Saturday, July 27, 2024
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राजस्थानी जनजीवन की शब्दावली

राजस्थान की लोकसंस्कृति में जनसामान्य द्वारा दैनिक व्यवहार में कुछ विशिष्ट शब्दों का प्रयोग किया जाता है। ये शब्द हिन्दी भाषा से ही राजस्थानी भाषा में आए हैं। इस आलेख में ऐसी ही राजस्थानी जनजीवन की विशिष्ट शब्दावली का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।

राजस्थानी जनजीवन में दैनिक व्यवहार की शब्दावली

अवाड़ा: कुम्हार का अलाव जिसमें मिट्टी के बर्तन एवं मूर्तियां पकाई जाती हैं।

ओण (आन): कार्य को निषिद्ध करने हेतु दिलाई गई शपथ को ओण कहते हैं।

ओल: किसी धरती, सामग्री या व्यक्ति को देवता, संत अथवा ईश्वर के लिये अर्पित अथवा सुरक्षित करने को ओल करना कहा जाता है।

खपटा: सहरिया पुरुषों का साफा खपटा कहलाता है।

चिरजा: रात्रिजागरण में गाये जाने वाले देवी के गीत चिरजा कहलाते हैं।

थापा: मेंहदी, कुंकुं से भरा हथेली का चिह्न थापा कहलाता है।

नाल: अवाड़े में ईंधन झौंकने का रास्ता। एक अवाड़े में 20 से 25 तक नाल होती है।

पौरूष: छः फुट को एक पौरूष कहा जाता है।

फड़का: स्त्रियों द्वारा मराठी अंदाज में पहनी गई साड़ी फड़का कहलाती है।

हिंगाण: देवी देवताओं की मिट्टी की मूर्तियाँ हिंगाण कहलाती हैं।

हीड़: मिट्टी का पात्र जिसमें दीपावली के दिन बच्चे तेल व रुई के बिनौले जलाकर अपने परिजनों के यहाँ जाकर आशीर्वाद मांगते हैं।

राजस्थानी जनजीवन में रसोई में प्रयुक्त बरतनों के नाम

ओलचणी: दही रखने का पात्र।

कड़ली: आटा रखने का पात्र।

करी: सुराही।

कुण्डा: दाल डालने का पात्र।

कूलड़ी: छाछ रखने का पात्र।

तबाक: परात।

दोझाणी: दूध दुहने का पात्र

धांगी: रोटी पकाने का पात्र।

धाकला: ढक्कन।

पारोटी: दूध जमाने का पात्र।

बगती: पीने के पानी का बर्तन।

मटूरा: बिलावण अथवा बिलौना करने का पात्र।

मथाणी: जिससे दाल आदि को मथते हैं।

पशुपालन से सम्बन्धित विविध शब्द

जट्ट: पशुओं के बालों को जट्ट अथवा जटा कहा जाता है। ऊंटों के बालों को ओठी जट्ट तथा बकरी के बालों को बाकरी जट्ट कहते हैं।

लव: पश्चिमी राजस्थान में भेड़ की ऊन कटाई के कार्य को लव कहते हैं। यह साल में तीन बार होती है। श्रावण-भाद्रपद माह में मिलने वाली ऊन को सावनी ऊन, कार्तिक माह में मिलने वाली ऊन को सियालु ऊन तथा चैत्र मास में मिलने वाली ऊन को चेती ऊन कहते हैं। कुछ पशु पालक साल में दो बार ऊन लेते हैं जिन्हें सावनी ऊन तथा फाल्गुनी ऊन कहते हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि राजस्थानी जनजीवन विशिष्ट शब्दावली प्रयुक्त होती है।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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