राजस्थान के शिलालेख राजस्थान का इतिहास लिखने के लिए प्रचुर सामग्री उपलब्ध करवाते हैं। प्राचीन दुर्गों, मंदिरों, सरोवरों, बावड़ियों एवं महत्वपूर्ण भवनों की दीवारों, देव प्रतिमाओं, लाटों एवं विजय स्तंभों आदि पर राजाओं, दानवीरों, सेठों और विजेता योद्धाओं द्वारा उत्कीर्ण करवाये गये शिलालेख मिलते हैं। ये लाखों की संख्या में हैं।
कुछ प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण शिलालेखों की जानकारी यहाँ दी जा रही है। अशोक के शिलालेख खरोष्ठी लिपि एवं ब्राह्मी भाषा में हैं। उसके बाद के शिलालेख संस्कृत एवं राजस्थानी भाषा में हैं। मुस्लिम शासकों के शिलालेख फारसी भाषा एवं अरबी लिपि में मिलते हैं।
गोठ मांगलोद शिलालेख
राजस्थान के शिलालेख का खजाना सातवीं शताब्दी ईस्वी से उपलब्ध होता है। राजस्थान में सबसे पुराना शिलालेख नागौर जिले के गोठ-मांगलोद गाँव से प्राप्त हुआ है। यह शिलालेख गोठ एवं मांगलोद नामक गांवों के बीच में स्थित दधिमती माता मंदिर में उत्कीर्ण है। यह अभिलेख 608 ई. का माना जाता है।
पं. रामकरण आसोपा के अनुसार इस शिलालेख पर गुप्त संवत् की तिथि संवत्सर सतेषु 289 श्रावण बदि 13 अंकित है। यदि यह गुप्त संवत् है तो यह राजस्थान में अब तक प्राप्त सबसे प्राचीन शिलालेख है। विजयशंकर श्रीवास्तव ने इसे हर्ष संवत् की तिथि माना है। यदि यह हर्ष संवत् है तो यह शिलालेख ई.895 का है।
अपराजित का शिलालेख
राजस्थान के शिलालेख का दूसरा साक्ष्य ई.661 का यह शिलालेख नागदे गाँव के निकट कुडेश्वर के मंदिर की दीवार पर अंकित है। इससे सातवीं शती के मेवाड़ की धार्मिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। इस युग में विष्णु मंदिरों का निर्माण काफी प्रचलित था।
मण्डोर का शिलालेख
ई.685 का यह शिलालेख मण्डोर के पहाड़ी ढाल में एक बावड़ी में खुदा हुआ है। इस लेख से ज्ञात होता है कि उस समय विष्णु तथा शिव की उपासना प्रचलित थी।
मान मोरी का शिलालेख
8वीं ईस्वी का यह शिलालेख चित्तौड़ के निकट मानसरोवर झील के तट पर एक स्तंभ पर उत्कीर्ण था। इसकी खोज कर्नल टॉड ने की थी। इस लेख से उस समय के राजाओं द्वारा लिये जाने वाले करों, युद्ध में हाथियों के प्रयोग, शत्रुओं को बंदी बनाये जाने तथा उनकी स्त्रियों की देखभाल की उचित व्यवस्था किये जाने के बारे में जानकारी दी गई है। इस लेख से उस समय की सामाजिक स्थिति की भी जानकारी होती है। उस समय तालाब बनवाना धर्मिक कार्य माना जाता था।
घटियाला के शिलालेख
ई.861 के इन शिलालेखों में मग जाति के ब्राह्मणों का वर्णन है। इन्हें शाकद्वीपीय ब्राह्मण भी कहा जाता है जो ओसवालों के आश्रित रहकर जीवन यापन करते थे। इन लेखों से तत्कालीन वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश पड़ता है।
ओसियां का शिलालेख
ई.956 के इस शिलालेख से ज्ञात होता है कि उस समय समाज चार प्रमुख वर्णों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र में विभाजित था।
बिजोलिया का स्तंभ लेख
ई.1170 का यह शिलालेख बिजोलिया के पार्श्वनाथ मंदिर के निकट एक चट्टान पर उत्कीर्ण है। इस पर संस्कृत भाषा में 32 श्लोक उत्कीर्ण हैं। इसमें सांभर एवं अजमेर के चौहान शासकों की वंशावली तथा उनके द्वारा शासित प्रमुख नगरों के प्राचीन नाम दिये गये हैं।
चौखा का शिलालेख
ई.1273 का यह शिलालेख उदयपुर के निकट चौखा गाँव के एक मंदिर पर उत्कीर्ण है। इस पर संस्कृत भाषा में 51 श्लोक उत्कीर्ण हैं। इसमें गुहिल वंशीय शासकों की वंशावली तथा उस समय के धार्मिक रीति रिवाजों की जानकारी दी गई है।
रसिया की छतरी का शिलालेख
