने पक्ष में करने का प्रयास किया ताकि सदाशिव महादजी को पत्र लिखकर समझाये कि महाराजा विजयसिंह वृद्ध हो गया है, उससे कुछ काम भी नहीं होता है इसलिये जोधपुर का राज्याधिकार पूरी तरह से शेरसिंह को दे दिया जाये। इस प्रकार गुलाबराय, अहिल्याबाई होलकर की तरह राज करे। पूरबिया धनसिंह गुलाबराय को अहिल्याबाई बनाने के लिये तैयार हो गया। अब तो गुलाब के लिये संसार में वही सबसे श्रेष्ठ आदमी हो गया। गुलाब वही सब कार्य करने लगी जो कार्य करने की सलाह धनसिंह उसे देता था।

धनसिंह की राय पर गुलाबराय ने सब सरदारों को चेतावनी दी कि चूंकि अब कुँवर शेरसिंह को राज्य दे दिया गया है इसलिये सब बड़े सरदार एक-एक हाथी और छोटे सरदार एक-एक घोड़ा कुँवर को नजर करें। इस पर सारे सरदार गुलाब से अप्रसन्न हो गये। रास के ठाकुर जवानसिंह ने महाराजा को जवाब भिजवाया कि आपने भले ही दासी-पुत्र को राज्य दे दिया हो किंतु हम चार सरदार मिलकर जिसे राज्य देंगे, वही राज्य का अधिकारी होगा। महादजी सिन्धिया के समर्थन से दासीपुत्र को राज्य नहीं मिलेगा।

जब पासवान को यह ज्ञात हुआ तो उसने धनसिंह की सलाह से जवानसिंह की जागीर के पाँच गाँव जब्त कर लिये। जवानसिंह के भतीजे शम्भूसिंह के पास दो हजार रुपये मूल्य का एक घोड़ा था। धनसिंह ने पासवान से कहकर वह घोड़ा बलपूर्वक अपने लिये मंगवा लिया। जब सारे सरदारों पर ताकीदी होने लगी कि घोड़े लाओ तो कितने ही सरदार बिगड़ कर संघर्ष करने के लिये तैयार हो गये और अपने घोड़ों को कुँवर की नजर नहीं किया। इस पर पासवान सरदारों को दण्डित करने लगी और उनकी जागीरें दिन-दिन तागीर होने लगीं। बहुत से सरदारों ने राज्य की इस दुर्दशा के बारे में जयपुर और उदयपुर के शासकों को सूचित किया।

जब जोधपुर राज्य से ठाकुरों के पत्र आने लगे तो जयपुर तथा उदयपुर के नरेशों ने मरुधरानाथ को पत्र लिखकर रोष व्यक्त किया कि पहले तो आपने कुँवर शेरसिंह को पासवान की गोद में देकर राजाओं और राजपुत्रों का अपमान किया। उसके बाद आपने महादजी सिन्धिया का समर्थन लेकर शेरसिंह को राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया किंतु इतना तो सोचा होता कि पासवान के लड़के को कौन राजा अपनी लड़की देगा? आपको दूर-दृष्टि से यह विचार पहले ही कर लेना चाहिये था। वर्तमान में हिन्दुस्तान के राजा-महाराजाओं में वयोवृद्ध होकर भी आपने अच्छी परम्परा का निर्वहन नहीं किया! इसका परिणाम शीघ्र ही सामने आयेगा।

महाराजा निरुपाय था। उसने जयपुर तथा उदयपुर के नरेशों के व्यंग्य भरे पत्रों का कुछ भी जवाब नहीं दिया।

गुलाब चाहती थी कि सवाईसिंह चाम्पावत अपनी कैद में रखे गये गोवर्धन खीची को गुलाब के हवाले कर दे किंतु सवाईसिंह किसी भी तरह गोवर्धन को मुक्त नहीं करना चाहता था। जब बात काफी आगे बढ़ गई तो गुलाब ने निश्चय किया कि सवाईसिंह को हटाकर उसके भाई विजयसिंह को राज्य का प्रधान बना दे। विजयसिंह पासवान का मर्जीदान था तथा रात में दोनों का एक दूसरे के यहाँ आना जाना रहता था।

यह बात सवाईसिंह तथा उसके मित्र ठाकुरों को हजम नहीं हुई। उन्होंने गुलाबराय की हत्या करने और उससे छुटकारा पाने का निर्णय लिया। इससे दो लाभ एक साथ होने वाले थे। पहला तो यह कि राज्य पर से गुलाब का नियंत्रण हट जायेगा और दूसरा यह कि उसके हट जाने से महाराजा राज्यकार्य से पूरी तरह विमुख हो जायेगा जिससे राज्य के सारे अधिकार शेरसिंह को प्राप्त हो जायेंगे और इन ठाकुरों को शेरसिंह की ओर से राज्य चलाने का अवसर सरलता से प्राप्त हो जायेगा। उसके बाद उन्हें जोधपुर में कोई पूछने वाला नहीं था कि वे क्या करते हैं!

सवाईसिंह बहुत दुष्ट था। उसने इस कार्य का कलंक अपने सिर पर लेने के स्थान पर गोवर्धन को इस योजना में सम्मिलित करने का विचार किया तथा उसे सौगंध देकर पूछा-‘अब आपका क्या विचार है? राठौड़ों की प्रतिष्ठा घटती जा रही है, राज्य का विनाश हो रहा है। राजा स्वयं पराधीन हुआ है। पासवान बारबार आपको मांग रही है और कह रही है कि खीची को मुझे सम्हला दो। यदि आपको न सम्हलावें तो पासवान मुझसे पाँच लाख रुपये और आपसे सात लाख रुपये लेना चाहती है। आपको उसके हाथों सौंपना ठीक नहीं है। इसलिये जो बात तय करनी है, विचार कर शीघ्र ही उसका निश्चय कर लें।’

गोवर्धन खीची ने कहा-‘सरदार तो सब एकमत हुए हैं किंतु तूने खूबचंद सिंघवी को मरवाया है। खूबचंद की जान का जिम्मा रतनसिंह कूँपावत ने ले रखा था। इसलिये रतनसिंह ने तेरे विरुद्ध कूम्पावत, चाम्पावत, मेड़तिये तथा उदावत आदि लगभग बीस हजार राठौड़ एकत्रित कर रखे हैं। यदि रतनसिंह कूँपावत को तू आप अपने पक्ष में कर ले तब तो कुछ बात बन सकती है, अन्यथा नहीं।’

खीची के ऐसा कहने पर रास का ठाकुर जवानसिंह उदावत और प्रधान सवाईसिंह चाम्पावत आधी रात को ढालें और तलवारें लेकर ठाकुर रतनसिंह कूँपावत के यहाँ पहुँचे। चाम्पावतों और कूँपावतों में वंशानुगत शत्रुता थी। सवाईसिंह ने रतनसिंह की सुरक्षा पर बगीचे में गये खूबचंद सिंघवी को मरवाया था फिर भी सवाईसिंह और जवानसिंह ने रतनसिंह कूँपावत के पैरों पर अपने सिर रख दिये और तलवार आगे करते हुए बोले-‘आप चाहें तो हमारी रक्षा करें या मार दें। सभी की इज्जत जा रही है। पासवान दगा करके हमें और आपको मार देगी। इसलिये हम आपकी सहायता से गुलाब के इस कंटीले झाड़ को उखाड़ फैंकना चाहते हैं।’

रतनसिंह अच्छी तरह जानता था कि सवाईसिंह कितना धूर्त और मक्कार है! रंग बदलने में उसका कोई सानी नहीं है फिर भी उसे अपने कदमों में गिरा हुआ देखकर रतनसिंह पिघलकर बोला-‘राठौड़ों के राज्य को सुरक्षित करने के लिये यदि हमें अपने स्वामी की पासवान की हत्या करने जैसा दुष्कर्म करने और उसका कलंक सिर पर लेने की आवश्यकता है तो हम इससे भी पीछे नहीं हटेंगे। आप लोग अपनी हवेलियों पर जाइये। यह काम हम संभाल लेंगे।’

जब सवाईसिंह और जवानसिंह चले गये तब रतनसिंह ने अपने भाईयों के साथ सलाह करके निश्चय किया कि पासवान को गढ़ में कैद कर लिया जाये, राज्य कार्य पहले की तरह गोवर्धन खीची को सौंपा जाये तथा कुँवर भीमसिंह को राज्य का अधिकारी बनाया जाये। बगीचे में दूसरे दिन पासवान को कैद करने का निश्चय हुआ। इस विचार विमर्श में खींवसर का ठाकुर भौमसिंह भी सम्मिलित था। उसे आरंभ से ही पासवान से सहानुभूति रही थी। वह महाराजा का भी हितैषी था। वह नहीं चाहता था कि गढ़ में रक्तपात हो। इसलिये उसने अगले दिन बगीचे में जाकर पासवान को सावधान कर दिया कि किसी भी समय आपके साथ धोखा हो सकता है, इसलिये सावधान रहें। गुलाब संभल कर बैठ गई।

अगले दिन रविवार था। सर्दियाँ अपने चरम पर थीं। इसलिये सड़कों पर चहल-पहल कम थी। सायं चार प्रहर शेष रहते समस्त सरदार एक साथ घोड़ों पर सवार होकर तथा गोवर्धन खीची को जनाना पालकी में बैठाकर बगीचे की तरफ चल पड़े। गोवर्धन खीची कहने को तो अब भी सवाईसिंह का बंदी था किंतु वस्तुतः वह इस समय सवाईसिंह के हाथों की कठपुतली बनकर गुलाब की हत्या करने के लिये कूट जाल रच रहा था। अभी वे बगीचे से आधा कोस दूर थे कि किसी ने सामने से आकर सूचित किया कि ठाकुर भौमसिंह ने सारा भाण्डा फोड़ दिया। बगीचे के चारों ओर पहरा बढ़ा दिया गया है और वहाँ पाँच सौ सिपाही मौजूद हैं। यह समाचार सुनकर ठाकुरों ने अपना विचार स्थगित कर दिया। वे गोवर्धन को फिर से सवाईसिंह की हवेली में ले गये।

दुष्ट धनसिंह इस समय पासवान की कैद में था। चार दिन पूर्व ही पासवान ने सब लोगों के सामने हथकड़ी पहनाकर उसकी जोरदार बेइज्जती की थी।

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