Saturday, October 12, 2024
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ऐतिहासिक वक्तव्य हैं राजस्थान का दर्पण

राजस्थान सदियों से भारत के शासकों, महान व्यक्तियों, चिंतकों, दार्शनिकों राजनीतिज्ञों एवं इतिहासकारों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। बहुत से लोगों ने समय समय पर राजस्थान के बारे में ऐसा कुछ कहा है जिससे राजस्थान की ऐतिहासिक स्थिति का परिचय मिलता है। इस आलेख में हम कुछ ऐतिहासिक वक्तव्य प्रस्तुत कर रहे हैं।

इतिहासकारों, लेखकों, पत्रकारों के ऐतिहासिक वक्तव्य

कर्नल जेम्स टॉड

राजस्थान की भूमि में कोई ऐसा फूल नहीं उगा, जो राष्ट्रीय वीरता और त्याग की सुगन्ध से आप्लावित होकर न झूमा हो; वायु का एक भी ऐसा झोंका नहीं उठा, जिसकी झंझा के साथ युद्ध-देवी के चरणों में साहसी युवकों का प्रयाण न हुआ हो; ऐसी एक भी कुटी नहीं थी, जिसमें मातेश्वरियों की गोद में निःस्वार्थ समर्पण और वीरता की ममत्वभरी लोरियाँ न गाई गई हों; न कोई एक भी घर था, जिसमें ऐसे वीर की सृष्टि न हुई हो, जिसने अपने देश के तूफानों का त्तपरता से सामना न किया हो।

कर्नल जेम्स टॉड

राजस्थान में कोई छोटा सा राज्य भी ऐसा नहीं है कि जिसमें थर्मोपिली जैसी रणभूमि न हो और शायद ही कोई ऐसा नगर मिले जहाँ लियोनिडास जैसा वीर पुरुष उत्पन्न न हुआ हो।

महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण (ई.1857)

ये राजा लोग देशपति जमीं का ठाकर छै, जे सारा ही हिमालय का गल्या ही निसरिया छै। 

गौरीशंकर हीराचंद ओझा

मुगल इतिहासकार राजपूत शब्द को बहुवचन में लिखने में ‘राजपूतां’ प्रयुक्त किया करते थे। संभवतः इसीलिये गोडवाना, तिलंगाना आदि की तरह अंग्रेजों ने राजपूत राजाओं के अधीन होने से इस प्रदेश का नाम राजपूताना रखा।

वी. पी. मेनन

क्रिप्स मिशन से देशी नरेशों को यह अप्रिय तथ्य ज्ञात हुआ कि यदि ब्रिटिश भारत और देशी राज्यों के हितों में टकराव हुआ तो ब्रिटिश सरकार निश्चित रूप से देशी राज्यों को नीचा दिखायेगी।

वी. पी. मेनन

दुर्दिन के मसीहाओं ने भविष्यवाणी की थी कि भारत की आजादी की नाव रजवाड़ों की चट्टान से टकरायेगी।

दुर्गादास, हिन्दुस्तान टाइम्स संवाददाता

राजाओं के नष्ट होने के तीन कारण थे- एक तो वे राष्ट्रवादी थे, दूसरे वे कायर थे तथा तीसरा कारण यह था कि उनमें से अधिकांश मूर्ख थे और अपने ही पापाचार में नष्ट हो गये थे।

लियोनार्ड मोसले, द लास्ट डेज ऑफ ब्रिटिश राज इन इण्डिया के लेखक

कांग्रेस को आशा थी कि पार्टी का यह लौहपुरुष (सरदार पटेल) अपनी धोती समेट कर इनके (राजाओं के) पीछे पड़ जायेगा।

आक्रांताओं के ऐतिहासिक वक्तव्य

शेरशाह सूरी

 खैर हुई वरना मुट्ठी भर बाजरे के लिये मैं हिन्दुस्तान की बादशाहत खो देता।

क्रांतिकारियों के ऐतिहासिक वक्तव्य

जोधपुर लीजियन के सैनिकों का क्रांतिउद्घोष (ई.1857)

चालो दिल्ली मारो फिरंगी।

प्रतापसिंह बारहठ (ई.1917)

मेरी माँ रोती है तो उसे रोने दो। मैं अपनी माँ को हँसाने के लिये हजारों माताओं को रुलाना नहीं चाहता।

विदेशी शासकों के ऐतिहासिक वक्तव्य

लॉर्ड कर्जन (ई.1903)

राजा अपने राज्यों पर ब्रिटिश शासन के एजेंट के रूप में शासन कर रहे हैं। ब्रिटिश क्राउन की परमोच्चता हर स्थान पर चुनौती रहित है। इसने अपने निर्बाध अधिकारों को स्वयं सीमित कर रखा है।    

लॉर्ड मिण्टो का लॉर्ड मार्ले को पत्र (28 मई 1906)

कांग्रेस के उद्देश्यों को चकनाचूर करने के लिये मैं हाल में बड़ी गंभीरता से सोचता रहा हूँ। मेरे विचार में राजाओं की एक काउंसिल बना देने से हमारा अभिप्राय सिद्ध हो सकता है।

ब्रिटिश सम्राट जार्ज पचंम की घोषणा (8 फरवरी 1921)

मेरे पूर्वजों द्वारा एवं स्वयं मेरे द्वारा अनेक अवसरों पर दिये गये आश्वासनों के अनुसार मैं भारतीय शासकों के विशेषाधिकारों, अधिकारों एवं उनकी गरिमा को बनाये रखूंगा ……. राजा लोग इस बात को लेकर निश्चित रहें, यह प्रतिज्ञा सदैव अनुल्लंघनीय एवं पवित्र बनी रहेगी।

बटलर समिति (ई.1930)

परमोच्चता सदैव के लिये परमोच्च है तथा परमोच्चता ने ही राजाओं के अस्तित्व को बनाये रखा है।

भारत सरकार अधिनियम 1935 पर लॉर्ड मेस्टॅन की प्रतिक्रिया

राजाओं द्वारा नामित प्रतिनिधियों और ब्रिटिश भारत द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों को मिलाकर संघ बनाने की योजना, कानून द्वारा तेल और पानी का मिश्रण बनाने की चेष्टा है।

कोनार्ड कोरफील्ड (प्रिंसली इण्डिया आई न्यू….पुस्तक की भूमिका)

मुझे रियासती भारत उस दो तिहाई भारत से अधिक वास्तविक भारत दिखाई देता था जो इण्डियन सिविल सर्विस के अधीन था।

ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली (20 फरवरी 1947)

जून 1948 तक भारत की एक उत्तरदायी सरकार को सत्ता हस्तांतरित कर दी जायेगी। सरकार भारतीय संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान जिसमें सभी भारतीयों की सहमति हो, भारत में लागू करने की संसद में संस्तुति करेगी। यदि जून 1948 तक इस प्रकार का संविधान, नहीं बनाया गया तो ब्रिटिश सरकार यह सोचने के लिये विवश होगी कि ब्रिटिश भारत में केंद्र की सत्ता किसको सौंपी जाये? नयी केंद्रीय सरकार को या कुछ क्षेत्रों में प्रांतीय सरकारों को? या फिर किसी अन्य उचित माध्यम को भारतीय जनता के सर्वोच्च हित के लिये दी जाये …….।

ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज षष्ठम्

मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि लगभग समस्त भारतीय राज्यों ने किसी न किसी उपनिवेश में सम्मिलित होने का निर्णय कर लिया है। वे संसार में कभी भी अकेले खड़े नहीं हो सकते थे।

लॉर्ड माउण्टबेटन (जनवरी 1948)

महाराजा सादूलसिंह प्रथम शासक थे जिन्होंने भारत का नया संविधान बनाने में मदद देने के लिये संविधान निर्मात्री सभा में प्रतिनिधि भेजकर यह अनुभव कर लिया कि भविष्य में राजा लोगों को क्या करना है। महाराजा पहले शासक थे जिन्होंने रियासतों के अपने पास के संघ में सम्मिलित होने के मेरे प्रस्तावों का समर्थन किया।

देशी राजाओं के राजाओं के ऐतिहासिक वक्तव्य

जोधपुर राज्य के प्रधानमंत्री सर प्रतापसिंह (ई.1920)

कांग्रेस के राष्ट्रव्यापी असहयोग आंदोलन का सरल समाधान बंदूक की कुछ गोलियां हैं।      

बीकानेर महाराजा गंगासिंह, कांग्रेस के पूर्ण स्वतंत्रता के प्रस्ताव पर (फरवरी 1929)

हम अंग्रेजी ताज के साथ अपनी संधियों के द्वारा बंधे हुए हैं जिसके कारण शासक किसी भी ऐसी ख्याली और असंभव योजना को सहन नहीं कर सकते जिसका लक्ष्य अंग्रेजों से सम्बन्ध विच्छेद और पूर्ण स्वतंत्रता स्थापित करना हो ……….. अंग्रेजी सम्बन्ध विच्छेद के बाद ब्रिटिश भारत और भारतीय राज्यों के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित होने के मार्ग में दुर्गम कठिनाइयां पैदा हो जायेंगी।

अलवर महाराजा जयसिंह (फरवरी 1929)   

मेरा लक्ष्य यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ इण्डिया का है जहाँ प्रत्येक प्रांत, प्रत्येक रियासत, अपनी नियति, अपने वातावरण, परम्पराओं, इतिहास तथा धर्म के साथ एकत्र होकर, (ब्रिटिश) साम्राज्य तथा महान उद्देश्यों के लिये कार्य करें।         

बीकानेर महाराजा गंगासिंह (ई.1930, प्रथम गोल मेज सम्मेलन)

राजा लोग भारतीय हैं। वे अपने देश की उन्नति के पक्ष में हैं और समस्त भारत की अधिकतम समृद्धि एवं संतुष्टि में भाग लेने की तथा उसमें अपना योगदान करने की इच्छा रखते हैं। भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वशासित राज्य का दर्जा दिया जाये तथा ब्रिटिश भारत व भारतीय रियासतों का एक संघ बनाया जाये।

बीकानेर महाराजा गंगासिंह (ई.1942)

यह सही नहीं है कि देशी राज्य अंग्रेजी साम्राज्य की उपज हैं। भारतीय राज्य भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना से भी पुराने हैं। देशी राज्य संधियों के माध्यम से व्यावहारिक सम्बन्धों के अंतर्गत आये। राजाओं के दावे हल्के रूप से लेकर खारिज नहीं किये जा सकते। ब्रिटिश भारत ब्रिटिश सरकार की उपज है। इससे पूर्व तो पूरा देश भारतीय राजाओं के अधीन था। देशी राजा कांग्रेस से अमित्रता पूर्वक नहीं थे अपितु कांग्रेस ही लगातार देशी राजाओं के प्रति सक्रिय विरोध का प्रदर्शन करती रही है।

भोपाल नवाब हमीदुल्ला खाँ (18 सितम्बर 1944)

सरकार की यह इच्छा कभी नहीं रही होगी कि राज्यों को लावारिस जमीन की तरह छोड़ दे। अगर कांग्रेस हमें नीचा दिखाना और लूटना चाहती है तो हम लड़ेंगे।

महारावल डूंगरपुर (कैबीनेट मिशन से साक्षात्कार, 4 अप्रेल 1946)

केवल आधा दर्जन राज्य ही ऐसे हैं जो ब्रिटिश भारत के प्रांतों की तुलना के समक्ष खड़े रह सकते हैं इसलिये यह आवश्यक है कि छोटे राज्यों को अपनी प्रभुसत्ता बचाने के लिये क्षेत्रीयता एवं भाषा के आधार पर मिलकर बड़ी इकाई का निर्माण कर लेना चाहिये।

जयपुर राज्य के दीवान मिर्जा इस्माइल (कैबीनेट मिशन से साक्षात्कार, 9 अप्रेल 1946)

भारतीय शासक परिवारों को बनाये रखना चाहिये क्योंकि वे भारत की संस्कृति और सभ्यता का हिस्सा हैं। ब्रिटिश सरकार को भारत की समस्त समस्याओं को सुलझाये बिना ही भारत छोड़ देना चाहिये।

डूंगरपुर महारावल (ई.1947)

भारतीय राजा भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में हैं किंतु सहयोग का अर्थ समर्पण नहीं होता। भारत की स्वतंत्रता का अर्थ भारतीय जीवन के सभी अंगों की स्वतंत्रता से है जिनमें भारतीय नरेश भी सम्मिलित हैं।     

धौलपुर महाराजा (ई.1947)

संविधान सभा में सम्मिलित होने के विषय में शासक जल्दबाजी में कोई कदम न उठायें।

मेवाड़ महाराणा भूपालसिंह (अगस्त 1947)

मेरी इच्छा मेरे पूर्वजों ने निश्चित कर दी थी। यदि वे थोड़े भी डगमगाये होते तो वे हमारे लिये हैदराबाद जितनी ही रियासत छोड़ जाते। उन्होंने ऐसा नहीं किया और न मैं करूंगा। मैं हिन्दुस्तान के साथ हूँ।

अलवर महाराजा (3 अप्रेल 1947)

देशी राज्यों के अधिपतियों को हिंदी संघ राज्य में नहीं मिलना चाहिये।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पूर्व रियासतों के राजाओं के ऐतिहासिक वक्तव्य

बांसवाड़ा महारावल चन्द्रवीर सिंह, राजस्थान में सम्मिलन के समय

मैं अपने मृत्यु दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर रहा हूँ। (मार्च 1949)

महाराणा फतहसिंह, मेवाड़ (मार्च 1949)

मैं तो अपनी रियासत कांग्रेस को समर्पित कर चुका हूँ, अन्य राज्यों का समर्पण भी अवश्यंभावी है।

जयपुर महाराजा का अपने पुत्र भवानीसिंह को पत्र (ई.1949)     

मुझे डर है कि यदि राजपूताना का कोई राजा त्याग और बलिदान करने के लिये नेतृत्व करने आगे नहीं आया तो प्रदेश का भविष्य अंधकार में है।

जयपुर की महारानी गायत्री देवी

यद्यपि मैंने इस विचार को स्वीकार किया था कि हम किसी न किसी रूप में भारत का अंग होंगे किंतु मुझे यह कभी नहीं लगा कि जब हमारे राज्यों की पहचान समाप्त हो जायेगी, तब हमारा जीवन इतना बदल जायेगा। मेरी कल्पना थी कि हम सदैव अपनी राज्य की जनता से अपना सम्बन्ध बनाये रखेंगे तथा सार्वजनिक जीवन में हमारी भूमिका बनी रहेगी।

बीकानेर महाराजा सादूलसिंह का सरदार पटेल को पत्र (29 मार्च 1949)

मेरा परिवार विगत पाँच शताब्दियों से बीकानेर से अपने रक्त सम्बन्ध से जुड़ा रहा है। मेरे लिये यह दिन (वृहत राजस्थान का उद्घाटन समारोह) प्रसन्नता मनाने का नहीं है अपितु यह अवसर मेरे लिये अत्यंत अवसाद और दुख का दिन है।

राजनीतिज्ञों के ऐतिहासिक वक्तव्य

जमनालाल बजाज (ई.1938)

उत्तरदायी शासन की जो मांग की जाती है, उससे कुछ राजा लोग यह समझ लेते हैं कि ऐसी मांग करने वाले उनके दुश्मन हैं, यह ठीक नहीं है। राजा भले ही राजा बने रहें, मगर वे जो राजकाज करें, वह जनता के महज नाम पर नहीं बल्कि उसकी इच्छा, सलाह और स्वीकृति से करें।         

मोहनदास कर्मचंद गांधी (ई.1940)

राजाओं को चाहिये कि वे जनता के सेवक बन जायें। वे जिस ऊंचे पायदान पर खड़े हैं, वहाँ से उन्हें नीचे उतर आना चाहिये।  

मोहनदास कर्मचंद गांधी (ई.1940)

ब्रिटिश भारत साम्राज्य के निर्माताओं ने चार स्तंभ खड़े किये हैं- यूरोपियन हित, सेना, राजा लोग तथा सांप्रदायिक विभाजन। आखिरी तीन स्तंभों को पहले स्तंभ की सेवा करनी है। यदि साम्राज्य निर्माताओं को सम्राज्य समाप्त करना है तो उन्हें ये चारों स्तंभ नष्ट करने होंगे किंतु वे राष्ट्रवादी लोगों से कहते हैं कि तुम्हें इन चारों स्तंभों से स्वयं निबटना होगा। दूसरे शब्दों में वे ये कह रहे हैं कि ब्रिटिश साम्राज्य के हितों की गारण्टी दो, अपनी सेना स्वयं बनाओ तथा राजाओं और अल्पसंख्यक कहे जाने वाले साम्प्रदायिक लोगों से निबटो।         

रणछोड़दास गट्टानी (8 फरवरी 1942)

हमारे राज्य का मुख्यमंत्री ब्रिटिश है। उसने अपने वायदों को गंभीरता से नहीं निभाया है। उसने 22 एडवाइजरी बोर्ड्स से ताश के पत्तों का घर बनाया और तोड़ दिया। उसने पंचायतें बनायीं तथा अब प्रतिनिधि सलहाकार सभा भी बनायी है किंतु इन संस्थाओं ने अपने निर्माण के बाद क्या भलाई की है? जनता तीन दारों- थानेदारों, हवलदारों तथा जागीरदारों की निरंकुशता से त्रस्त है।     

रघुवर दयाल गोयल (9 अगस्त 1946)

उत्तरदायी शासन की बातचीत के भुलावे में कहीं हमारे संघर्ष की बारूद गीली न हो जाये। 

डॉ. पट्टाभि सीतारमैया (ई.1947)

संविधान सभा में राजाओं का कोई स्थान नहीं है।

जवाहरलाल नेहरू (दिसम्बर 1946)

यदि किसी विशेष रियासत की जनता अपने यहाँ के राजा को प्रधान स्वीकार करती है तो मैं निश्चय ही उसमें हस्तक्षेप नहीं करूंगा।

सरदार पटेल का राजाओं को भारत संघ में सम्मिलन हेतु निमंत्रण (5 जुलाई 1947)

रियासतें सुरक्षा, विदेशी मामले और संचार के विषय में भारतीय संघ में सम्मिलित हों। देश के सामान्य हितों से सम्बन्धित इन तीन विषयों में सम्मिलित होने के अलावा हम उनसे और कुछ नहीं चाहते। अन्य मामलों में हम उनके स्वायत्त अस्तित्व का निःसंदेह सम्मान करेंगे।

सरदार पटेल, भारत विभाजन के समय टिप्पणी (अगस्त 1947)

पाकिस्तान इस विचार के साथ कार्य कर रहा है कि सीमावर्ती कुछ राज्यों को वह अपने साथ मिला ले। स्थिति इतनी खतरनाक संभावनायें लिये हुए है कि जो स्वतंत्रता हमने बड़ी कठिनाईयों को झेलने के पश्चात् प्राप्त की है वह राज्यों के दरवाजे से विलुप्त हो सकती है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नेताओं के ऐतिहासिक वक्तव्य

सरदार पटेल की भारत विभाजन पर टिप्पणी (7 अगस्त 1947)

भारत के शरीर से जहर अलग कर दिया गया। हम लोग अब एक हैं और अब हमें कोई अलग नहीं कर सकता। नदी या समुद्र के पानी के टुकड़े नहीं हो सकते। जहाँ तक मुसलमानों का सवाल है, उनकी जड़ें, उनके धार्मिक स्थान और केंद्र यहाँ हैं। मुझे पता नहीं कि वे पाकिस्तान में क्या करेंगे। बहुत जल्दी वे हमारे पास लौट आयेंगे।

सरदार पटेल देशी राज्यों को प्रांतीय इकाइयों में सम्मिलन हेतु धमकी (16 दिसम्बर 1947)

जब तक छोटी रियासतों के स्वतंत्र अस्तित्व को मिटा नहीं दिया जाता, तब तक उनमें जनतंत्रीय शासन की स्थापना असंभव होगी।        

माणिक्यलाल वर्मा (ई.1949)

मेवाड़ की 20 लाख जनता के भाग्य का फैसला अकेले महाराणा और उनके दीवान सर राममूर्ति नहीं कर सकते। प्रजामण्डल की यह स्पष्ट नीति है कि मेवाड़ अपना अस्तित्व समाप्त कर राजपूताना प्रांत का एक अंग बन जाये।

जयनारायण व्यास (22 फरवरी 1949)

ऐसा सोचना ठीक नहीं कि जयपुर ने सभी कुछ ले लिया है। हमें अपने आप को एक वृहद् इकाई का नागरिक मानना है। राजधानी का निश्चय नहीं हुआ है, अजमेर के राजस्थान में विलय पर ही राजधानी की स्थायी समस्या का समाधान होगा।

सरदार पटेल (30 मार्च 1949)

राजस्थान का निर्माण कर हमने आज राणा प्रताप का स्वप्न साकार किया है। अब जनता को जयपुर, जोधपुर बीकानेर आदि के बारे में न सोचकर सम्पूर्ण राजस्थान के बारे में सोचना चाहिये। कांग्रेस कार्यकर्त्ताओं को सद्भाव दिखाना चाहिये और सत्ता की अपेक्षा सेवा के बारे में सोचना चाहिये। मंत्री कौन बने और राजधानी कहाँ हो, यह छोटे लोगों की बातें हैं। अगर कांग्रेसी वास्तव में सच्चे हैं तो उन्हें जबर्दस्ती सत्ता सौंपी जायेगी।

सरदार पटेल (25 जनवरी 1949)

जागीरदार बदले हुए समय को पहचानें। जो लोग गलत काम करते हुए पाये जायेंगे उनसे दूसरी तरह का व्यवहार किया जायेगा। जागीरदारों को समझना चाहिये कि गलत क्या है उन्हें यह भी समझना चाहिये कि आज के युग में बड़े और छोटे का भेद तथा स्वामी और सामान्य आदमी का भेद समाप्त हो गया है तथा यह प्रचलन से बाहर हो गया है। कोई भी जागीरदार बलपूर्वक, डकैती से या बदला लेने की विधि से कुछ भी हासिल नहीं कर सकेगा। यह एक परिणामहीन व्यापार है।   

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, 2 सितम्बर 1954 को बीकानेर में भाषण

जब एक ओर भारत के बंटवारे की विपत्ति आ रही थी और दूसरी ओर भारतवर्ष के टुकड़े किये जाने के लिये द्वार खोला जा रहा था तब महाराजा सादूलसिंह ने जवांमर्दी, देशप्रेम तथा दूरदर्शिता से अपने आप को खड़ा करके उस दरवाजे का मुँह बंद कर दिया।

राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री

जयपुर महाराजा राजप्रमुख, जयपुर का ही मुख्यमंत्री और जयपुर ही राजधानी, यह सब कुछ कई लोगों को हजम होने वाला नहीं था।

इस प्रकार अलग-अलग समय पर विभिन्न व्यक्त्यिों द्वारा दिए गए ऐतिहासिक वक्तव्य राजस्थान के इतिहास का दर्पण प्रतीत होते हैं।

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