ई.1274 का यह शिलालेख चित्तौड़ के राजमहलों के द्वार पर उत्कीर्ण है। इसमें गुहिल वंशीय शासकों की वंशावली तथा उस समय के सामाजिक एवं धार्मिक रीति रिवाजों की जानकारी दी गई है।
कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति
ई.1460 का यह कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति शिलालेख चित्तौड़ दुर्ग में निर्मित कीर्ति स्तंभ के पास स्थित है। इसमें मेवाड़ के शासक बापा से लेकर कुंभा तक की उपलब्ध्यिों तथा कुंभा द्वारा निर्मित भवनों, दुर्गों, मंदिरों, जलाशयों तथा कुंभा के समय में रचित ग्रंथों की जानकारी दी गई है।
आबू का शिलालेख
आबू पर्वत पर लगे ई.1285 के इस शिलालेख में बापा रावल से लेकर समरसिंह तक के मेवाड़ शासकों, आबू की वनस्पति और उस समय के धार्मिक रीति रिवाजों की जानकारी दी गई है।
देलवाड़ा का शिलालेख
ई.1434 का यह शिलालेख संस्कृत एवं राजस्थानी भाषा में लिखा गया है। इसमें 14वीं शताब्दी की राजनीतिक, आर्थिक एवं धार्मिक स्थिति, तत्कालीन भाषा, कर एवं मुद्रा (टंक) की जानकारी दी गई है।
शृंगी ऋषि का शिलालेख
ई.1428 का यह शिलालेख उदयपुर जिले में एकलिंगजी से 6 मील दूर शृंगी ऋषि नामक स्थान पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण है। इसमें हम्मीर से लेकर मोकल तक के मेवाड़ शासकों की उपलब्धियां दी गई हैं तथा राणा हम्मीर के युद्धों, मंदिरों के निर्माण, दानशीलता, भीलों की तत्कालीन स्थिति, मेवाड़-गुजरात तथा मालवा के राजनीतिक सम्बन्धों की जानकारी दी गई है।
समिधेश्वर के मंदिर का शिलालेख
ई.1428 का यह शिलालेख चित्तौड़ के समिधेश्वर मंदिर की दीवार पर उत्कीर्ण है। इस अभिलेख से तत्कालीन शिल्पियों, सामाजिक रीति रिवाजों तथा महाराणा मोकल द्वारा विष्णु के मंदिर के निर्माण आदि की जानकारी दी गई है।
राजस्थान के शिलालेख – रणकपुर प्रशस्ति
ई.1439 का यह शिलालेख रणकपुर के चौमुखा जैन मंदिर में एक लाल पत्थर पर उत्कीर्ण है। इसमें बापा से कुंभा तक की वंशावली तथा तत्कालीन मुद्रा (नाणक) की जानकारी दी गई है।
कुंभलगढ़ प्रशस्ति
ई.1460 का यह शिलालेख कुंभलगढ़ दुर्ग में उत्कीर्ण है। इसमें मेवाड़ नरेशों की वंशावली, महाराणा कुंभा की उपलब्धियों, कुंभा के समय के बाजारों, मंदिरों, राजमहलों तथा युद्धों की जानकारी दी गई है।
जमवा रामगढ़ का प्रस्तर लेख
ई.1613 के इस शिलालेख से ज्ञात होता है कि राजा मान सिंह अपने पिता भगवानदास का दत्तक पुत्र था।
रायसिंह की बीकानेर प्रशस्ति
ई.1594 का यह शिलालेख बीकानेर दुर्ग के मुख्य द्वार पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण है। इसमें बीका से लेकर रायसिंह तक के बीकानेर शासकों की उपलब्धियों,रायसिंह के कार्यों एवं भवन निर्माण आदि की जानकारी प्राप्त होती है।
जगन्नाथ राय की प्रशस्ति
ई.1652 का यह शिलालेख उदयपुर के जगदीश मंदिर के प्रवेश द्वार पर उत्कीर्ण है। इसमें मेवाड़ के इतिहास, मेवाड़ के शासक बप्पा से लेकर महाराणा जगतसिंह तक की उपलब्धियों, राणा प्रताप एवं अकबर के संघर्ष, जगतसिंह की दान प्रवृत्ति तथा तत्कालीन आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति का ज्ञान होता है।
राजप्रशस्ति महाकाव्य
ई.1676 का यह शिलालेख राजसमंद झील की पाल पर 25 काले पत्थर की शिलाओं पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण है। इसमें महाराणा राजसिंह की उपलब्धियों और तत्कालीन आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति की विस्तृत जानकारी दी गई है।
इस प्रकार राजस्थान के शिलालेख इतिहास लेखन के लिए विपुल सामग्री प्रस्तुत करते हैं। हमने यहाँ कुछ ही शिलालेखों का परिचय दिया है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता